भोपाल। मध्य प्रदेश में लाखों दलित और आदिवासी छात्र-छात्राएं बैकलॉग पदों पर भर्ती के इंतजार में हैं। वर्षों से ये छात्र और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे उम्मीदवार सरकार की तरफ से भर्तियों की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से इस संबंध में अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। बैकलॉग पदों पर भर्ती नहीं होने से दलित और आदिवासी संगठनों के बीच आक्रोश पैदा हुआ है, और अब वे सरकार से सीधे सवाल पूछ रहे हैं।
मध्य प्रदेश आदिवासी विकास परिषद (छात्र विभाग) के प्रदेश अध्यक्ष नीरज बारिवा ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, "हम लंबे समय से सरकार से बैकलॉग के रिक्त पदों पर भर्ती की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक हमें कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला है। हमने सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि अगर जल्द ही भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हुई, तो हमें आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।"
आदिवासी एक्टिविस्ट और एडवोकेट सुनील आदिवासी का कहना है कि बैकलॉग भर्ती अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा, "हजारों लोग ओवरएज हो चुके हैं, अगर समय पर बैकलॉग भर्ती होती, तो वे सरकारी नौकरियों में होते। सरकार आदिवासियों के विकास की बातें तो करती है, लेकिन वास्तविकता में हमारी स्थिति खराब हो गई है।"
मध्यप्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति युवा संघ (नाजी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर. बिछोले ने भी सरकार पर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा, "सरकार लगातार बैकलॉग के पदों की भर्ती की समय सीमा बढ़ा रही है, लेकिन भर्तियां नहीं कर रही है। हमारा भरोसा सरकार पर नहीं है। अगर सरकार जल्द ही नोटिफिकेशन जारी नहीं करती, तो हमें अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करना पड़ेगा। सरकार वंचित वर्ग के साथ अन्याय कर रही है।"
प्रदेश के विभिन्न विभागों में अनुसूचित जाति और जनजाति के बैकलॉग पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं। अनुमान के अनुसार, राज्य में करीब 1 लाख 40 हजार बैकलॉग पद खाली हैं, जिनमें सबसे अधिक पद शिक्षा विभाग में हैं। शिक्षक पात्रता परीक्षा के वर्ग 1, वर्ग 2 और वर्ग 3 के लिए लगभग 40 हजार पद खाली हैं। इसके अलावा, सामाजिक न्याय, महिला बाल विकास, स्वास्थ्य विभाग, और पंचायत ग्रामीण विकास विभाग में भी हजारों की संख्या में पद रिक्त हैं।
भर्ती प्रक्रिया में देरी और स्थायी भर्तियों की कमी के चलते प्रदेश सरकार ने आउटसोर्सिंग के माध्यम से भर्ती का रास्ता अपनाया है। प्रदेश सरकार द्वारा संचालित उद्यमिता विकास केंद्र (सेडमैप) से कर्मचारियों की भर्ती की जा रही है। इस प्रक्रिया के तहत, पहले विभागों द्वारा रिक्त पदों की जानकारी संबंधित संचालक को भेजी जाती है, फिर वहां से आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाती है। आवेदकों की शैक्षणिक योग्यता और इंटरव्यू के आधार पर मैरिट लिस्ट तैयार कर उन्हें नियुक्त कर दिया जाता है।
हालांकि, इन एजेंसियों के माध्यम से की जाने वाली भर्तियों में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं। भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी और अधिकारियों के रिश्तेदारों एवं चहेतों को नौकरी देने के आरोप भी सामने आए हैं। इन एजेंसियों के माध्यम से स्थायी पदों पर अस्थायी भर्तियां की जा रही हैं, जिससे राज्य में स्थायी नौकरी की संभावनाएं कम होती जा रही हैं।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार पर वित्तीय संकट का दबाव है, और कर्ज की बढ़ती स्थिति के कारण ही स्थायी भर्तियों के बजाय आउटसोर्सिंग का सहारा लिया जा रहा है। इस स्थिति ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, और लोगों में असंतोष बढ़ रहा है। राज्य में बेरोजगारी की बढ़ती समस्या के बीच सरकार की इस नीति ने लाखों युवाओं के भविष्य को अनिश्चितता में डाल दिया है।
मध्य प्रदेश में दलित और आदिवासी छात्रों की लंबे समय से बैकलॉग पदों पर भर्ती की मांग का कोई समाधान नहीं हुआ है। सरकारी पदों पर भर्ती की अनिश्चितता और आउटसोर्सिंग की नीति ने इन समुदायों में गहरी नाराजगी पैदा कर दी है। एससी-एसटी संगठनों ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।
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