जयपुर। राजनीति और किसान का चोली-दामन का साथ है। राजनीति में किसान शब्द का जिक्र जरुरी है खासकर तब, जब चुनाव सर पर हो. राजनीतिक पार्टियां इसी शब्द के सहारे सत्ता तक पहुंचती भी हैं। चुनावों के दौरान नेता के मुख से पहला शब्द “मैं किसान का बेटा हूं“ सुनाई देता है। इसके बाद किसानों के उत्थान के वादे किए जाते हैं। यह बात अलग है कि सत्ता में आने के बाद नेताओं की जुबान पर किसान का जिक्र तक नहीं होता। किसान हितों की नितियां व्यापारिक लाभ के अनुरुप बनती हैं। हर बार किसान खुद को ठगा महसूस करता है और प्राकृतिक आपादा तथा सरकार के गलत नितियों से जूझता रहता है।
वर्तमान में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों में चुनाव है। पूर्व के वर्षों में केंद्र व राज्य सरकारों ने किसानों से वादे भी किए, लेकिन पूरे नहीं हुए। कहीं कर्ज माफी तो कहीं एमएसपी का वादा किया गया, लेकिन हर वादा अधूरा रहा। इस बार किसानों ने खेता-किसानी के उत्थान की गारंटी देने वालों के साथ जाने का मन बना लिया है। किसान कहना है कि उन्हें स्थानीय स्तर पर बाजार व उत्पाद पर मुनाफे की गारंटी चाहिए। कर्ज माफी नहीं।
राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले की बात करे तो यहां बागवानी से जुड़ा किसान सरकार की गलत नितियों और वादा खिलाफी से जूझ रहा है। जिले में बागवानी में अमरूद की खेती प्रमुखता से होती है। इस खेती से 80 प्रतिषत से अधिक आदिवासी, मुस्लिम व दलित किसान जुड़ा है। लाभकारी सरकारी नीति नहीं होने से बागवानी घाटे का सौदा साबित हो रहा है।
राजस्थान किसान सभा जिलाध्यक्ष कानजी मीना जस्टाना कहते हैं कि सवाईमाधोपुर जिले में अमरूद की खेती का 10 अरब रुपए का टर्नओवर है। यह जिले के पर्यटन उद्योग से अधिक है, लेकिन सरकार केवल पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने पर काम कर रही है। जिले के किसानों की लाइफ लाइन अमरूद की खेती के उत्थान पर कोई ध्यान नहीं है।
कानजी मीना कहते हैं कि रणथम्भौर बाघ परियाजना के साथ होटल व्यवसाय जुड़ा है। इस पर पूरी तरह पूंजीपतियों का कब्जा है। जबकि खेती में गरीब किसान मजदूरों का हित है। यह कड़वा सच है कि राजनीतिक पार्टियां किसानों का हित नहीं चाहती है। उन्हेांने कहा कि बीते दिनों भारत जोड़ो यात्रा के दौरान द मूकनायक ने अमरूद किसानों को स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्धता का मुददा उठाया था। इस दौरान सूरवाल गांव में कांग्रेस के बड़े नेता जयराम रमेष ने 24 घंटे में मुख्यमंत्री से बात कर जिले में सरकारी फूड प्रोसेसिंग यूनिट खोलने का वादा किया था, लेकिन आज तक भी वादा पूरा नहीं किया गया। उधर केन्द्र सरकार ने आज तक एमएसपी की गारंटी कानून नहीं बनाया। ऐसे में किसान फलों के अलावा अन्य उत्पादनों को औने पौने दामों में बेचने को विवश है। उन्होंने कहा कि हर बार किसान राजनीति ठगी का शिकार होता है, लेकिन इस बार विधानसभा चुनावों में सरकारों के झूटे वादों का असर दिखाई देने वाला है। उन्होंने कहा किसान गारंटी देने वालों की तरफ देख रहा है।
दोंदरी गांव के किसान हाजी रहीमुददीन ने द मूकनायक को बताया कि सवाईमाधोपुर जिले में बागवानी में सबसे अधिक अमरूद पैदा होता है। इसकी मिठास ही इसकी पहचान है, लेकिन अब सवाईमाधोपुर के अमरूद की मिठास ही किसानों के जीवन में कड़वाहट घोल रही है। हाजी रहीमुददीन कहते हैं कि स्थानीय स्तर पर बाजार नहीं है। पिछले सीजन भी किसानों को पर्याप्त भाव नहीं मिला। इस सीजन असमय बारिश ने अमरूद के किसानों की कमर तोड़ दी है। किसान जाएं तो कहां जाए।
