भोपाल। मध्य प्रदेश में एक माँ 19 साल तक बेटे के गुमशुदा होने या आरोपों के मुताबिक पुलिस के फर्जी एनकाउंटर के मामले न्याय के लिए लड़ती रही। इन सालों में सैकड़ों कोर्ट के चक्कर लगाने के बाद भी उसे न्याय नहीं मिल पाया। बेटे के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रही माँ अब इस दुनिया में नहीं रही। हद की बात तो यह कि इस मामले से जुड़े जांच अधिकारी इन सालों में एक बार भी कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के डबरा की विमला देवी का आरोप था कि उसे फर्जी एनकाउंटर में मार दिया है। जबकि पुलिस की ओर से उसे गुमशुदा बताया जा रहा था। लेकिन विमला देवी ने ठान ली थी कि वह किसी भी हाल में बेटे को न्याय दिला कर रहेगी। लेकिन पुलिस और सिस्टम के बीच इस केस से जुड़े अधिकारी कोर्ट में जवाब तक देने नहीं पहुँचें।
इस मामले में अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। इस मामले पुलिस इतनी लापरवाह है कि कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में 2012 से जांच अधिकारी विशेष अदालत के सामने पेश ही नहीं हुए हैं। हाई कोर्ट ने इसपर नाराजगी जताई और कहा कि यह पुलिस विभाग की ओर से असंवेदनशीलता के अलावा और कुछ नहीं है। न्यायालय ने डीजीपी को मामले की जांच करने का भी निर्देश दिया है।
यह मामला, 22 अप्रैल, 2005 का है, जब डबरा पुलिस स्टेशन के स्थानीय एसएचओ और क्षेत्र के अन्य अधिकारी विमला देवी के तीन बेटों को थाने ले गए थे। 27 अप्रैल को उसके दो बेटों बालकिशन और कल्ली को छोड़ दिया गया था, लेकिन उसने आरोप लगाया था कि तीसरे बेटे खुशाली राम को पुलिस हिरासत में रखा गया है। कुछ दिन बाद उसने एक अखबार में पढ़ा कि उसका बेटा एनकाउंटर में मारा गया है। खबर में उसे एक इनामी डकैत बताया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि अख़बार ने तस्वीर में उनके बेटे की पहचान "कालिया उर्फ़ बृजकिशोर" के तौर पर की थी।
इसके बाद 2007 में मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया गया और पुलिस रिपोर्ट सामने आने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि 'कालिया उर्फ बृजकिशोर जीवित है और जिला जेल, झांसी में बंद है'।
इसके बाद विमला देवी ने दतिया के तत्कालीन एसपी एमके मुदगल और अन्य पुलिसकर्मियों पर अपने बेटे की फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने का आरोप लगाया और जांच की मांग की थी।
विमला देवी ने दावा किया था, कि उन्हें अपने बेटे की मौत के बारे में एक अखबार की क्लिपिंग से पता चला, जिसमें उसे 'इनामी बदमाश' बताया गया था। इस कथित मुठभेड़ में एक अन्य बदमाश भी मारा गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि अखबार की तस्वीर में उनके बेटे की पहचान 'कलिया उर्फ ब्रिजकिशोर' के रूप में की थी।
मध्य प्रदेश की एक निचली अदालत ने इससे पहले राज्य सरकार को 2007 में उसके बेटे की मौत मामले में कोई कार्रवाई न करने के लिए 20,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। इस महीने की शुरुआत में जस्टिस विवेक रूसिया और राजेंद्र कुमार वाणी की बेंच ने कहा था कि अंतिम क्लोजर रिपोर्ट की विशेष अदालत द्वारा जांच की जानी जरूरी है।
कोर्ट ने कहा कि आदेश पत्रों से पता चलता है, कि क्लोजर रिपोर्ट पर विचार करने में देरी हो रही है क्योंकि जांच अधिकारी वीरेंद्र कुमार मिश्रा 2012 से विशेष अदालत में पेश नहीं हुए हैं। नवीनतम स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, वह एसपी, दतिया के रूप में तैनात हैं। हैरानी की बात यह है कि 2012 से अब तक उन्हें अदालत में पेश होने के लिए एक या दो दिन का समय नहीं मिल सका।
कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर समय, वह प्रतिनियुक्ति पर रहे लेकिन विशेष अदालत के सामने पेश होने की परवाह नहीं की ताकि सत्र न्यायालय क्लोजर रिपोर्ट की जांच कर सके। याचिकाकर्ता मां का निधन कोर्ट से न्याय की प्रतीक्षा में हो गया। ऐसा कहा जाता है कि याचिकाकर्ता को आज तक 20,000 रुपए की लागत का भुगतान भी नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट के सामने और इस अदालत के सामने पुलिस की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि याचिकाकर्ता द्वारा अपने बेटे के लापता होने के बारे में की गई शिकायत पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई। ऐसे में अंतिम क्लोजर रिपोर्ट की विशेष अदालत द्वारा जांच की जानी आवश्यक है।
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