जयपुर। पंजाब व हरियाणा के बाद अब राजस्थान के किसान ने भी आंदोलन की हुंकार भर दी है। किसान महापंचायत के नेतृत्व में राज्य के किसान पांच सौ से अधिक ट्रैक्टरों पर सवार होकर दिल्ली कूच करेंगे। महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने 21 फरवरी को किसानों से ट्रैक्टरों के साथ तैयार रहने का आह्वान किया है। तैयारियां की जा रही है। आंदोलन में सर्वाधिक पूर्वी राजस्थान के किसान भाग लेंगे।
जाट ने कहा कि राजस्थान के किसान 21 फरवरी को 500 ट्रैक्टरों के साथ जयपुर पहुंचेंगे। यहां राज्य के मुख्यमंत्री को कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 एवं कृषि उपज मंडी नियम 1963 में संशोधन द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद गारंटी का कानून बनाने सहित किसानों की स्थानीय मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपेंगे। साथ ही दिल्ली कूच के लिए सीएम से किसानों का नेतृत्व करने का आग्रह करेंगे। इस संबंध में प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय को सूचित कर दिया गया है।
किसान महापंचायत के बैनर तले किसानों के दिल्ली कूच की तैयारी सभी जिलों में चल रही है। महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदेश कार्यकारणी सदस्यों के साथ राज्य के जिलों में सभाएं कर किसानों से ट्रैक्टर तैयार रखने का आह्वान कर रहे हैं। गत 15 एवं 16 फरवरी को बूंदी जिले के करवर कस्बे में किसान महापंचायत आंदोलन का निर्णय लिया गया। किसान अपने -अपने ट्रैक्टरों पर 'पूरा मोल- घर में तोल', 'किसान की खुशहाली के बिना आजादी अधूरी है' व 'खुशहाली के दो आयाम- खेत को पानी, फसल को दाम' आदि नारे लिखे बैनर लगाकर चलेंगे।
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने के लिए भारत सरकार ने कई आयोग एवं समितियां बनाई। इन आयोग और समितियों ने किसान हित में निर्णय लेने की अनुशंसा भी की। इसमें डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग 2004 भी सम्मिलित है। इसी के साथ भारत सरकार की संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने भी वर्ष 2016 एवं 2017 में न्यूनतम समर्थन मूल्य की सार्थकता के लिए इस प्रकार के कानून बनाने की तीन बार अनुशंसा की है, लेकिन सरकारों ने आयोगों की इन सिफारिशों को नजर अंदाज कर दिया।
5 जून 2020 को तीन कानून लाने के उपरांत 17 सितंबर 2020 को कृषि भवन नई दिल्ली में तत्कालीन कृषि मंत्री के बुलावे पर 2 घंटे से अधिक समय तक किसानों के साथ वार्ता हुई, जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने का विषय ही प्रमुख था। भारत सरकार द्वारा सार्थक कार्यवाही नहीं करने के कारण 26 सितंबर से आंदोलन आरंभ हो गया, जो तीनों कानून वापस लेने के बाद भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुनिश्चितता के लिए प्रधानमंत्री स्तरीय समिति गठित करने के आश्वासन के उपरांत स्थगित किया गया। उसी क्रम में 12 जुलाई 2022 को गठित समिति भी इस प्रकार के कानून बनाने के लिए आरक्षित मूल्य (reserve price) के निष्कर्ष पर पहुंच गई। तब भी सरकार द्वारा इस प्रकार का कानून अभी तक नहीं बनाया गया, जिससे देश भर के किसानों में आक्रोश है। वही आंदोलन के रूप में सड़कों पर आ रहा है। देश के सर्वसाधारण किसानों के साथ उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, भारतीय प्रशासनिक सेवा एवं भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों जैसे समाज के बुद्धिजीवी वर्ग भी समर्थन में है।
वर्ष 2000 से आरम्भ होने के बाद 17 वर्षों के विचार मंथन के उपरांत आदर्श कृषि उपज एवं पशुधन विपणन (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2017 (The Model Agriculture Produce and Livestock Marketing (Promotion and Facilitations) Act, 2017 का प्रारूप केंद्र द्वारा तैयार किया गया। कृषि एवं किसान कल्याण संविधान में राज्य का विषय होने के कारण इस प्रारूप को वर्ष 2018 में सभी राज्यों को कानून बनाने के लिए प्रेषित किया गया। जिसके आधार पर राजस्थान में कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2018 के नाम से विधेयक का प्रारूप तैयार हुआ, जो अभी भी सरकारी अलमारी की शोभा बढ़ा रहा है। यदि इसके आधार पर कानून बन जाता तो किसानों को अपनी उपज घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में नहीं बेचनी पड़ती।
इस संबंध में पिछले 10 वर्षों से भारत सरकार को ज्ञापनों के माध्यम से निवेदन किया जा रहा है और उसी क्रम में दूदू से दिल्ली कूच के समय 25 दिसंबर 2016 को प्रधानमंत्री कार्यालय में आयोजित प्रधानमंत्री स्तरीय वार्ता में सरकार ने आश्वासन भी दिया था किंतु परिणाम "ढाक के तीन पात" जैसी ही है।
