कुर्सियां खाली, शिकायतें ठंडी; नियुक्तियों की राह तकते मध्य प्रदेश के SC-ST और महिला आयोग!

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार महिला और अनुसूचित जाति/जनजाति आयोगों में लगभग 60 हजार मामले लंबित हैं। इनका निराकरण तब ही हो सकता है, जब इन आयोगों में अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति की जाएगी।
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भोपाल। राज्य अनुसूचित जाति आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग, और राज्य महिला आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियों के अभाव में हजारों की संख्या में शिकायतें लंबित पड़ी हैं, जिससे शिकायतकर्ताओं को न्याय मिलना मुश्किल हो गया है। यह स्थिति मार्च 2023 से बनी हुई है जब से इन आयोगों के प्रमुख पद खाली हैं। इस बीच, आयोगों के पास बड़ी संख्या में शिकायती पत्र तो पहुँच रहे हैं, लेकिन किसी का निराकरण नहीं हो पा रहा है। शिवराज सरकार के बाद बनी डॉक्टर मोहन यादव की सरकार भी इन आयोगों में नियुक्ति नहीं कर पाई है, जिससे ये संवैधानिक संस्थाएँ बुनियादी कामकाज तक सीमित रह गई हैं।

राज्य महिला आयोग के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आयोग को प्रतिमाह लगभग 300 शिकायतें मिलती हैं। सालभर में यह संख्या तीन हजार के करीब पहुँच जाती है। इनमें से कुछ शिकायतें जिनका आयोग से सीधा संबंध नहीं होता, उन्हें निरस्त कर दिया जाता है। बाकी शिकायतों पर संबंधित विभाग से प्रतिवेदन मंगाया जाता है, लेकिन अंतिम निर्णय के लिए अध्यक्ष या सदस्य की नियुक्ति अनिवार्य होती है। यही हाल अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग का भी है, जहाँ हजारों मामलों का निपटारा अब तक नहीं हो पाया है।

संविधान में दिए गए न्याय पाने के अधिकार का उल्लंघन स्पष्ट रूप से सामने आता है। संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सभी नागरिकों को प्राप्त है, लेकिन आयोगों में लंबित पड़ी शिकायतें इस अधिकार का हनन कर रही हैं। संवैधानिक संस्थाओं के कार्यों में इस तरह की बाधा नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।

आयोग को है सिविल न्यायालय की शक्तियां

राज्य अनुसूचित जाति/ जनजाति आयोग और महिला आयोग जैसी संस्थाओं के पास सिविल न्यायालय की शक्तियां है। यह आयोग विभागीय जांच की समीक्षा कर संबंधित अधिकारियों की पेशी लगाकर सुनवाई करते हैं और शासन को अनुशंसा भेजते हैं। परंतु अध्यक्ष या सदस्यों के बिना यह शक्तियाँ निष्प्रभावी हो जाती हैं।

इन नियुक्तियों में देरी का प्रमुख कारण वर्ष 2020 से लंबित न्यायिक विवाद है। कमलनाथ सरकार द्वारा किए गए नियुक्तियों को भाजपा सरकार ने निरस्त कर दिया था, जिसके खिलाफ नियुक्त सदस्य न्यायालय पहुँचे। जबलपुर हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी, लेकिन इस दौरान आयोगों के कार्यकाल में भी कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका। राज्य अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य प्रदीप अहिरवार के अनुसार, "सरकार ने नियुक्तियाँ रद्द कर संवैधानिक प्रक्रिया में रुकावट डाली, जिसका सीधा असर जनता को न्याय मिलने पर पड़ा।"

महिला आयोग में 35 हजार से अधिक मामले लंबित

महिला आयोग की स्थिति और भी गंभीर है। पूर्व सदस्य संगीता शर्मा ने द मूकनायक को बताया, “जब मैंने 2020 में कार्यभार संभाला था, तब आयोग में दस हजार मामले पहले से लंबित थे। आज यह संख्या 35 हजार से भी अधिक हो गई है।” उनका कहना है कि सरकार महिलाओं के अधिकारों की बात तो करती है, परंतु आयोग में नियुक्तियों के अभाव में महिलाओं को न्याय नहीं मिल पा रहा है।

संविधान के अनुच्छेद 32 का हनन

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए अदालत जाने का अधिकार देता है। लेकिन जब संवैधानिक आयोगों में ही न्याय प्रदान करने वाले प्रमुख पद खाली हों, तो यह अधिकार एक औपचारिकता बनकर रह जाता है। आयोगों में लंबित पड़ी 60 हजार से अधिक शिकायतें इस बात की गवाही देती हैं कि जनता को न्याय दिलाने की संवैधानिक प्रक्रिया बाधित हो चुकी है।

कब होगी नियुक्ति?

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार महिला और अनुसूचित जाति/जनजाति आयोगों में लगभग 60 हजार मामले लंबित हैं। इनका निराकरण तब ही हो सकता है, जब इन आयोगों में अध्यक्ष और सदस्य की नियुक्ति की जाएगी। परंतु फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि नियुक्तियाँ कब होंगी। प्रतिदिन दर्जनों शिकायतें आयोगों तक पहुँच रही हैं, जिनका निपटारा फिलहाल केवल प्रशासनिक अधिकारियों के हाथों में है, जो पर्याप्त नहीं है। हाल ही में डॉ. मोहन सरकार ने परसीमन आयोग का गठन किया है, जिसकी घोषणा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सोमवार को की है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि सरकार SC-ST और महिला आयोग जैसे महत्वपूर्ण आयोगों में नियुक्ति क्यों नहीं कर रही है।

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