लखनऊ। भारत कृषि प्रधान देश है, लेकिन यूपी के किसान इस समय अपने 75 सालों के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। गांव के लोग दिन और रात अपनी फसलों को आवारा जानवरों से रखवाली करते हुए नजर आते हैं। इन किसानों ने अपने खेतों पर रस्सी, निवाण, साड़ियाँ और कटीले तार खेतों में लगाए हैं। इसके बावजूद आवारा जानवर फसलों को चर जाते हैं। किसानों ने बताया इन जानवरों का प्रकोप रात में बढ़ जाता है। ये जानवर टोली बनाकर चलते हैं। एक टोली में करीब 50 से 60 गोवंश होते हैं, और यहां ऐसी कई टोलियां हैं। ये टोलियां जिस तरफ निकल जाती हैं उसी तरफ फसल तहस-नहस कर देती हैं। लेकिन इन आवारा जानवरों की तरफ सरकार या प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है।
द मूकनायक टीम आधी रात में किसानों के साथ खेतों में उनके साथ गई और किसानों के कुछ दृश्य अपने कैमरे में कैद किए। आधी रात पारा 5 डिग्री से नीचे गिर जाता है। किसान अपने खेतों में आग के सहारे बैठे फसलों की रखवाली करते नजर आते हैं। खेत में जैसे ही कोई आहट होती है तो हो...हो... हई... हई... की आवाज देकर के आवारा पशुओं को दौड़ाते हैं। ऐसे ही रात कटती है। अगले दिन वही दिनचर्या फिर शुरू हो जाती है।
गांव के रहने वाले किसान मनोज कुमार सिंह ने बताया कि, "खेतों में करीब 150 से 200 आवारा गाय और सांड घूम रहे हैं जो फसलों को तहस-नहस कर देते हैं और उसे चर जाते हैं। इस समय हमारे खेत में गेहूं-सरसों की फसल है, गेहूं की फसल तो एक बार जानवर चर गए थे, अब दोबारा से बोई है। पिछली बार तो मक्के फसल को जानवरों ने पूरी तरह से चर लिया था।"
रात में घना कोहरा था, जहां किसान गोविंद सिंह से मुलाकात हुई। उन्होंने बताया, "हमारे परिवार में तीन पुरुष हैं। हम लोग चार-चार घंटे खेतों में ड्यूटी देते हैं। अभी हम हैं, फिर पापा और भाई आ जाएंगे। हमारी कुल गेहूं की फसल 12 बीघे में है, जिसमें लगभग 5 से 6 बीघा सही बची हुई है। हम लोग पूरी रात खेतों की रखवाली करते हुए काट देते है।"
62 वर्षीय किसान राजपाल सिंह इनका मात्र एक बेटा है जिसकी उम्र लगभग 15 साल है। ये पूरी रात खुद ही खेतों में जागकर रखवाली करते हैं। उन्होंने बताया, "मैं रोज शाम 5:30 पर खेत आ जाता हूं, फिर सुबह ही खेतों से घर वापस जाता हूँ। आवारा गोवंश और जंगली जानवर फसलों को चर जाते हैं, जिससे काफी नुकसान होता है। हम बैंक से लोन लेकर खेत में फसल लगाते हैं। फसल खराब होने पर लोन भी नहीं चुका पाते हैं और बैंक से वसूली होती है। हम बहुत परेशान हैं। सरकार को किसानों की तरफ ध्यान देना चाहिए।"
मुंशी प्रेमचंद्र की 1921 की लिखी हुई कथा "पूस की रात" में हल्कू नाम का एक किसान होता है जो आवारा जानवरों से अपनी फसलों को बचाने के लिए रात और दिन फसलों की रखवाली करता है। रात में सर्दी से बचने के लिए कंबल लेने को सोचता है तो उधार लिए पैसों का तकादा आ जाता है, और हल्कू कंबल नहीं ले पाता है। सर्दी में बगैर कंबल के अपनी फसलों को रखवाली के लिए खेतों में जाने लगता है। आज के दौर में यूपी के कासगंज में किसानों का कुछ ऐसा ही हाल है जो रात में हल्कू बन करके आवारा पशुओं से अपनी फसलों को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं।
कासगंज के मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी डॉ. मनोज कुमार अग्रवाल ने द मूकनायक से बातचीत में बताया कि, "हमारे यहां कुल 14 गोशाला संचालित हैं, जिसमें 6 कान्हा गोशाला, 2 वृहद गोशाला, 4 अस्थायी गोशाला और एक-एक पंजीकृत और अपंजीकृत गोशाला है, जिसमें कुल 4627 गोवंश संरक्षित हैं। एक गाय को एक दिन में 8 किलो भूसा की खुराक होती है। कम से कम एक गाय के लिए 100 रुपए चाहिए होते है। सरकार की तरफ से एक गाय के एक दिन के खाने के मात्र 30 रुपए आते हैं।"
"शाहपुर टहला में आवारा पशुओं का आतंक है तो उसे खंड विकास अधिकारी के साथ देखा जाएगा, उनको जल्द ही पकड़ करके गोशाला में भिजवा दिया जाएगा", उन्होंने कहा।
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