MP: भोपाल गैस पीड़ितों ने मेमोरियल अस्पताल और एम्स के प्रस्तावित विलय के खिलाफ उठाई आवाज़

गैस पीड़ित संगठनों ने कहा, "यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने 9 अगस्त 2012 को दिए गए आदेश में बीएमएचआरसी को एक स्वायत्त शिक्षण संस्थान बनाने का निर्देश दिया था ताकि यह उत्कृष्ट चिकित्सकीय स्टाफ को आकर्षित कर सके और गैस पीड़ितों की बेहतर चिकित्सा देखभाल कर सके।"
गैस पीड़ित संगठनों के पदाधिकारी
गैस पीड़ित संगठनों के पदाधिकारी
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मध्य प्रदेश। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के चार प्रमुख संगठनों ने गुरुवार को एक पत्रकार वार्ता में भोपाल मेमोरियल अस्पताल और रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), भोपाल के साथ प्रस्तावित विलय की कड़ी निंदा की। इन संगठनों ने इस विलय को भोपाल गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य के लिए घातक बताया और इसे अविलंब रद्द करने की मांग की।

पीड़ितों के संगठनों का कहना है कि यह प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करता है, जो विशेष रूप से भोपाल गैस पीड़ितों के लिए बेहतर चिकित्सा सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए दिए गए थे। संगठनों ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री को पत्र लिखा है, जिसमें प्रस्तावित विलय को तुरंत निरस्त करने की मांग की गई है।

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, “एम्स, भोपाल के साथ प्रस्तावित विलय से भोपाल के पीड़ितों के लिए उपलब्ध मौजूदा स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी। यह मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव पहले भी 2018 में लाया गया था, जिसे सरकार द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने अगस्त 2019 में खारिज कर दिया था। लेकिन अब पांच साल बाद फिर से यह प्रस्ताव क्यों उठाया जा रहा है, यह समझ से परे है।"

उन्होंने कहा कि बीएमएचआरसी विशेष रूप से गैस पीड़ितों के लिए बनाई गई स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था है और इसे एम्स जैसी संस्था के साथ विलय करना, जहां सामान्य मरीजों की संख्या बहुत अधिक है, पीड़ितों के साथ अन्याय होगा।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन!

भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने कहा कि प्रस्तावित विलय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है। "सुप्रीम कोर्ट ने 9 अगस्त 2012 को दिए गए आदेश में बीएमएचआरसी को एक स्वायत्त शिक्षण संस्थान बनाने का निर्देश दिया था ताकि यह उत्कृष्ट चिकित्सकीय स्टाफ को आकर्षित कर सके और गैस पीड़ितों की बेहतर चिकित्सा देखभाल कर सके। इस विलय से यह उद्देश्य पूरी तरह से बाधित हो जाएगा।"

नामदेव ने यह भी कहा कि "जनवरी 2024 से एम्स, भोपाल ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के बाद गैस पीड़ितों के कैंसर रोगियों का इलाज शुरू किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त निगरानी समिति ने पाया कि एम्स, भोपाल में मरीजों को चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने में तीन से चार महीने की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है। यह प्रस्तावित विलय के खतरों की ओर इशारा करता है।"

भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के नवाब खान ने कहा कि इस प्रस्तावित विलय के बारे में पीड़ित संगठनों से कोई परामर्श नहीं किया गया, जो बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कहा, "इस तरह के गंभीर मुद्दे पर पीड़ितों से परामर्श न करना अधिकारियों की असंवेदनशीलता को दर्शाता है। भोपाल स्थित किसी भी पीड़ित संगठन से इस मामले पर राय नहीं ली गई, जो उनके स्वास्थ्य और जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।"

डॉव काबाइड के खिलाफ बच्चे संगठन की नौशीन खान ने इस मुद्दे पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "यह चौंकाने वाला है कि जिन अधिकारियों ने इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की मांग की है, उन्होंने पीड़ितों की राय जानने की आवश्यकता नहीं समझी। इस तरह की महत्वपूर्ण निर्णय प्रक्रिया में पीड़ितों को नजरअंदाज करना निंदनीय है।"

बता दें, भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के स्वास्थ्य से संबंधित यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है। भोपाल मेमोरियल अस्पताल का एम्स, भोपाल के साथ प्रस्तावित विलय उन लाखों पीड़ितों की चिकित्सा सेवाओं को प्रभावित कर सकता है, जो इस अस्पताल पर निर्भर हैं। संगठनों ने सरकार से अपील की है कि इस विलय को तुरंत रद्द किया जाए और गैस पीड़ितों के हितों की रक्षा के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।

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