ग्राउंड रिपोर्ट: पॉली हाउस में संरक्षित खेती से लाखों की कमाई कर रहे राजस्थान के आदिवासी किसान, जानें विधि..

राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के श्रीपुरा गांव के आदिवासी किसान सत्यनारायण मीणा पॉली हाउस में संरक्षित खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। सत्यनारायण कहते हैं कि यह परंपरागत खेती से अधिक लाभकारी, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर किसानों के लिए बड़ी चुनौती।
राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के श्रीपुरा गांव में पॉली हाउस
राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के श्रीपुरा गांव में पॉली हाउसफोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक
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जयपुर। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत संरक्षित खेती के लिए किसानों को ग्रीन हाउस (पॉली हाउस) निर्माण के लिए 95 प्रतिशत तक अनुदान दिया जा रहा है। इस तकनीक से किसान कृषि जलवायुवीय कारक-तापक्रम, आर्द्रता व सूर्य प्रकाश को नियंत्रित करके फल, फूल, सब्जी आदि उद्यानिकी फसलों की उन्नत खेती कर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। खास बात यह है कि ग्रीन हाउस (पॉली हाउस) में कम पानी में अच्छी पैदावार हो रही है।

अमरूद की पैदावार के लिए नामित राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में भी किसान अमरूद की खेती के बाद अब उद्यान विभाग की पॉली हाउस योजना से जुड़ कर फल, सब्जी की पैदावार में रुचि लेने लगे हैं। यही वजह है कि सत्र 2023-24 में मिले 80 हजार वर्ग मीटर में पॉली निर्माण के लक्ष्य को उद्यान विभाग के अधिकारियों ने पूरा कर लिया है। किसानों की रुचि को देखते हुए आगामी सत्र 2024-25 में लक्ष्य बढ़ाकर 84 हजार वर्ग मीटर कर दिया गया है। उद्यान विभाग की मानें तो पॉली हाउस योजना के लिए किसान लगातार आवेदन कर रहे हैं।

पॉली हाउस में खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा?

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत अनुदान पर स्थापित पॉली हाउस में किसान खेती कर क्या मुनाफा कमा रहे हैं, या फिर अधिक लागत के कारण यहां भी किसानों को घाटा हो रहा है? यह जानने के लिए द मूकनायक टीम राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के श्रीपुरा गांव पहुंचा। यहां आदिवासी किसान सत्यनारायण मीणा पॉली हाउस में खेती कर रहे हैं। किसान सत्यनारायण ने द मूकनायक को बताया कि, यह सच है कि यह महंगा प्रोजेक्ट है, लेकिन सरकारी अनुदान किसानों को संबल दे रहा है।  

किसान सत्यनारायण मीणा ने कहा कि, "पूरी तरह से फसल कवर्ड होने से फसल के लिए घातक कीट फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। इससे रोग लगने की संभावना बहुत कम होती है। थोड़ा बहुत रोग भी लगता है तो ऑर्गेनिक दवाओं का उपयोग कर नियंत्रित किया जा सकता है।"

पॉली हाउस में सब्जी की पैदावार
पॉली हाउस में सब्जी की पैदावारफोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

83 दिन में ढाई लाख की पैदावार

उन्होंने कहा कि उन्होंने 4 हजार वर्ग मीटर पॉली हाउस में पहली बार खीरे की फसल लगाई है। 40 दिन बाद फल आना शुरू हो गया था। बीज रोपाई के बाद 83 दिन में 2.5 पांच लाख रुपए की फसल बेच चुके हैं। किसान ने कहा कि परंपरागत खेती जैसे, गेहूं, चना, सरसों या अमरूद की फसल में इतने कम समय में इतनी अच्छी आमदनी नहीं होती है। उन्होंने कहा कि खीरा की फसल में अभी दो माह तक और उत्पादन होगा।  

