हैदराबाद- बिहार और आंध्र प्रदेश के बाद, अब तेलंगाना तीसरा राज्य बन गया है जिसने जातिगत सर्वे कराने का निर्णय लिया है। तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने अपने चुनावी वादों को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए सर्वे प्रक्रिया शुरू की है। मुख्य सचिव श्रीमती ए शांति कुमारी ने इस सम्बन्ध में आदेश दिए हैं.
सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार और राजनीतिक अवसरों को बढ़ाने के लिए BCs, SCs, STs, और अन्य हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए एक व्यापक परिवार सर्वेक्षण करने का निर्णय 4 फरवरी को मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की अध्यक्षता में हुई एक कैबिनेट बैठक में लिया गया था।
इस कदम को राज्य की पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है, जो लंबे समय से अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे थे। विधानसभा से मंजूरी प्राप्त करने के बाद, सरकार ने राज्य भर में डोर-टू-डोर परिवार सर्वेक्षण करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसका कार्य पूरा करने के लिए 60 दिनों की समय सीमा निर्धारित की गई है। मुख्य सचिव शांति कुमारी ने हाल ही में सरकारी आदेश जारी किया, जिसमें योजना विभाग को इस प्रक्रिया की निगरानी करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त 2024 के निर्णय पर तुरंत प्रतिक्रिया दी थी और वादा किया था कि तेलंगाना सबसे पहले इस फैसले को लागू करेगा। उन्होंने घोषणा की कि राज्य में सभी जातियों की सही संख्या और स्थिति का पता लगाने के लिए जातिगत सर्वे कराई जाएगी।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी देश भर में, खास तौर पर कांग्रेस शासित राज्यों में, जाति जनगणना पर बोलते रहे हैं, इसी से प्रेरणा लेते हुए मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने यहां भी इसकी घोषणा की।
यह प्रक्रिया अब शुरू हो गई है और इसके तहत सभी जातियों की जनसंख्या के आंकड़े जुटाए जाएंगे, जिससे यह तय हो सके कि किस जाति को कितना आरक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जातिगत सर्वे के लिए सभी तैयारियाँ पूरी कर ली गई हैं। इसके तहत राज्य के सभी पिछड़े और अनुसूचित जातियों के परिवारों की जानकारी एकत्रित की जाएगी। योजना विभाग को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह इस जातिगत सर्वे के लिए आवश्यक सभी संसाधन जुटाए और जनगणना की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करे। इस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए एक वरिष्ठ IAS अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा, जो योजना विभाग और BC आयोग के बीच समन्वय करेगा।
जातिगत सर्वे का निर्णय तेलंगाना की कांग्रेस सरकार के लिए राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राज्य के पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों को अपनी तरफ आकर्षित करने का एक प्रयास है। राज्य में जातिगत जनगणना की मांग लंबे समय से की जा रही थी, लेकिन अब जाकर इसे लागू किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की कि स्थानीय निकाय चुनाव तब तक नहीं कराए जाएंगे जब तक कि जातिगत सर्वे पूरी नहीं हो जाती। उन्होंने इस जनगणना की रिपोर्ट 9 दिसंबर 2024 तक सौंपने की समयसीमा तय की है, जो कांग्रेस की प्रमुख नेता सोनिया गांधी के जन्मदिन के अवसर के साथ मेल खाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को यह अधिकार दिया है कि वे अनुसूचित जातियों (SC) का उप-वर्गीकरण कर सकते हैं, ताकि समाज के उन वर्गों को न्याय मिल सके जो अब तक आरक्षण के पर्याप्त लाभ नहीं उठा पाए थे। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद तेलंगाना सरकार ने इसे लागू करने का ऐलान किया और जातिगत सर्वे को भी इस निर्णय के साथ जोड़ा।
सर्वे के साथ-साथ तेलंगाना सरकार ने SC उप-वर्गीकरण पर भी काम शुरू कर दिया है। इसके लिए एक एक-सदस्यीय आयोग का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति शमीम अख्तर कर रहे हैं। यह आयोग 60 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा और SC उप-वर्गीकरण को कैसे लागू किया जाए, इसका अध्ययन करेगा।
मुख्यमंत्री ने सभी विभागों को निर्देश दिया है कि वे इस जनगणना और उप-वर्गीकरण के लिए जरूरी आंकड़े और जानकारी आयोग को उपलब्ध कराएं। आयोग SC उप-वर्गीकरण के लिए एक वैज्ञानिक पद्धति विकसित करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि समाज के सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिले।
पिछले साल बिहार में किए गए जातिगत सर्वेक्षण में पाया गया कि राज्य की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 63.13% है, जिससे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण कोटे में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आंध्र प्रदेश सरकार ने भी इस साल जनवरी में घर-घर जाकर जाति आधारित सर्वेक्षण शुरू किया था।
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