किसान रहीमुददीन कहते हैं कि चुनाव आते ही नेता खुद को किसान का बेटा बताकर किसानों के जीवन में खुशहाली लाने का वादा करता है, लेकिन चुनाव के बाद कोई भी किसानों की तरफ पलट कर नहीं देखता। किसान अकेला ही प्रकृतिक आपदा तथा सरकार की गलत नितियों से जूझता रहता है। सत्ता में आने के बाद किसान हितों की बात करने वाले नेता व्यापारियों के फायदे को सामने रखकर नितियां बनाते हैं। यही वजह है कि उपज अच्छी होने पर भी किसान को लागत के अनुपात में भाव नहीं मिलता। प्राकृतिक आपदा में नुकसान होने पर गलत नितियों के कारण किसान मुआवजे के लिए भटकता रहता है। रहीमुददीन कहते हैं कि हर सूरत में फायदा नेताओं के करीबी व्यापारियों को ही होता है।
किसान रहीमुददीन ने बताया कि उनके पास 6 बीघा खेत में 600 अमरूद के पौधे लगे हैं। यह पौधे चार से पांच साल के हैं। इन पौधों की सारसंभाल जैसे निराई-गुडाई, देशी खाद, दवाओं आदि में एक सीजन में डेढ़ लाख रुपए का खर्च आया है। इस सीजन गर्मी के समय हुई बेमौसम बारिश के कारण समय से पहले फल लग गया। नतीजतन सीजन शुरु होने से पहले ही फल पक गया। असमय मौसम के कारण फलों में कीट लग गए। कीटनाशक दवाओं का स्प्रे भी करवाया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर बाजार की उपलब्धता होती तो वह खुद थोड़ा-थोड़ फल बेच देते, लेकिन ऐसा नहीं है। किसानों की मजबूरी है कि उन्हें पेड़ में ही फल बेचना होता है। इसी का फायदा उठाकर व्यापारी ओने पौने दामों में खरीदते हैं। इसके बाद ग्रेडिंग कर दिल्ली, हरियाण, यूपी और हिमाचल तक बेचने ले जाते हैं। रहीमुददीन ने कहा कि 6 बीघा भूमि में लगे 600 अमरूद के पेड़ों से उन्हें एक साल में 50 हजार की आमद भी नहीं होगी।
दोंदरी गांव के ही किसान तालिम खान ने बताया कि अब अमरूद किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। जिले में इस वर्ष 25 से 30 प्रतिशत किसानों ने अमरूद की खेती से दूरी बना ली है। खेतों में लगे अमरूद के बगीचों को काट दिया है। इस सीजन के बाद वह भी बगीचा काटने वाले हैं। तालिम कहते हैं कि पिछले दिनों भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस के बड़े नेता ने सवाईमाधोपुर में अमरूद के किसानों को स्थानीय स्तर पर बाजार उपलब्ध करवाने के लिए फूड प्रोसेसिंग यूनिट स्थाति करने का वादा किया था, लेकिन वादा पूरा नहीं किया। उन्होंने कहा, "इस बार राजस्थान विधानसभा चुनाव में किसान एमएसपी सहित किसान कल्याण की गारंटी देने वालों की तरफ जाएगा। सरकारें किसानों को मामूली ऋण माफी का लालच देती रही है, लेकिन किसानों को कर्जमाफी की जगह उत्पाद पर मुनाफे की गारंटी चाहिए।"
लुकमान खान सवाईमाधोपुर जिले के रहने वाले हैं। लुकान किसानों से पेड़ों में अमरूद खरीदते हैं। इस बार भी जिला मुख्यालय के आस-पास के गांवों में उन्होंने अमरूद खरीदे हैं। लुकान ने द मूकनायक को बताते हैं कि इस सीजन अमरूद में फल कम लगा है। रोग भी लगा है। उन्होंने एक किसान के 600 पेड़ों का फल 70 हजार में खरीदा है। लुकान कहते हैं कि यहां रणथम्भौर टाइगर प्रोजेक्ट नजदीक होने से जंगली जानवर विषेशकर सुअर खेती को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कम बारिश व तापमान में अधिकता के कारण अमरूद पक कर नीचे गिर गया है।