पॉली हाउस के बाहर लगे आधुनिक कृषि यंत्र
पॉली हाउस के बाहर लगे आधुनिक कृषि यंत्रफोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

परंपरागत खेती से अधिक लागत, फिर भी फायदे का सौदा

खर्च को लेकर उन्होंने कहा कि, "तकनीकी फसल में परंपरागत खेती से अधिक खर्च होता है। इसमें उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग होता है। यह बहुत महंगा आता है। इसमें 50 हजार रुपए की बीज से 8 हजार चार सौ खीरे के पौधे तैयार हुए हैं। फसल के संरक्षण पर 80 दिन में लगभग 60 हजार की दवाओं का उपयोग किया जा चुका है। साथ ही आमदनी का 25 प्रतिशत लेबर पर खर्च हो रहा है। लागत बहुत अधिक है, लेकिन इसमें फसल संरक्षित रहती है। चमकदार फसल होने से दाम अच्छे मिलते हैं। खेती से बहुत अधिक लागत होने के बावजूद अच्छी आमदनी हो रही है।"

कार्यालय उपनिदेशक उद्यान, सवाईमाधोपुर, राजस्थान
कार्यालय उपनिदेशक उद्यान, सवाईमाधोपुर, राजस्थान फोटो- अब्दुल माहिर, द मूकनायक

स्थानीय स्तर पर बाजार की उपलब्धता नहीं

किसान सत्यनारायण मीना ने द मूकनायक से बात करते हुए कहा कि पॉली हाउस में उन्नत किस्म की फसलें जैसे खीरा, शिमला मिर्च, फूलों में गुलाब, गेंदा व अन्य फल और फलों की फसल होती है। इनमें ज्यादातर फसलों का स्थानीय स्तर पर बाजार नहीं है। खीरा व शिमला मिर्च का उपयोग बड़े शहरों में होता है। ऐसे में बाजार तक पहुंचाने में ट्रांसपोर्ट खर्च बहुत अधिक आता है।

उन्होंने बताया कि, "सवाईमाधोपुर जिले में अभी पॉली हाउस में बहुत कम लोग खेती कर रहे हैं। इससे मार्केटिंग की समस्या रहती है। ग्रामीण इलाकों में यह नहीं बिकते। बड़े शहरों में ले जाना पड़ता है। हम पॉली हाउस से हर दूसरे दिन खीरा बेचने के लिए लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर जयपुर मंडी में ले जा रहे हैं। 22 किलो पैकिंग बैग पर मंडी तक ले जाने में 40 रुपए ट्रांसपोर्ट खर्च आ रहा है। मंडी में 22 किलो खीरे का बैग पांच सौ से साढ़े पांच सौ रुपए में बिकता है।"

ऐसे होती है संरक्षित खेती

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत 4000 वर्ग मीटर क्षेत्र में पॉली हाउस बना है। यह पूरी तरह कवर्ड है। अंदर खीरे की फसल है। खीरे की बेल को पतली रस्सी के सहारे ऊपर की तरफ बांधा गया है। किसान ने बताया कि इससे बेल जमीन पर नहीं फैलती और ऊपर रहती है। इसका फायदा यह है कि फलों पर मिट्टी नहीं लगती। इससे रोग लगने की कम संभावना होती है। तापमान नियंत्रित करने के लिए फव्वारा सिस्टम भी लगा है। जब अधिक तापमान होता है तो फव्वारा चलाकर तापमान को नियंत्रित किया जाता है। पौधों को अधिक सर्दी से बचाने के लिए जमीन पर मल्चिंग (प्लास्टिक) लगाई जाती है। इससे सर्दी में तापमान नियंत्रित रहता है।

फसल के बीच कीट ट्रेप सिस्टम भी लगा है। पॉली हाउस में जगह-जगह पीले व नीले कलर की प्लास्टिक लगाई गई है। इन पर ग्रीस लगाया गया है। किसान ने बताया कि, मच्छर पीले व नीले कलर की तरफ जल्दी आकर्षित होते हैं। पॉली हाउस के अंदर प्रवेश करने वाले मच्छर व अन्य कीट इन कलर फुल प्लस्टिक पर जाते हैं। यहां ग्रीस पर चिपक जाते हैं। इससे फसलों तक नहीं पहुंच पाते। कीट नहीं लगने से फसल पर चमक बरकरार बनी रहती है।

क्या है योजना?

