ऑस्कर फिल्मी दुनियां के टॉप अवॉर्ड्स में से एक है।
ऑस्कर के स्टूडेंट्स एकेडमी अवार्ड के लिए हर साल सैकड़ों फिल्मों की प्रविष्टियां दुनिया भर से पहुंचती है जिन्हें अलग-अलग फिल्म मेकिंग कॉलेज स्टूडेंट्स द्वारा बनाया जाता है। इस बार भी 2000 से ज्यादा फिल्में भेजी गई थी, जिनमे से "चंपारण मटन" भारत की तरफ से चुनी गई इकलौती फिल्म है।
दरअसल यह मूवी एक एग्जाम टास्क के तहत बनाई गई, जिसे डिप्लोमा मूवी भी बोलते हैं। प्रॉपर तरीके से इन छात्रों को इसके लिए नंबर दिए जाते हैं। पूरी फिल्म के लिए एक टीम बनाई जाती है जिसमें निर्देशक, राइटर, सिनेमेटोग्राफर, एडिटर, साउंड डिजाइनर आदि शामिल होते हैं। इन सबको इनके किरदार के मुताबिक नंबर दिए जाते हैं।
बाद में इन फिल्मों को कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भेजा जाता है। इन्ही सब यात्राओं से गुजर कर चंपारण मटन भी ऑस्कर तक पहुंचा है। कुल चार कैटेगरी में 16 फिल्में अभी रेस में है जो की फाइनल के लिए मुकाबला करेगी।
"चंपारण मटन" नैरेटिव कैटेगरी में सेमीफाइनल तक पहुंची है। इस कैटेगरी में भारत का मुकाबला अर्जेटिना, जर्मनी, बेल्जियम से है। यह अवार्ड 1972 से दिया जा रहा है।
रंजन उमाकृष्णन बिहार के हाजीपुर के दीर गांव के रहने वाले हैं। इनके पिता जूते चप्पल बनाते हैं। गरीबी में पले बढ़े रंजन फिलहाल FTII पुणे से पढ़ाई कर रहे हैं। इससे पहले उन्होंने MIT से Btech किया था। Mtech की पढ़ाई के लिए वह धनबाद गए, हालांकि उन्होंने बीच में पढ़ाई छोड़ दी। इन सब के बीच उन्होंने कई जगह छोटे मोटे काम भी किए। दोस्त की मदद से रंजन FTII पुणे तक पहुंचे वही अब "चंपारन मटन" की उपलब्धि के बाद उन्हें पूरे देश भर में लोग जानने लगे हैं। बता दे इसके पहले भी रंजन कुमार एक शॉर्ट फिल्म बना चुके है, जिसका नाम "सराय" है।
बसपा के नेशनल कॉर्डिनेटर आकाश आनंद ने फिल्म के निर्देशक रंजन कुमार व पूरी टीम को सफल भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए ट्वीट किया।
24 मिनट के फिल्म में कई किरदारों को देखा जा सकता है, लेकिन मुख्य रूप जो चेहरे आपको देखने को मिलेंगे उनमें से वेब सीरीज " पंचायत" में विकास के किरदार से अपनी पहचान बना चुके चंदन राय है व फलक खान फीमेल लीड रोल में दिखाई दे रही हैं।
"चंपारण मटन" महज 24 मिनट की शॉर्ट फिल्म है। जो कि एक गरीब व लाचार परिवार की कहानी है। इस फिल्म में लॉकडाउन की वजह से गई नौकरी के बाद अपने गांव लौटे एक ऐसे परिवार की तकलीफ़ चित्रित की गई है, जो गांव में चंपारण मटन की शुरुआत करता है। इस फिल्म की एक और खासियत यह हैं की ये बज्जिका भाषा में बनाया गया है। बज्जिका या वज्जिका उत्तर बिहार के उस क्षेत्र की भाषा है जो महावीर और बुद्ध की जन्म और कर्म भूमि के रूप में जानी जाती है।
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