ग्राउंड रिपोर्ट: भोपाल गैस त्रासदी की विधवाओं की पेंशन में देरी, महिलाओं ने कहा "महीनों अटकी रहती है राशि"

भोपाल गैस त्रासदी (1984) में अपने पति खो चुकी विधवाओं को राज्य सरकार एक हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन देती है। यह मामूली राशि उनके घर खर्च का एकमात्र सहारा है। लेकिन यह पेंशन महीनों तक अटकी रहती है।
बैंक पासबुक दिखाती गैस पीड़ित विधवाएं
बैंक पासबुक दिखाती गैस पीड़ित विधवाएं द मूकनायक
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भोपाल। राजधानी में भोपाल गैस त्रासदी से पीड़ित विधवाओं को एक बार फिर पेंशन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। पिछले तीन महीनों से करीब पांच हजार महिलाओं को पेंशन नहीं मिली है, जिससे उनकी रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किलों से घिर गई है। जानकारी के अनुसार, गैस राहत विभाग के पास बजट की कमी के कारण हर छह महीने में ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा मजबूर और जरूरतमंद विधवाओं को भुगतना पड़ता है।

विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की लापरवाही और समय पर बजट आवंटन न होने के चलते इन महिलाओं को अपने दैनिक खर्चों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल सरकारी तंत्र की असफलता को उजागर करती है, बल्कि उन महिलाओं की तकलीफ को भी, जिन्होंने पहले ही जीवन में अपार दुःख झेले हैं। द मूकनायक की टीम राजधानी भोपाल के गैस पीड़ित इलाकों में पहुँचीं जहां, गैस पीड़ित विधवाओं ने यह समस्या साझा की है।

भोपाल के जेपी नगर की निवासी इंद्रा बाई पिछले तीन महीनों से अपनी पेंशन की राशि न मिलने के कारण परेशानी में हैं। उन्हें रोज़मर्रा की ज़रूरतों और घर के खर्च को पूरा करने में दिक्कतें आ रही हैं। द मूकनायक से बातचीत में इंद्रा बाई ने अपनी समस्या साझा करते हुए कहा, "यह कोई पहली बार नहीं है जब पेंशन में देरी हुई हो। इससे पहले भी महीनों तक पेंशन की राशि अटकी रही है। हर बार गैस राहत विभाग में शिकायत दर्ज करानी पड़ती है और अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, तब जाकर कुछ समाधान निकलता है।" इंद्रा बाई की तरह कई और महिलाएं हैं, जिन्हें पेंशन में देरी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

इसी तरह, जेपी नगर की ही एक अन्य गैस पीड़ित विधवा, शकीला बी, ने भी अपनी व्यथा को व्यक्त करते हुए बताया कि पिछले तीन महीनों से उनके खाते में पेंशन का एक नया पैसा नहीं आया। उन्होंने कहा, "गैस राहत विभाग की लापरवाही के चलते हमें हमारी पेंशन नहीं मिल रही है। अधिकारी हर बार नई-नई वजहें बताते हैं, जैसे कि कभी बजट की कमी तो कभी तकनीकी खराबी का बहाना बनाकर मामले को टाल दिया जाता है। जब हम शिकायत करते हैं, तो अधिकारी यह कहकर बात टाल देते हैं कि सरकार ने अभी तक पैसा नहीं भेजा है। पैसा आने पर ही खातों में ट्रांसफर किया जाएगा।"

यह स्थिति उन हजारों गैस पीड़ितों की है जो अपनी पेंशन के लिए पूरी तरह सरकार पर निर्भर हैं। इन पीड़ितों के पास अब अपने जीवन यापन का कोई अन्य साधन नहीं है, और पेंशन ही उनके लिए एकमात्र सहारा है। पेंशन की राशि में देरी उनके जीवन में आर्थिक संकट को और गहरा कर देती है, जिससे उनकी ज़िंदगी और भी कठिन हो जाती है।

गैस पीड़ित विधवाओं की पेंशन में देरी से बढ़ी परेशानियां

भोपाल गैस त्रासदी (1984) में अपने पति खो चुकी विधवाओं को राज्य सरकार एक हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन देती है। यह मामूली राशि उनके घर खर्च का एकमात्र सहारा है। लेकिन यह पेंशन महीनों तक अटकी रहती है। कई बार छह महीने तक भी पेंशन नहीं आती, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। कई विधवाओं को राशन की दुकानों से उधार लेना पड़ता है, क्योंकि उनके पास कोई और सहारा नहीं बचा है। इन महिलाओं की हालत इतनी गंभीर हो गई है कि वे बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रही हैं। गैस पीड़ित संगठनों ने सरकार से इस समस्या का तत्काल समाधान करने की मांग की है।

गैस राहत विभाग पर लापरवाही का आरोप

इस मामले में भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एंड एक्शन की संचालक रचना ढींगरा ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि गैस पीड़ित विधवाओं की पेंशन के मामले में तीन महीने से कोई प्रगति नहीं हुई है। ढींगरा ने कहा कि गैस राहत विभाग के अधिकारियों की लापरवाही और सरकार की अनदेखी के कारण पीड़ितों की समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है। उन्होंने बताया कि विभाग से कई बार संपर्क किया गया, लेकिन केवल आश्वासन ही मिलते रहे हैं।

ढींगरा के अनुसार, गैस राहत विभाग को इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। उन्होंने कहा, "हमने विभाग को पत्र भेजकर जल्द से जल्द पेंशन राशि जारी करने की मांग की है।" इस बीच, विभाग की ओर से केवल यह बताया जा रहा है कि पेंशन की राशि जल्द ही जारी की जाएगी, लेकिन कोई निश्चित तारीख नहीं दी गई है।

यह स्थिति उन विधवाओं के लिए और भी चिंताजनक हो गई है, जो पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रही हैं। तीन महीने का लंबा इंतजार उनके लिए बेहद मुश्किल भरा साबित हो रहा है। गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे संगठनों ने इस मामले में सरकार से जल्द हस्तक्षेप की मांग की है, ताकि पीड़ित विधवाओं को राहत मिल सके।

जानिए क्या था भोपाल गैस कांड?

1984 में दो दिसंबर की रात को भोपाल में मौत ने ऐसा तांडव मचाया कि आज तक उसके जख्म नहीं भर सके हैं। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्‍ट्री से हुई जहरीली गैस के रिसाव से रात को सो रहे हजारों लोग हमेशा के लिए मौत की नींद सो गए। इससे पूरे शहर में मौत का तांडव मच गया। मरने वालों की संख्या 16,000 से भी अधिक थी। मौत के बाद भी हजारों की संख्या में जो लोग जहरीली गैस की चपेट में आए वह आज तक इसका दंश झेल रहे हैं।

उस रात गैस त्रासदी से करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन, और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा। त्रासदी का असर लोगों की अगली पीढ़ियों तक ने भुगता। गैस त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। ये भयावह सिलसिला अभी भी जारी है और प्रभावित इलाकों में कई बच्‍चे असामान्‍यताओं के साथ पैदा होते रहे हैं।

नोट:- द मूकनायक प्रतिनिधि ने भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के संचालक के कार्यालय से शासन का पक्ष जानने के लिए संपर्क किया। लेकिन फोन पर बात नहीं हो पाई। समाचार लिखे जाने तक मेल भेजने के बावजूद भी कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। यदि आगे उत्तर प्राप्त होता है, तो समाचार को अपडेट किया जाएगा।

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