सहायक निदेशक उद्यान विभाग बृजेश मीना द मूकनायक को बताया कि राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत सरकार संरक्षित खेती के लिए ग्रीन हाउस (पॉली हाउस) निर्माण के लिए अनुदान देती है। पॉली हाउस में किसान लाभकारी संरक्षित उद्यानिकी खेती कर सकता है। इस योजना के तहत अलग-अलग कैटेगरी के किसान को अलग-अलग अनुदान निर्धारित किया गया है। सामान्य किसान को 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। यदि लघु, सीमांत, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से है तो 20 प्रतिशत अतिरिक्त अनुदान के साथ 70 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।

तत्कालीन गहलोत सरकार ने एससी, एसटी के किसानों के साथ ही सभी वर्गों के लघु, सीमांत किसानों को राज्य सरकार की तरफ से 25 प्रतिशत अतिरिक्त अनुदान राशि बढ़ाकर देने से पात्र किसानों को अब 95 प्रतिशत तक अनुदान दिया जा रहा है। अनुदान राशि बढ़ाने से किसानों का संरक्षित खेती की और रुझान बढ़ने लगा है।

पॉली हाउस
पॉली हाउस

एक पॉली हाउस निर्माण में 42 लाख से अधिक की लागत

सहायक कृषि अधिकारी राजेन्द्र कुमार बैरवा ने बताया कि, राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत संरक्षित खेती के लिए एक किसान को 4 हजार वर्ग मीटर में पॉली हाउस स्थापित करने के लिए ही अनुदान देय है। इसमें 42 लाख 24 हजार 400 रुपए की लागत आती है। लघु, सीमांत, एससी, एसटी के किसान को केवल 10 लाख 17 हजार 200 रुपए कृषक हिस्सा राशि के रूप में जमा करना होता है। शेष अनुदान राशि सरकार पॉली हाउस स्थापित करने वाली कंपनी को देती है। राजेन्द्र कुमार बैरवा कहते हैं जो किसान कृषक हिस्सा राशि जमा कराने में असमर्थ हैं तथा संरक्षित खेती करना चाहते हैं वो बैंक से ऋण ले सकते हैं। कई बैंक पॉली हाउस प्रोजेक्ट पर किसानों को ऋण दे रही है। किसान बैंक से ऋण लेकर भी लाभकारी संरक्षित खेती कर सकते हैं। 

उपनिदेशक उद्यान विभाग चन्द्र प्रकाश बढ़ाया द मूकनायक को बताते हैं कि, "राष्ट्रीय बागवानी मिशन में बगीचों के अलावा संरक्षित खेती के लिए पॉली हाउस योजना चल रही है। इस योजना में किसान जुड़ रहे हैं। लक्ष्य अर्जित करने के बाद अतिरिक्त आवेदनों के लिए उच्च अधिकारियों को पत्र लिखा है। इसमें फल, सब्जी व फूलों की खेती कर सकते हैं। यहां खीरा की खेती कर किसान अच्छा लाभ कमा रहे हैं। किसानों को सलाह है कि पेस्टिसाइड दवाओं का कम से कम उपयोग करें। हम भी इसके लिए किसान जागरूकता कार्यक्रम कर रहे हैं। कोई भी किसान आवेदन कर सकता है। सामान्य किसान को पचास प्रतिशत और लघु, सीमांत व एससी, एसटी किसान को 95 प्रतिशत अनुदान दे रहे हैं।"

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