भोपाल। जेपी नगर निवासी गैस पीड़ित अलीजा बी की आँखों में परेशानी है। लेकिन आयुष्मान कार्ड न होने के कारण वह सिर्फ शासकीय अस्पतालों में अपना इलाज करा रही है। वह बताती है कि, "दो साल पहले 2022 में जानकारी मिली की गैस पीड़ितों के लिए भी आयुष्मान कार्ड बनाए जा रहे हैं। अब किसी समस्या के लिए सरकारी के अलावा प्रायवेट अस्पताल में पांच लाख तक का निःशुल्क इलाज मिलेगा। हमने आवेदन भी किया। लेकिन कार्ड बना ही नहीं। गैस राहत विभाग के अधिकारियों के पास भी गए, उन्होंने ने कहा नाम और समस्या लिख कर दो, देख लेंगे! लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई।"
इधर, भोपाल के छोला रोड निवासी गैस पीड़ित आसिफ खान ने बताया कि उनका भी आयुष्मान कार्ड नहीं बना है। वह पिछले साल जब आवेदन करने गए थे, तो उन्हें बताया गया था कि उनका कार्ड कुछ दिनों में मिल जाएगा। लेकिन अबतक उनका कार्ड नहीं बन पाया।
आसिफ ने आगे कहा, "मेरी दोनों बेटियां टीबी से पीड़ित हैं। उनके इलाज की समस्या है। आयुष्मान कार्ड नहीं होने के कारण हम ठीक से इलाज नहीं करा पा रहे, पैसा होता तो प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराते।"
जीपी नगर के एक और गैस पीड़ित ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि, आयुष्मान भारत योजना के कारण के लिए उनसे सारे कागजात लिए गए लेकिन कार्ड नहीं बना। उन्होंने कहा "गैस पीड़ितों को राहत देने के नाम से एक विभाग बनाया गया। जिसमें हमारे राहत के लिए करोड़ों का फंड है। लेकिन अधिकारी भ्रष्टाचार करके उन पैसों का गबन करते हैं।"
साल 2022 जनवरी में आयुष्मान योजना में भोपाल गैस पीड़ितों को शामिल किया गया था। लेकिन दो साल में करीब 95 फीसदी से भी कम गैस पीड़ितों के आयुष्मान कार्ड बन पाए हैं। बीपीएल श्रेणी के गैस पीड़ितों के कार्ड बने हैं लेकिन योजना में कई तरह की बीमारियां और सपोर्टिव केयर शामिल नहीं है। आधिकारिक डाटा के मुताबिक 5.74 लाख लोग 1984 के गैस हादसे के पीड़ित हैं।
गैस राहत पुनर्वास विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक गैस पीड़ित परिवारों के अभी तक लगभग 13 हजार आयुष्मान कार्ड बना पाए हैं। जबकि गैस पीड़ितों की संख्या 5 लाख से अधिक है।
सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक, गैस पीड़ित परिवारों के हजारों आवेदन निरस्त कर दिए गए क्योंकि उनके नाम मुआवाजे के आदेश पत्र में आधार कार्ड से अलग हैं। जैसे कि किसी के नाम के आगे खान नही लगा है या बाई नहीं लिखा है। इन छोटी-छोटी कागजी गलतियों के कारण आवेदन निरस्त कर दिए गए हैं। गैस पीड़ित परिवारों का आरोप है कि उनके सहायता और उन्हें शासकीय योजनाओं से जोड़ने के लिए स्थापित किए गए गैस राहत विभाग के अधिकारी लापरवाही कर रहे हैं.
द मूकनायक से बातचीत करते हुए गैस पीड़ितों की समस्याओं पर काम कर रहीं भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एंड एक्शन की संचालक रचना ढींगरा का कहना है कि, अभी भी आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत गैस पीड़ितों के कार्ड न के बराबर बने हैं। और जिनके कार्ड भी बन गए गए हैं, उन्हें भी इलाज की सभी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।
रचना ढींगरा ने कहा, "सपोर्टिव केयर और बीमारियां जैसे सीटी स्कैन, ब्लड कैंसर के लिए ब्लड ट्रांस्फ्यूजन, कीमोथेरेपी के साइड इफैक्ट और स्टमक कैंसर की सपोर्टिव केयर योजना में कवर्ड नहीं है। गैस राहत विभाग के अधिकारी गंभीरता से काम नहीं कर रहे।"
केंद्र सरकार द्वारा जरूरतमंदों को मुफ्त इलाज मिले, इसलिए आयुष्मान भारत योजना वर्ष 2018 में शुरू की गई थी। योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा चिह्नित गरीब परिवारों का अनुबंधित अस्पतालों में पांच लाख रुपये तक का निःशुल्क इलाज किया जाता है। निःशुल्क इलाज के लिए साल 2011 की जनगणना में चिह्नित गरीब लोगों को ही पात्र मानकर आयुष्मान भारत योजना की पोर्टल की सूची में उन्हीं लोगों या उनके परिवारों को शामिल किया गया है।
मध्य प्रदेश आयुष्मान भारत के नोडल अधिकारी डॉ. संतोष सिसोदिया ने बताया कि योजना के अंतर्गत प्रदेश में आयुष्मान 2.2 लांच करने की तैयारी की जा रही है। चुनाव के बाद यह लांच हो जाएगी। इसमें मरीजों के लिए कई स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ेंगी।
1984 में दो दिसंबर की रात को भोपाल में मौत ने ऐसा तांडव मचाया कि आज तक उसके जख्म नहीं भर सके हैं। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से हुई जहरीली गैस के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए। इससे पूरे शहर में मौत का तांडव मच गया। मरने वालों की संख्या 16,000 से भी अधिक थी। मौत के बाद भी हजारों की संख्या में जो लोग जहरीली गैस की चपेट में आए वह आज तक इसका दंश झेल रहे हैं।
उस रात गैस त्रासदी से करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन, और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा। त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता। गैस त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। ये भयावह सिलसिला अभी भी जारी है और प्रभावित इलाकों में कई बच्चे असामान्यताओं के साथ पैदा होते रहे हैं।
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