मध्य प्रदेश: PSC की असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती प्रक्रिया में 43 सवालों में त्रुटियों का मामला, हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया पर लगाई रोक!

पीएससी के खिलाफ याचिकाकर्ताओं का यह भी आरोप है कि यह मुद्दा 2019 से जारी है, जिसमें हर बार परीक्षाओं में प्रश्न पत्रों में त्रुटियाँ की जाती हैं।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.
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भोपाल। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (PSC) की असिस्टेंट प्रोफेसर पदों की भर्ती प्रक्रिया को लेकर एक नई याचिका के बाद हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया को रोकते हुए इसे याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन कर दिया है। यह याचिका भर्ती परीक्षा के प्रश्न पत्रों में त्रुटियों को लेकर की गई है, जिसमें सामान्य अध्ययन और इतिहास विषयों से संबंधित प्रश्नों और उनके उत्तरों में कई गड़बड़ियों का मामला उठाया गया है।

याचिका कर्ताओं ने अपनी शिकायत में PSC पर आरोप लगाया है कि आयोग ने भर्ती परीक्षा के प्रश्न पत्र में कई गलत प्रश्न और उत्तर प्रस्तुत किए। खासकर इतिहास और सामान्य अध्ययन के पेपर में कई सवालों में त्रुटियाँ पाई गईं, जिनमें से केवल 2 त्रुटियों को सुधार किया गया, जबकि 39 में से शेष 37 त्रुटियों को सुधारने के लिए याचिका कर्ताओं को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

PSC द्वारा बार-बार की जा रही अनियमितताएँ

याचिका कर्ताओं में शामिल सागर निवासी देवेंद्र चौबे, विदिशा के अभिषेक प्रताप और बेतूल के शिवप्रसाद ने संयुक्त रूप से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। याचिका में कहा गया है कि PSC द्वारा सामान्य अध्ययन और इतिहास के प्रश्न पत्रों में कई प्रश्नों में त्रुटियाँ की गईं हैं। सामान्य अध्ययन के पेपर में 4 और इतिहास के पेपर में 39 सवालों के गलत उत्तरों का मामला उठाया गया है।

विशेष रूप से एक प्रश्न, "वीजा की प्रतीक्षा" किसकी आत्मकथा है, का उत्तर गलत दिया गया है। याचिका कर्ताओं ने बताया कि सही प्रश्न "वीजा की प्रतीक्षा में" होना चाहिए था, जो डॉ. भीमराव अंबेडकर की आत्मकथा का सही संदर्भ है। इस प्रकार, कुल 13 प्रश्नों की रचना गलत पाई गई है।

याचिका कर्ताओं ने हाईकोर्ट को यह भी बताया कि याचिका दाखिल करने के बाद PSC ने परीक्षा का परिणाम घोषित कर दिया, जिसमें त्रुटियों के कारण उनका चयन नहीं हो सका। अगर इन त्रुटियों को सुधार दिया जाता, तो वे साक्षात्कार चरण में सफल हो जाते। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए ताकि भविष्य में तीसरे पक्ष के हितों को हानि न हो और निष्पक्षता बनी रहे।

हाईकोर्ट की प्रारंभिक सुनवाई

इस मामले की प्रारंभिक सुनवाई जस्टिस संजय द्विवेदी की बेंच ने की, जहां अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने PSC की अनियमितताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि आगामी असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती प्रक्रिया पर तब तक रोक लगाई जाए जब तक कि याचिका पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता। हाईकोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए PSC और सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया।

इस निर्णय के साथ ही PSC की भर्ती प्रक्रिया फिलहाल याचिका के निर्णयाधीन हो गई है, और जब तक कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक आयोग की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगी रहेगी।

अभ्यर्थियों का यह भी आरोप!

याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया है कि पीएससी द्वारा आपत्तियों के निस्तारण के लिए प्रति प्रश्न ₹100 शुल्क लिया जाता है, जो कि उम्मीदवारों से अतिरिक्त वसूली का माध्यम बन गया है। इसके बावजूद, PSC ने सिर्फ 2 गलतियों को ही सुधारा और शेष 37 त्रुटियों को नजरअंदाज कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि वे इन त्रुटियों के साथ परीक्षा परिणाम का हिस्सा नहीं बन सके, जो कि अन्यायपूर्ण है।

पीएससी के खिलाफ याचिकाकर्ताओं का यह भी आरोप है कि यह मुद्दा 2019 से जारी है, जिसमें हर बार परीक्षाओं में प्रश्न पत्रों में त्रुटियाँ की जाती हैं। ऐसे में पीएससी के खिलाफ कोर्ट की यह कार्रवाई महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि इससे पीएससी की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

द मूकनायक से बातचीत करते हुए अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कहा, "हमने PSC के खिलाफ याचिका दायर की है, क्योंकि असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा में 43 सवालों में गंभीर त्रुटियाँ पाई गई हैं। आयोग ने केवल 2 गलतियों को सुधार किया है, जबकि 37 सवालों को अनदेखा किया गया है। यह मुद्दा 2019 से जारी है, जो उम्मीदवारों के लिए अन्यायपूर्ण है। हाईकोर्ट ने हमारी याचिका पर ध्यान दिया और भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाई है। हम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि आयोग को निष्पक्षता से कार्य करने के लिए बाध्य किया जाएगा।इस मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी, जब पीएससी और सामान्य प्रशासन विभाग अपना जवाब प्रस्तुत करेंगे।"

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