भोपाल। नाम न बताने की शर्त पर एक कर्मचारी ने अपनी पीड़ा व्यक्त की कि, "मैं ग्रेड 2 शासकीय कर्मचारी हूँ, अनुसूचित जाति वर्ग से आता हूँ, वर्तमान में भोपाल में पदस्थ हूँ। 12 सालों से प्रोमोशन का इंतजार कर रहा हूँ, लेकिन प्रोमोशन में रिजर्वेशन पर प्रतिबंध है जिसके कारण पदोन्नति नहीं मिल सकी, अब रिटायरमेंट के सिर्फ दो साल शेष रह गए हैं।"
बता दें कि, पदोन्नति में आरक्षण नियम पिछले सात सालों से मंत्रालय में धूल खा रहा है। इधर अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के कर्मचारी 16 वर्षों से प्रोमोशन की आस में बैठे हैं। बावजूद इसके गोरकेला समिति द्वारा बनाये गए 'पदोन्नति नियम 2016' को मध्य प्रदेश सरकार अभी तक लागू नहीं कर पाई। पदोन्नति में आरक्षण नियम लागू नहीं होने से एससी/एसटी वर्ग के करीब 60 हजार अधिकारी, कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं हो पा रही है। वहीं सरकार भी पदोन्नति में आरक्षण मसले पर पूरी तरह से मौन है।
दरअसल, साल 2017 में नवीन पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है। गोरकेला समिति ने ड्राफ्ट तैयार कर राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन (कार्मिक) विभाग को सौंप दिया था। लेकिन सात साल बीत गए सरकार पदोन्नति नियम को कैबिनेट में तक नहीं रख पाई। इससे साफ जाहिर होता है कि सरकार अनुसूचित जाति, जनजाति के अधिकारों के प्रति गंभीर नहीं है।
मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स) ने वर्ष 2012 में पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने की मांग शुरू की थी। अजाक्स ने सैकड़ों धरने जिला, संभाग और प्रदेश स्तर पर किए थे। आंदोलन तेज होते देख तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में 12 जून 2016 को अजाक्स के प्रांतीय अधिवेशन में घोषणा कर कहा था कि पदोन्नति में आरक्षण हर हाल में जारी रहेगा, उसके लिए यदि नियम बनाना होगा तो नियम बनाया जायेगा।
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा की गई उक्त घोषणा के पालन के लिए सरकार ने गोरकेला समिति का गठन किया था। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं मध्यप्रदेश के स्पेशल कॉसिल मनोज गोरकेला ने नवीन पदोन्नति नियम का ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को सौंप दिया था। सरकार की ओर से अधिवक्ता मनोज गोरकेला ने प्रोमोशन में आरक्षण दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पैरवी भी की थी।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए अजाक्स के प्रांतीय प्रवक्ता विजय श्रवण ने कहा कि, "चुनाव के कारण मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, अभी बातचीत शुरू हुई है।" श्रवण ने आगे कहा, "यह नियम लागू होने से सभी को फायदा होगा। एससी/एसटी, सहित ओबीसी और सामान्य वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों को भी इसका सीधा लाभ मिलेगा। सरकार को गोरकेला समिति के 'प्रोमोशन नियम 2016' ड्राफ्ट को प्रभावी करना चाहिए।"
हाईकोर्ट ग्वालियर में पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के मामले में चुनौती दी गई थी। कोर्ट में पदोन्नति नियम 2002 में रिजर्वेशन मैरिट के आधार पर प्रोमोशन देना विधि विरुद्ध बताया गया था। हाईकोर्ट ग्वालियर ने इस मामले में सुनवाई करते हुए 2008 में पदोन्नति में आरक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसको लेकर 2006 में याचिका दायर की गई थी।
सवाल यह भी है कि केस में सुनवाई के दौरान यदि सरकार की पैरवी मजबूत होती तो शायद प्रोमोशन में आरक्षण पर प्रतिबंध नहीं होता? हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरबाजा खटखटाया, अधिवक्ता मनोज गोरकेला ने सरकार की तरफ से केस लड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में प्रोमोशन में आरक्षण पर राज्य शासन को नियम बनाकर लाभ देने और नौकरी में प्रोमोशन संबंधी स्वतंत्र किए जाने के निर्देश दिए। जिसके बाद बनी गोरकेला समिति के नवीन पदोन्नति नियम को बनाया जो आज तक लागू नहीं किया गया।
मध्य प्रदेश में एक अनुमान के मुताबिक करीब सात लाख अधिकारी, कर्मचारी हैं। जिनमें से अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के करीब 60 हजार कर्मचारी पदोन्नति की कतार में हैं। पदोन्नति पर प्रतिबंध होने के कारण इन सभी को प्रोमोशन का लाभ नहीं मिल पारहा है। इसके अतिरिक्त 2006 से वर्तमान वर्ष तक सैकड़ों की संख्या में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी बगैर प्रोमोशन के ही सेवानिवृत्त हो गए।
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