लखनऊ: उत्तर प्रदेश में दिसंबर माह के आखिरी समय में आलू की अच्छी-खासी पैदावार के लिए मौसम तो अनुकूल है, लेकिन जनवरी की शुरूआत की चिंता किसानों को सताने लगी है. पिछले साल भी दिसंबर महीने में तापमान और मौसम अनुकूल था, लेकिन जनवरी में छिटपुट बारिश और पाले ने आलू की फसल बर्बाद कर दी थी.
भारत में जैसे कृषि प्रधान देश में धान, गेहूँ और गन्ने के बाद आलू का चौथा स्थान है। पूरे भारत का 31 प्रतिशत आलू उत्पादन अकेले उत्तर प्रदेश में होता है. यूपी में 2023 की शुरुआत में लगभग 242 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन किया गया है, जो पिछले साल के 147 लाख मीट्रिक टन से अधिक है।
आलू एक ऐसी फसल है जो अन्य फसलों जैसे गेहूं, धान और मूंगफली की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक उपज देती है और प्रति हेक्टेयर आय भी अधिक होती है। आलू में सबसे ज्यादा मिनरल्स और कैल्शियम पाया जाता है. इसके बाद, 14% स्टार्च, 2% शर्करा, 2% प्रोटीन तथा 1% खनिज पदार्थ होते हैं। इसके अलावा, 0.1% वसा और विटामिन भी अल्प मात्रा में पाया जाता है।
यूपी के किसान खलिलुल्लाह खान, जिन्होंने इस साल अक्टूबर के मध्य में 6 हेक्टेयर आलू की बुवाई की है, द मूकनायक को बताते हैं कि अभी का मौसम आलू के लिए ठीक है. लेकिन जनवरी में पाले की संभावना है. “पाला पड़ने से आलू की पत्तियां और पौधे सूख जाते हैं, जिससे मिट्टी के अन्दर आलू बड़े नहीं हो पाते, और उत्पादन घट जाता है”, खलिलुल्लाह खान ने बताया.
उन्होंने कहा कि, आमतौर पर आलू की सामान्य किस्मों की खुदाई अपने यहां यूपी में जनवरी के अंतिम में शुरू हो जाती है. लेकिन आलू का एक देशी किस्म है, जो देर में तैयार होता है. देशी आलू की खुदाई मार्च के शुरुआत में की जाती है.
खलिलुल्लाह ने बताया कि देर से तैयार होने के कारण इस साल उन्होंने आलू की देशी किस्म कम बोई है. अधिकांश रकबे में उन्होंने सामान्य किस्म के आलू की ही बुवाई की है.
आलू उपोष्णकटिबंधीय फसल है. उत्तर प्रदेश में इसकी खेती उपोष्णकटिबंधीय अवस्था में रबी सीजन में की जाती है। सामान्य स्थिति में दिन का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस तथा रात का तापमान 4-15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। आलू के बढ़ने के समय 18-20 डिग्री सेल्सियस तापमान सर्वोत्तम रहता है।
आलू विभिन्न प्रकार की फसलों में उगाया जा सकता है जहां पीएच 6-8n के बीच होता है लेकिन उचित जल निकासी वाली रेतीली दोमट और दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसकी खेती के लिए अपने खेत को डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से 3-4 बार जुताई करें। प्रत्येक जुताई के बाद समतलीकरण यंत्र का प्रयोग करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाये तथा नमी संरक्षित रहे। वर्तमान समय में रोटावेटर के प्रयोग से खेत जल्दी और अच्छे से तैयार हो जाता है। अच्छी पैदावार के लिए बुआई से पहले जुताई की जरूरत होती है.
आलू के खेत में यदि हरी खाद का उपयोग नहीं किया गया है तो 15-30 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करने से जैविक पदार्थ में वृद्धि होती है जो आलू के उत्पादन में वृद्धि में सहायक होता है।
आलू के लिए उर्वरक के रूप में, सामान्यतः 180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फॉस्फोरस तथा 100 किलोग्राम पोटाश आदर्श बताया जाता है। यह मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकती है।
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