यूपी। आमी नदी के किनारे 3 बीघे में खेती करने वाले अवधेश कुमार वर्मा बारिश की अनिश्चितता को लेकर थोड़े चिंतित हैं। क्योंकि धान की नर्सरी तैयार है, लेकिन खेत में धान की रोपाई के दौरान खेत की मढ़ाई के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं है। अवधेश अपने खेत में बोरिंग तो करा चुके हैं, लेकिन इंजन को लगभग एक किमी दूर से खींचकर लाना-ले जाना उनके लिए बहुत चुनौती भरा काम है। वह आस लगाए हैं कि अगर आमी नदी में पानी आ जाता तो वह धान की रोपाई शुरू कर देते। हालांकि, आमी नदी बीते कई महीनों से सूखी पड़ी है।
अवधेश की तरह यूपी में लाखों ऐसे किसान हैं, जिनकी धान की नर्सरी खेतों में रोपाई के लिए पूरी तरह तैयार हैं। समस्या यह है कि न बारिश हो रही है, और न ही नहरों, सहायक नदियों व तालाबों में पानी है। आसान शब्दों में कहें तो यूपी में सिंचाई के लगभग सभी प्राकृतिक स्रोत सूखे पड़े हैं। किसान अब सिर्फ बारिश पर निर्भर है।
55 वर्षीय किसान वर्मा ने द मूकनायक को बताया कि, “खेत की मिट्टी चटकी (सूखी) पड़ी है। अगर हम इसमें इंजन लगाकर पानी भर भी दें तो खेत की नमी बहुत दिन तक टिकेगी नहीं। इतनी तेज लू और धूप में किसी तालाब या पोखरे में पानी नहीं बचा है, सब सूख गया।”
पूर्वी यूपी में किसानों के खेती में सिंचाई की व्यवस्था के लिए ट्यूबवेल, पम्पिंग सेट, नहर, तालाब, विद्युत मोटर का उपयोग होता है, लेकिन अधिकांश किसानों के पास पम्पिंग सेट या विद्युत मोटर की व्यवस्था नहीं होती। क्योंकि इसमें लागत अधिक है जिसे तमाम किसान वहन करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में वह अपने पड़ोसी काश्तकार के सिंचाई संसाधनों या प्राकृतिक जल स्रोतों पर निर्भर रहते हैं।
पति की मौत के बाद खेती-बाड़ी संभाल रहीं ज्ञानमती का खेत सरयू नहर परियोजना के अंतर्गत बनाए गए नहर से एकदम जुड़ा हुआ है। नहर से सटा हुआ होने के कारण पिछले कई वर्षों में ऐसा हुआ है कि बाढ़ की स्थिति में ज्ञानमती की पूरी फसल डूब चुकी है। इस बार यह नहर ही सूखी पड़ी है, ऐसे में महिला किसान को चिंता है कि वह इस बार खेतों में धान की रोपाई कैसे कराएगी।
वह कहती हैं, “नहर खेत से एकदम सटा है। अगर नहर में पानी आया होता तो अबतक धान की रोपाई करवा चुकी होती। लेकिन इस बार पता नहीं क्यों नहर में पानी नहीं आ रहा है। अब जब बारिश होगी तब या नहर में पानी आएगा तभी धान की रोपाई करवा पाऊँगी। तब तक मुझे रुकना पड़ेगा।”
खेती की चुनौतियों के बारे में वह कहती हैं कि, “जैसे ही बारिश शुरू होती है वैसे ही सब अपने-अपने खेत में धान की रोपाई और सिंचाई में जुट जाते हैं। उस समय हमें तो कोई मजदूर भी नहीं मिलता, क्योंकि सब अपनी खेती में लग जाते हैं। ऐसे में धान की रोपाई में देरी हो जाती है। जिससे आगे चलकर पैदावार और इसकी कटाई में समस्या झेलनी पड़ती है।”
पूर्वी उत्तर प्रदेश के बस्ती, सिद्धार्थनगर,संत कबीर नगर जिले के किसानों ने लगभग यही समस्या बताई। किसान अब नहरों में पानी और बारिश दोनों का इंतजार कर रहे हैं।
सरयू नहर परियोजना (Saryu Canal Project) उत्तर प्रदेश में एक महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है। इस परियोजना की मूल रूप से कल्पना 1978 में की गई थी। यूपी में कृषि के लिए सिंचाई सुविधाओं और जल आपूर्ति को बढ़ाने के लिए इसकी शुरू की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य पाँच नदियों - घाघरा, सरयू, राप्ती, बाणगंगा और रोहिणी - को एक नहर नेटवर्क में एकीकृत करना है ताकि सिंचाई उद्देश्यों के लिए एक विश्वसनीय और निरंतर जल आपूर्ति प्रदान की जा सके। लेकिन मौजूदा समय में इस परियोजना के अंतर्गत आने वाली नहरें लगभग सूखी पड़ी हैं।
सरयू नहर परियोजना कृषि विकास के मद्देनजर, सिंचाई के लिए निरंतर जल आपूर्ति प्रदान करके कृषि उत्पादकता में सुधार करने, विशेष रूप से जल की कमी वाले क्षेत्रों में, इसकी शुरुआत की गई थी। इसके साथ ही साथ सूखा से निपटने के लिए, जल उपलब्धता सुनिश्चित करके सूखे के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने, और इससे किसानों की आजीविका की रक्षा करने के लिए इसकी शुरुआत की गई थी।
इन सबके अलावा, बाढ़ नियंत्रण को ध्यान में रखकर नदी के प्रवाह को विनियमित करके और सिंचाई के लिए अधिशेष जल का उपयोग करके क्षेत्र में बाढ़ का प्रबंधन और नियंत्रण करना भी इसकी शुरुआत का एक प्रमुख कारण था।
इस परियोजना के लाभार्थी जिलों में मुख्य रूप से बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, गोरखपुर, महाराजगंज शामिल हैं। जाहिर है कि यह सभी जिले सूखी नहरों के कारण सिंचाई के लिए पानी की किल्लत झेल रहे हैं और इसका असर सीधे तौर पर किसानों पर पड़ रहा है।
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