भारत सरकार आदर्श कृषि उपज एवं पशुधन विपणन (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2017 के आधार पर राजस्थान कृषि उपज एवं पशुधन विपणन (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम 2018 के विधेयक का प्रारूप तैयार होने के 6 वर्ष उपरांत भी सार्थक पहल नहीं हुई। इसके लिए भी वर्ष 2019 से राजस्थान सरकार को निरंतर अनुनय - विनय किया गया है। मुख्यमंत्री एवं मंत्री स्तरीय वार्ताएं भी हुईं। तब भी कानून एवं उसके क्रियान्वयन के नियम अस्तित्व में नहीं आए। इसी का दुष्परिणाम है कि किसानों को बाजरा, सरसों, मूंग, चना जैसी उपज को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से 1000 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक तक का घाटा उठाकर बेचनी पड़ रही है। यह स्थिति तो तब है जब भारत सरकार द्वारा किसी भी किसान को उसकी उपज घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में बेचने को विवश नहीं होने देने की भारत सरकार द्वारा संसद में अनेकों बार घोषणा की गई है।
7 फरवरी 2024 को भारत के कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा द्वारा सरसों उत्पादक किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने हेतु खरीद की व्यवस्था के निर्देशों के संबंध में वीडियो प्रसारित किया गया। जिसमें इस वर्ष के बजट (लेखानुदान) की पालना में नई नीति बनाने की चर्चा की है। देश के कुल उत्पादन में से लगभग आधी सरसों का उत्पादन राजस्थान में होता है। अभी राजस्थान में सरसों मंडियों में आ रही है। खरीद की व्यवस्था के अभाव में किसानों को सरसों के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 5650 प्रति क्विंटल प्राप्त नहीं हो रहे हैं। उन्हें एक क्विंटल पर 1400 रुपए तक का घाटा उठाकर 4200 रुपए प्रति क्विंटल तक सरसों बेचनी पड़ रही है।
रोचक तथ्य तो यह है कि 2 वर्ष पूर्व बजट में सरसों के संबंध में इसी इसी प्रकार की नीति बनाने की घोषणा की थी। जिसे कृषि विभाग ने भूल बताकर पालना से मना कर दिया था। इसी प्रकार 8 अक्टूबर 2023 को केंद्र के गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सरसों मूंगफली जैसी तिलहन एवं दलहन की उपज की दाने-दाने की खरीद की सरकारी कार्यक्रम में घोषणा की थी। उसकी भी पालना में कोई आदेश संबंधित किसी भी संस्था को नहीं आया है। किसान बाजार में लुट रहा है। बजट, संसद, एवं दो मंत्रियों द्वारा की गई घोषणाएं किसानों के लिए निरर्थक बनी हुई है।
किसान नेता ने कहा कि देश में चल रहे आंदोलन सहित सभी तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाया जाना अपरिहार्य है। इस प्रकार के कानून बनाने का संविधान के अंतर्गत राज्यों को अधिकारिता है, लेकिन जनहित में कम से कम दो विधानसभा या राज्यसभा द्वारा संकल्प पारित कर दिए जाने पर संसद को भी इस प्रकार का कानून बनाने की अधिकारिता प्राप्त हो जाती है। तथाकथित डबल इंजन की सरकार होने से तो राज्य भी और केंद्र भी इस प्रकार का कानून बना सकते है।
किसानों की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने का आदेश दिया जाए। राजस्थान कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 एवं राजस्थान कृषि उपज मंडी नियम 1963 में संशोधन किया जाकर इस प्रकार का कानून राज्य द्वारा तत्काल बनाया जा सकता है।
सामाजिक कार्यकर्ता व किसान मुकेश भूप्रेमी कहते हैं कि एमएसपी के अलावा किसानों की स्थानीय समस्या भी है। जिन पर न तो किसान संगठन ध्यान देते हैं ना ही सरकार समाधान का प्रयास करती है। सरकार किसानों को निर्बाध 6 घंटे बिजली देने का दावा तो करती है, लेकिन हकीकत इससे परे है। सवाईमाधोपुर जिले में किसानों को नियमित बिजली नहीं मिलने से समय पर फसलों की सिंचाई नहीं हो पाती। इससे उत्पादन में कमी आती है। किसानों को बिजली कनेक्शन में देरी भी इनके पिछड़ेपन का बड़ा कारण है।
भूप्रेमी कहते हैं कि सीजन में किसान मंडी में उपज बेचने जाता है, लेकिन वहां जाकर अपने को ठगा सा महसूस करता है। मंडी में व्यापारियों की मोनोपॉली से बहुत कम दाम में फसल खरीदी जाती है। स्थानीय प्रशासन चाहे तो इस पर व्यापारियों की मनमानी पर नियंत्रण कर सकता है, लेकिन ऐसा नहीं होता। खाद और बीज में भी किसानों के साथ धोखा होता है। कीटनाशक दवाई और बीज की गुणवत्ता को लेकर किसान हमेशा शिकायत करते हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। दवा व बीज की मनमानी दरे वसूली जाती है। मुकेश भूप्रेमी का आरोप है कि यह सब मिलीभगत का खेल है। सरकारी योजनाओं के लिए भी किसानों को बिना किसी दलाल के लाभ नहीं मिल पाता। राज्य सरकार चाहे तो सरकारी दफ्तरों में मनमानी व मिलीभगत पर शिकंजा कस कर किसानों को लाभान्वित कर सकती है।
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