उत्तर प्रदेश। लगभग 6 साल पहले बड़े बेटे, रामजीत की पेट की बीमारी के चलते मौत के बाद सुरसती देवी अपनी पोती को संभालते हुए खेती का पूरा काम भी संभालती हैं। जवान बेटे की मौत के बाद 6 वर्षीय पोती प्रतिभा को छोड़कर बहु अपने मायके चली गई फिर नहीं आई। घर में अकेली महिला सुरसती (48) अपने दो छोटे बेटों राम प्रीत (20), राम सजीवन (18) और पति लाल बहादुर यादव (50) के साथ रहती है।
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले की रुधौली खलंगा निवासी सुरसती के दोनों छोटे बेटे बाहर मुंबई और मद्रास (चेन्नई) में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। वह पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन बच्चों को थोड़ा बहुत पढ़ा-लिखा दिया है। पति लाल बहादुर टैक्सी वाहन चलाते हैं। पति के काम पर जाने के बाद पूरे घर में सुरसती और उनकी पोती प्रतिभा बचती हैं। ऐसे में परिवार के बीच दैनिक कार्यों को निपटाने के बाद सुरसती खेती के काम में जुट जाती हैं।
सुरसती के पास कुल लगभग साढ़े चार बीघे (2.78 एकड़) की खेती है। “अभी खेत में सरसों और गेहूं की फसल लगाई है। जितना हो पाता है खेती का काम खुद करती हूं। गेहूं की फसल तैयार होते ही इसे हाथ से काटेंगे, और थ्रेसर (एक कृषि यन्त्र) से दवांयेंगे, ”भैंस के लिए बरसीम काटती हुई सुरसती ने द मूकनायक को बताया।
सुरसती ने घर पर एक भैंस भी पाल रखा है. उन्होंने बताया कि भैंस के चारे के लिए रोज खेत जाना पड़ता है. “अभी सिवान में चारों ओर खूब खास-पात उगे हैं. चारे को खोजने के लिए दूर नहीं जाना पड़ता है. दो मंडी में बरसीम भी बोई है, जब यह खत्म हो जाता है तब दूसरों के खेतों से घास निकाल कर लाती हूँ, ”सुरसती ने बताया।
सुरसती के दैनिक कार्यों में गोबर के कंडे बनाना भी शामिल है. इसी पर वह खाना बनाती हैं. गैस के बढ़ते दाम पर वह कहती हैं, “भैंस के गोबर से कण्डे पाथ कर उसे सूखा देती हूं. इसी कंडे से चूल्हे पर खाना बनाती हूँ. 11 सौ रुपए का सिलेंडर हर महीने नहीं भरा सकती।”
खेती से उपज के बारे में पूछे जाने पर सुरसती बताती हैं कि साल भर खाने के लिए नहीं घटता, पर्याप्त पैदावार हो जाती है. “अक्सर फसल के तैयार होने के बाद खाने भर का जमा करके शेष उपज बेंच देती हूँ, इससे घर का खर्चा और आगे की खेती के लिए पैसा मिल जाता है. प्रतिभा (पोती) को स्कूल भेजती हूं उसके स्कूल की फीस भी इसी से निकल आती है.”
सुरसती और उनके पति और, उनके बच्चे कम-ज्यादा या बिलकुल नहीं पढ़ पाए लेकिन पोती की शिक्षा को लेकर वह गंभीर हैं. बड़े बेटे रामजीत के गुजर जाने के बाद वह पोती प्रतिभा को हमेशा अपने साथ रखती हैं, और उसके पढ़ाई, दवाई व अन्य जरूरतों का पूरा ख्याल रखतीं हैं.
“अभी गेहूं पकने में थोड़ा समय है. गेहूं के बीच सरसों भी बोई हूँ, यह अब पक गई है. खूब सुबह और दोपहर बाद शाम को पके सरसों को चुनकर निकालती हूँ. इस समय पके सरसों को निकालने पर सरसों की घुंघलियों से सरसों के दाने कम गिरते हैं और नुकसान नहीं होता है, क्योंकि इस समय मौसम ठंढ रहता है, ”सुरसती ने बताया। “अगर धूप में खेत से सरसों निकालूंगी तो घुंघलियों से दाने चटक कर बहार खेत में गिर जाएंगे, इसलिए सुबह 4 बजे उठकर चौवा-पानी करके खेत आ जाती हूँ.”
सुरसती देवी खेती में नुकसान के बारे में भी बताती हैं. मौसम की अनियमितता को लेकर वह कहती हैं, “कभी-कभी ऐसे भी हुआ है कि खड़ी फसल ज्यादा बारिश में बर्बाद हो गई है. घर की जरूरतों या दवाई में घर में खाने के लिए रखे अनाज को भी बेंचना पड़ा है. ऐसे में किसी समूह (महिलाओं का स्वयं सहायता समूह) या गांव के लोगों से ब्याज पर कर्ज लेकर घर को चलाया और फसलों की बुवाई करवाई.”
बड़े बेटे के बारे में पूछे जाने पर सुरसती की ऑंखें नम हो जाती हैं. “बाबू (बेटे) के चले जाने के बाद पूरा परिवार उजड़ गया. अब सब कुछ मेरे सर पर है. बहु भी अपने घर चली गई. परिवार देखूं, पोती देखूं या खेती कराऊँ। कुछ भी नहीं छोड़ सकती। जब तक जिन्दा हूँ करती रहूंगी।”
सुरसती ने द मूकनायक को बताया कि “अभी गेहूं की फसल काटने के बाद असाढ़-सावन (जुलाई माह) में धान की रोपाई भी करूंगी. अकेली हूँ इसलिए बस यही दो फसलें ही बोती हूँ. इससे परिवार का गुजारा हो जाता है”
आपको बता दें कि यूपी में पूर्वांचल के हिस्से में किसानों द्वारा मुख्य रूप से धान, गेहूं और गन्ने की ही खेती प्राथमिकता पर की जाती है. गन्ने की खेती में श्रम, लागत और मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है. ऐसे में ज्यादा खेती वाले किसानों, या बड़े कास्तकारों को ही गन्ने की खेती करते देखा गया है. इसके अलावा किसान गेंहू और धान की फसल जरूर बोते हैं. खेती करने की सहूलियत में सुरसती भी गेहूं और धान की ही खेती करती हैं. वह खेतों में निराई, गुड़ाई, कटाई, फसल की रोपाई और खेतों में पानी लगाने का काम भी स्वयं करती हैं.
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