भोपाल। मध्य प्रदेश के खरगोन जिला सहकारी बैंक द्वारा कृषक समूह बीमा कराने के बाद दावे के भुगतान से बैंक और बीमा कंपनी मुकर गए थे, इस मामले में सहकारी बैंक ने जिस बजाज एलियांज बीमा कंपनी से पॉलिसी ली थी, उसने भी किसानों को अपात्र बताकर राहत देने से इनकार कर दिया था। परंतु 13 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद अब राज्य उपभोक्ता आयोग ने किसानों के पक्ष में फैसला सुनाया है। आयोग ने सहकारी बैंक और बीमा कंपनी दोनों को निर्देश दिया है कि वे 26 किसानों को बीमा राशि और वाद व्यय के तौर पर एक-एक लाख रुपये का भुगतान करें।
वर्ष 2006-07 में खरगोन के जिला सहकारी बैंक ने कृषक समूह बीमा योजना के तहत बैंक से कर्ज लेने वाले किसानों का बीमा किया था। इसके लिए किसानों के खाते से 563 रुपये का प्रीमियम काटा गया था। यह बीमा पॉलिसी ऑटो-रिन्युअल थी, जिसमें यह प्रावधान था कि अगर किसी बीमित किसान की मृत्यु हो जाती है, तो उसके नॉमिनी को 75 हजार रुपये की बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा।
वर्ष 2007 में भीकनगांव के सेल्दा गांव के किसान रामलाल यादव की मृत्यु हो गई। रामलाल के परिवार ने बैंक में बीमा राशि का दावा किया, लेकिन बैंक ने भुगतान नहीं किया। इस बीच कई अन्य बीमित किसानों की मृत्यु होने पर भी दावे का भुगतान लंबित रहा।
2011 में किसानों के वारिसों ने जिला उपभोक्ता आयोग में बीमा राशि की मांग करते हुए मामला दायर किया। 2023 में जिला उपभोक्ता आयोग ने किसानों का दावा खारिज करते हुए कहा कि बैंक ने अपात्र किसानों का प्रीमियम बीमा कंपनी को भेजा ही नहीं था, इसलिए उनका बीमा नहीं हुआ था। इस फैसले के खिलाफ किसान राज्य उपभोक्ता आयोग पहुंचे, जहां उनकी कानूनी लड़ाई को अधिवक्ता मोना पालीवाल ने आगे बढ़ाकर पैरवी की।
बैंक और बीमा कंपनी ने यह तर्क दिया कि यह बीमा पॉलिसी 18 से 59 वर्ष तक के किसानों के लिए थी, और जिन किसानों का बीमा दावा प्रस्तुत किया गया था, वे 59 वर्ष की आयु सीमा पार कर चुके थे। इसके अलावा, बीमा कंपनी का यह कहना था कि बैंक ने दावा करने वाले किसानों का प्रीमियम उसे भेजा ही नहीं था, इसलिए वह भुगतान के लिए उत्तरदायी नहीं है।
इस मामले में किसानों ने कई दस्तावेज प्रस्तुत किए, जिन्होंने उनके पक्ष को मजबूत किया:-
1. सितंबर 2008 में बैंक द्वारा बीमा कंपनी को लिखा गया पत्र, जिसमें 52 मृतक किसानों की सूची शामिल थी और लंबित दावों का निपटारा करने का अनुरोध किया गया था।
2. बैंक ने यह दावा किया था कि किसानों की उम्र 59 वर्ष से अधिक थी, लेकिन वह कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पाया।
3. 2012 में बैंक ने एक किसान को लिखित में बताया था कि बीमा कंपनी द्वारा क्लेम नहीं भेजा गया है, मिलते ही बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा।
राज्य उपभोक्ता आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष एके तिवारी और सदस्य श्रीकांत पांडेय ने जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश को अमान्य कर किसानों के पक्ष में फैसला सुनाया। आयोग ने आदेश दिया कि 26 किसानों की बीमा राशि चार प्रतिशत ब्याज दर के साथ दो महीने के भीतर भुगतान की जाए और इसके साथ ही तीन हजार रुपये की क्षतिपूर्ति भी दी जाए।
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