MP हाई कोर्ट जस्टिस के नाम सीधे चिट्ठी लिखने पर कलेक्टर पर कार्रवाई करने के निर्देश, कोर्ट ने CS से मांगा जवाब

जबलपुर हाई कोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने कहा, "अपर कलेक्टर और तहसीलदार से मजिस्ट्रेट पावर भी छीन लिए जाएं। कोर्ट ने निर्देश दिए कि अपर कलेक्टर और तहसीलदार दोनों को काम का जरा भी ज्ञान नहीं है, इसलिए इन्हें 6-6 महीने की ट्रेनिंग पर भेजा जाए।"
जबलपुर हाईकोर्ट
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भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सीधे जज के नाम से चिट्ठी भेजे जाने के मामले में, हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को कलेक्टर के खिलाफ कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट में खुद पेश नहीं होकर, अपर कलेक्टर और तहसीलदार के हाथ चिट्ठी भेजने पर नर्मदापुरम कलेक्टर सोनिया मीणा को कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने जमीन विवाद से जुड़े मामले में हाई कोर्ट जज को सीधे पत्र लिखना दुस्साहसपूर्ण बताया है।

दरअसल, जबलपुर हाई कोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया की कोर्ट ने अपने 30 पेज के अंतिम आदेश में राज्य की मुख्य सचिव (CS) वीणा राणा को निर्देश देते हुए कहा, "इस पूरे केस को हमने गंभीरता से लिया है। एक महीने के अंदर कलेक्टर नर्मदापुरम के खिलाफ एक्शन लीजिए, हाईकोर्ट के जज को डायरेक्ट नाम से चिट्ठी लिखकर भेज दी।" कोर्ट ने इस मामले में मुख्य सचिव से 30 अगस्त तक जवाब मांगा है।

सोनिया मीना (IAS) नर्मदापुरम कलेक्टर
सोनिया मीना (IAS) नर्मदापुरम कलेक्टर इंटरनेट

अपर कलेक्टर और तहसीलदार को ट्रेनिग दी जाए: हाई कोर्ट

कोर्ट ने यह भी कहा है, अपर कलेक्टर और तहसीलदार से मजिस्ट्रेट पावर भी छीन लिए जाएं। कोर्ट ने निर्देश दिए कि अपर कलेक्टर और तहसीलदार दोनों को काम का जरा भी ज्ञान नहीं है, इसलिए इन्हें 6-6 महीने की ट्रेनिंग पर भेजा जाए।हाईकोर्ट ने कहा कि पक्षकार अगर चाहे तो अपर कलेक्टर, तहसीलदार और कलेक्टर के खिलाफ क्रिमिनल और करप्शन का केस भी दायर कर सकते हैं।

जानिए क्या है मामला?

हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने नर्मदापुरम में जमीन से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान कलेक्टर सोनिया मीणा को उपस्थित होने को कहा था। लेकिन, कलेक्टर ने खुद कोर्ट जाने की जगह अपर कलेक्टर और तहसीलदार के हाथों सीधे हाईकोर्ट जज के नाम एक चिट्ठी भेज दी थी।

दरअसल, नर्मदापुरम (होशंगाबाद) में रहने वाले प्रदीप अग्रवाल और नितिन अग्रवाल का जमीन को लेकर विवाद था। विवाद नहीं सुलझा तो इसे लेकर प्रदीप अग्रवाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने नामांतरण की प्रक्रिया नए सिरे से करने का आदेश दिया था।

आदेश के बाद जब वापस जमीन नामांतरण का केस नर्मदापुरम गया तो वहां पर नामांतरण की कार्यवाही न कर सिवनी मालवा तहसीलदार ने दूसरे पक्ष नितिन अग्रवाल से बंटवारे का आवेदन रिकॉर्ड में लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी, जबकि हाईकोर्ट का आदेश था कि इसमें नामांतरण करना है, न कि बंटवारा।

इसके खिलाफ पक्षकार प्रदीप अग्रवाल ने रिवीजन आवेदन अपर कलेक्टर को सौंपा और बताया कि तहसीलदार की यह कार्यवाही हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन है, जिसे सुधारा जाए। अपर कलेक्टर ने भी तहसीलदार की कार्यवाही को सही ठहराया और कहा कि हाईकोर्ट के निर्देश का पालन हो रहा है।

जिसके चलते मामला दोबारा हाईकोर्ट पहुंचा जहां याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ गुलाटी ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट का आदेश नामांतरण का था, जबकि तहसीलदार बंटवारा कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने सुनवाई की और नर्मदापुरम कलेक्टर को उपस्थित होकर जमीन के मामले को लेकर हुई कार्यवाही समझाने को कहा था। हाई कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था कि कोई भी अधिकारी अपनी बात सरकारी वकील के जरिए ही कोर्ट में रख सकता है, इस तरह सीधे जज को चिट्ठी नहीं भेज सकता। कोर्ट ने नर्मदापुरम कलेक्टर के इस रवैये पर उनके खिलाफ कार्रवाई की बात कही थी।

मजाक बनाकर रखा हुआ है: हाई कोर्ट

जस्टिस अहलूवालिया ने कलेक्टर की तरफ से लेटर लेकर आए एडीएम पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा था, कि "एडिशनल कलेक्टर हैं, तो उसे लगता था कि मेरी कलेक्टर हैं ये तो कुछ भी कर सकती हैं। मजाक बनाकर रखा हुआ है। जब डिप्टी एडवोकेट जनरल कलेक्टर की तरफ से बात कर रहा है और वो पीछे खड़े होकर मुझे कलेक्टर का लेटर दिखा रहा है।"

जस्टिस अहलूवालिया ने कहा आगे कहा, "सीधे संस्पेड करने के निर्देश देता हूं, फिर देखता हूं कि कैसे सीएस उसे रिमूव करते हैं। आप लोगों के अफसरों की इतनी हिम्मत बढ़ गई कि आपको कुछ नहीं समझते। एडीएम समझते हैं कि अगर हाईकोर्ट जज को कलेक्टर ने लेटर लिख दिया तो सब कुछ हो गया।"

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