लुकान कहते हैं कि अमरूद का फल पीला पड़ने पर भाव नहीं मिलता है। ऐसे में आधा फल तो फेंकने में जाता है। फल तुड़ाई से लेकर ग्रेडिंग, पैकिंग व ट्रांसपोर्ट सहित दिल्ली, यूपी तथा हिरयाणा की मंडी तक ले जाने में प्रति किलो पन्द्रह से 20 रुपए तक खर्च आता है। मंडी में जाकर अच्छी क्वालिटी का फल 30 रुपए किलो बिक रहा है। उन्हेांने कहा कि सवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय पर सरकार के स्तर पर फूड प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की जाए तो किसानों का पका हुआ फल बिकने लगेगा। जिस फल को फेक दिया जाता है उसका भाव भी किसान को मिलेगा तो फायदा होगा। उन्होंने कहा कि यहां फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की मांग लंबे समय से चली आ रही है, सरकार ने वादा भी किया, लेकिन पूरा नहीं किया। इस बार किसान खेती में मुनाफे की गारंटी देने वालों की ओर देख रहा है।
सवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय के नजदीक करामेदा मीना झौंपा में रहने वाले किसान दिलराज मीना ने कहा कि में बचपन से देखता आ रहा हूं मेरे दादाजी और पिताजी भी अमरूद की खेती से जुड़े रहे हैं। पहले देशी खाद का उपयोग किया जाता था। किसान पेस्टीसाइड के उपयोग से बचते थे। लेकिन अब किसान भी लालची हो गया है। अधिक उत्पादन लेने के लिए बहुतायत में पेस्टीसाइड ( कीट नाषक दवाओं ) का उपयोग कर रहे हैं। किसान पेस्टीसाड के दुष्परिणामों से वाकिफ है। इसके उपयोग से पौधों की उत्पादन क्षमता कम हो रही है। भूमि की उरर्वक क्षमता में कमी आ रही है। आने वाले समय में इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिलेंगे जब खेत बंजर हो जाएंगे।
दिलराज कहते हैं कि सवाईमाधोपुर में सबसे ज्यादा अमरूद की खेती होती है। खेती में पेस्टीसाइड के उपयोग पर पाबंदी नहीं लगाई गई तो आने वाले समय में जिले में अमरूद देखने को नहीं मिलेगा। "मैं खुद किसान हूं। बागवानी से जुड़ा हूं। जिला मुख्यालय सहित गांवों में भी जगह-जगह खाद, बीज व कीटनाशक दवाओं की दुकानें खुली है। यही दुकानदार किसानों को विभिन्न प्रकार की कीटनाशक दावाओं के उपयोग से अधिक उत्पादन का लालच देते हैं। अनपढ़ किसान विभागीय अधिकारियों से सलाह लिए बिना ही घातक कीटनाशक दवाओं का उपयोग कर अपने खेती को नुकसान पहुंचा रहे हैं। किसानों को पेस्टीसाइड के उपयोग से बचने की जरुरत है। यह किसान और खेती दोनों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है।"
डद्यान विभाग सवाईमाधोपुर में कृषि पर्वेक्षक इमरान खान बताते हैं कि, अमरूद में सबसे अधिक प्रकोप फल मक्खी का देखा जा रहा है। इससे यहां खेती में काफी नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि उद्यान विभाग जन जागरुकता कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को जागरुक कर रहा है। खान कहते हैं कि फल मक्खी से बचाव के लिए किसानों को ट्रेप की तकनीक अपनाने की जरुरत है। फल मक्खी ट्रेप सिस्टम के माध्यम से फल मक्खी को रोका जा सकता है। इस तकनीक के उपयोग से किसान पेस्टीसाइड के उपयोग से बच सकता है।
सवाईमाधोपुर उद्यान विभाग के उपनिदेशक चन्द्रप्रकाश बढ़ाया ने कहा कि सवाईमाधोपुर में 14 से 15 हजार हेक्टेयर में अमरूद की खेती होती है। इन दिनों में पौधों में उत्पादन में कमी देखने को मिली है। इसके कई कारण हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि अमरूद मौसम पर निर्भर है। मौसम खराब होने पर उत्पादन में कमी होना स्वभाविक है। इसे जल्द बेचना किसान की मजबूरी है। यह सेव की तरह अधिक समय सुरक्षित नहीं रह सकता है।
हालांकि, उपनिदेशक ने फूड प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना या स्थानीय स्तर पर अन्य सरकारी योजनाओं पर कुछ भी कहना से मना कर दिया।
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