भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें जमीन अधिग्रहण के मामले में सरकार को तत्काल मुआवजा राशि देने के आदेश दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि सरकार किसी की निजी जमीन को जबरन अधिग्रहित कर सकती है, लेकिन इसका मुआवजा समय पर और उचित ढंग से दिया जाना चाहिए। यह टिप्पणी तब आई जब अदालत ने शशि पांडे की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें याचिकाकर्ता ने पिछले कई सालों से मुआवजा न मिलने की शिकायत की थी।
जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की बेंच ने अपने फैसले में कहा, “यह बेहद ताज्जुब की बात है कि सरकार, जो कानून व्यवस्था का पालन करवाने वाली संस्था है, खुद ही जमीन अधिग्रहण के मामलों में गुंडों की तरह काम कर रही है। जिस तरह गुंडे लोगों की जमीन खाली कर उन्हें बेदखल करते हैं, उसी तरह का काम अब राज्य सरकार और अधिकारी भी कर रहे हैं।”
अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह मुआवजा राशि समय पर दे और प्रभावित व्यक्तियों को न्याय मिले। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सरकार कानून से ऊपर नहीं है और उसे अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना चाहिए।
यह मामला आधारताल, जबलपुर निवासी शशि पांडे की जमीन से जुड़ा है। उनकी 30 हजार वर्गफीट की जमीन, जो हाईवे से लगी हुई है, का अधिग्रहण सरकार ने साल 1988 में किया था। अधिग्रहण के बाद से अब तक उन्हें मुआवजा नहीं मिला। शशि पांडे ने तहसीलदार, एसडीएम और कलेक्टर से कई बार मुआवजे की मांग की, लेकिन कहीं से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।
थक-हार कर शशि पांडे ने 2023 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने सरकार से मुआवजा राशि की मांग की। याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि यह मामला केवल अनदेखी और प्रशासनिक लापरवाही का है, जिससे याचिकाकर्ता को आर्थिक और मानसिक रूप से भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में राज्य सरकार को आदेश दिया कि शशि पांडे को उनकी जमीन का मुआवजा 10 हजार रुपये प्रतिमाह की दर से 1988 से अब तक का भुगतान किया जाए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर सरकार ने समय पर मुआवजा नहीं दिया तो संबंधित कलेक्टरों से मुआवजे की राशि वसूल की जाएगी। इसके साथ ही अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे इस आदेश का पालन सुनिश्चित करें और हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को रिपोर्ट सौंपें।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के रवैए पर गंभीर नाराजगी जताई और कहा कि शासकीय तंत्र का यह रवैया बेहद गैर-जिम्मेदाराना है। अदालत ने कहा कि सरकार का यह काम नहीं कि वह किसी की निजी संपत्ति को जबरन अधिग्रहित कर ले और फिर मुआवजे के लिए उन्हें चक्कर लगवाए। अदालत ने चेतावनी दी कि राज्य सरकार को ऐसे मामलों में संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए और मुआवजा समय पर प्रदान करना चाहिए, नहीं तो कानूनी कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए।
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