उत्तर प्रदेश। यूपी के किसान हजारी प्रसाद (67) को अभी कुल पांच दिन हुए अपने खेत में धान की नर्सरी डाले हुए, तब से वह लगभग तीन बार नर्सरी में पंपिंग सेट से पानी चला चुके हैं। अगर पूर्वी यूपी की बात करें तो यहां दिन में लू और कड़ी धूप में एक दिन में खेत की नमी सूखकर उसकी मिट्टी पत्थर जैसी कठोर हो जाती है।
हजारी प्रसाद ने द मूकनायक को बताया कि वैसे तो धान की नर्सरी डालने का आदर्श समय जून की शुरुआत या माह का पहला पखवाड़ा होता है, लेकिन मौसम और पानी की समस्या के कारण किसान आधे जून तक भी धान की नर्सरी डालते हैं।
हजारी कहते हैं कि, “अगर पहली जुलाई तक बरखा (बरसात) हो गई तो लोग धान बैठाना (रोपाई) शुरू कर देंगे। नर्सरी तैयार होने के बाद अगर बारिश हो जाती है तो रोपाई के लिए बढ़िया मौका मिल जाता है।”
यह ऐसी फसल है जिसके लिए किसान बहुत हद तक बारिश पर ही निर्भर होता है। क्योंकि कई किसानों के पास पर्याप्त सिंचाई के साधन नहीं होते, साथ ही अधिकांश खेत नदियों, तालाबों या नहरों से दूर स्थित होते हैं, जिससे उनकी सिंचाई करना मुश्किल होता है। इसके अलावा प्राकृतिक बारिश से धान की फसल का बेहतर विकास हो पाता है।
धान की खेती के लिए 21-40 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान आदर्श माना जाता है। जाहिर है कि अगर तापमान की बात की जा रही है तो यूपी में तापमान इस समय 38 से 40 डिग्री सेन्टीग्रेट के बीच है।
महिला किसान दुखना देवी (64) बताती हैं कि धान की नर्सरी जब 20-22 दिन की हो जाती है तब यह खेत में रोपाई लायक होती है। वह बताती हैं, “जिस दिन धान की नर्सरी डाली गई है तब से कई बार उसमें पानी चलना पड़ा है, क्योंकि गर्मी बहुत तेज है। खेत का पानी बहुत जल्दी सूख जाता है। धान के आंखे (अंकुर) अभी नाजुक हैं, धूप से जल न जाएं इसलिए हर एक या दो दिन के अंतराल पर नर्सरी में पानी डालना पड़ रहा है।”
वह कहती हैं कि किसान नर्सरी तो जून की शुरुआत में ही डाल देते हैं, जिसे 20 दिन बाद खेत में रोप देना चाहिए। लेकिन, बारिश होने में हर साल देरी होती है, जिससे लोगों को लगभग एक महीने इंतजार करना पड़ता है। जब जुलाई की शुरुआत में या महीने के बीच में बारिश होती है तब किसान हर काम छोड़कर धान की रोपाई शुरू कर देते हैं।
अगर जून में ही बारिश शुरू हो जाए तो अधिकांश किसान इसी समय रोपाई करना शुरू कर देंगे। लेकिन ऐसा होता कहां है।
दुखना देवी
आप को बात दें कि उत्तर प्रदेश में प्रमुख रूप से किसान तीन फसलों - गेहूं, गन्ना और धान की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। भारत में यदि कुल चावल उत्पादन की बात करें तो यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021-22 में 129,471 टन चावल का उत्पादन हुआ था, वहीं साल 2022-23 की रिपोर्ट के मुताबिक, कुल चावल का उत्पादन 136,000 टन रिकॉर्ड किया गया है। यही वजह है कि भारत में खाद्य फसलों में चावल सबसे प्रमुख फसल गिनी जाती है।
धान की तैयार फसल की कुटाई के बाद उसका चावल बनता है जो हर भारतीय के व्यंजन में कभी न गायब होने वाला नरम, मुलायम और लोकप्रिय खाद्य है। भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल है, जिसका कुल रिकॉर्ड 13.62 फीसदी का है। वहीं, दूसरे पायदान पर 12.81 फीसदी के साथ उत्तर प्रदेश का नंबर आता है। जबकि, तीसरे पायदान पर पंजाब है, जिसकी कुल 9.96 फीसदी की हिस्सेदारी है। पूरे देश में करीब 36 फीसदी चावल का उत्पादन इन तीन राज्यों से ही होता है। इसके अलावा देश के पूर्वी और पश्चिमी भाग में भी चावल की खेती की जाती है।
धान की खेती के लिए ऐसी मिट्टी उपयुक्त होनी चाहिए जिसकी जलधारण क्षमता अधिक हो, जैसे- चिकनी, मटियार या मटियार-दोमट मिटटी आदि। भूमि के पीएच मान की बात करें तो ये 5.5 से 6.5 सबसे अच्छा माना जाता है, हालांकि धान की खेती 4 से 8 या इससे भी अधिक पीएच मान वाली भूमि में की जा सकती है।
गुरुवार को भारतीय मौसम विभाग की वैज्ञानिक सोमा सेन ने न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में कहा कि उत्तर भारत में मौसम में बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं हुआ है। हीटवेव के कोर जोन- उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड में आज भी रेड अलर्ट रहेगा। बिहार में 2 दिन तक रेड अलर्ट रहेगा, उसके बाद ऑरेंज और फिर येलो अलर्ट रहेगा।
उन्होंने बताया कि हीटवेव के कोर जोन- उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड में आज भी रेड अलर्ट रहेगा। बिहार में 2 दिन तक रेड अलर्ट रहेगा, उसके बाद ऑरेंज और फिर येलो अलर्ट रहेगा। झारखंड में 3 दिन (13, 14 और 15 जून) तक रेड अलर्ट रहेगा। उत्तर प्रदेश में 3-4 दिन तक रेड अलर्ट रहेगा, फिर ऑरेंज अलर्ट रहेगा।
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