ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वी यूपी में गन्ने की खेती से किसान क्यों बना रहे दूरी?

गन्ना मूल्य भुगतान में लंबी देरी, प्रति क्विंटल गन्ने का उचित दाम न मिलना, लागत अधिक और महंगाई जैसे प्रमुख मुद्दों के चलते गन्ने की खेती से किसानों का हो रहा मोह भंग। चीनी के कटोरे का गौरव प्राप्त करने वाला यूपी गन्ना उत्पादन में प्रथम स्थान पर बरकरार रहने की कर रहा जद्दोजहद। जिस जिले में 4 चीनी मिले हैं वहां के किसान तेजी से बंद कर रहे गन्ने की खेती।
किसान कुलदीप चौधरी, गन्ने के भुगतान में देरी की वजह से अब कम रकबे में गन्ने की खेती करने के लिए मजबूर हैं।
किसान कुलदीप चौधरी, गन्ने के भुगतान में देरी की वजह से अब कम रकबे में गन्ने की खेती करने के लिए मजबूर हैं।फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक
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उत्तर प्रदेश। प्रदेश में गन्ना मूल्य भुगतान में देरी के खिलाफ किसानों द्वारा धरना प्रदर्शन की खबरें लगातार सामने आती रहीं हैं। चीनी मिलों द्वारा समय से गन्ना मूल्य का भुगतान न होना किसानों के धरना प्रदर्शन की मुख्य वजह रही है। जहां उत्तर प्रदेश को देश में सबसे अधिक गन्ना उत्पादन और सबसे ज्यादा गन्ने की पेराई के लिए भारत का ‘चीनी का कटोरा’ का गौरव प्राप्त है, यहीं अब प्रदेश के किसान इसकी खेती करने से पैर पीछे खींच रहे हैं। देश में सबसे अधिक गन्ने के उत्पादन में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है।

एक समय था जब पूर्वी यूपी के बस्ती जिले में कुल 4 चीनी मिलें — रुधौली अठदमा बजाज हिंदुस्तान शुगर मिल, बस्ती शुगर मिल, मुंडेराव शुगर मिल, कप्तानगंज शुगर मिल — संचालित होती थीं। एक अन्य बभनान चीनी मिल भी दो जिलों — बस्ती और गोंडा — के बीच स्थित है, जहां बस्ती जिले के ज्यादातर किसानों की गन्ने की पर्चियाँ आती हैं। एक ही जिले में इतनी चीनी मिलों के अस्तित्व के परिणाम स्वरूप जिले के किसान अपने कृषि जोतों का अधिकांश हिस्सा गन्ने की खेती के लिए ही उपयोग करने लगे थे। लेकिन बदलती परिस्थितियाँ, नीतियों में बदलाव, गन्ना किसानों पर राजनीति और महंगाई ने किसानों के उत्साह हो घटा दिया। जिससे लोग अपने खेतों में गन्ने की बुवाई कम करने लगे।

बस्ती जिले के रुधौली अठदमा बजाज हिंदुस्तान शुगर मिल में किसानों करोड़ों रुपए गन्ने का भुगतान लंबित है।
बस्ती जिले के रुधौली अठदमा बजाज हिंदुस्तान शुगर मिल में किसानों करोड़ों रुपए गन्ने का भुगतान लंबित है। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

लगभग 20 साल से गन्ने की खेती करने वाले भानपुर तहसील के सल्टौआ विकासखंड के ग्राम अमरौली शुमाली निवासी किसान प्रदीप चंद वर्मा (52), 8 बीघे (4.9 एकड़) में गन्ने की खेती किए हुए हैं। उन्होंने गन्ने की खेती 16 बीघे (9.9 एकड़) में बुवाई के साथ शुरू की थी। लेकिन बीतते समय के साथ उन्होंने गन्ने की खेती आधा कम कर दिया। नवंबर-दिसंबर में उन्होंने गन्ने को मिल पर पहुंचाया था, लेकिन अब जुलाई का महीना चल रहा है, अबतक उनको भुगतान नहीं मिला। “अगर गन्ने का भुगतान समय से न होने, उचित रेट न मिलने की यही स्थिति बनी रही तो आगे से गन्ने की खेती बंद कर देनी पड़ेगी”, वर्मा ने बताया। किसान ने बताया कि गन्ने की फसलों को जानवर भी बर्बाद कर रहे हैं। इससे गन्ने की खेती करना मुश्किल हो रहा है।

आपको बता दें कि बसपा और सपा शासन काल में 2007 से 2017 के दौरान बंद होने वाली 29 मिलों के मद्देजर नई मिलों को खोलना और पुरानी मिलों का आधुनिकीकरण करना किसानों के हित में ऐतिहासिक कदम माना गया था। इसी के साथ गन्ना मूल्य के बकाये से लेकर चीनी मिलों में पेराई न होना पहले से ही बड़ा मुद्दा रहा है। मार्च-2017 में योगी सरकार के आने के पहले बकाया बड़ा मुद्दा था. हालांकि, सत्ता में आने के बाद योगी सरकार ने भुगतान के साथ ही सबसे ज्‍यादा जोर पुरानी मिलों के आधुनिकीकरण और नई मिलों की स्थापना पर दिया। इस क्रम में करीब दो दर्जन मिलों की क्षमता बढ़ायी गयी। गोरखपुर के पिपराइच, बस्ती के मुंडेराव और बागपत के रमाला में अत्याधुनिक और अधिक क्षमता की नई मिलें लगाई गईं।

गन्ना किसान राम बुझारत मौर्या चीनी मिलों के आधुनिकीकरण पर जोर देते हैं।
गन्ना किसान राम बुझारत मौर्या चीनी मिलों के आधुनिकीकरण पर जोर देते हैं। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

गन्ने की मिठास को और बढ़ाने की दिशा में प्रदेश सरकार ने प्रयास तो किया लेकिन तमाम चीनी मिल संचालकों ने भुगतान में मनमानी करते हुए किसानों का गन्ने की खेती के प्रति आकर्षण कम कर दिया। बस्ती जिले के ही एक अन्य किसान राम बुझारत मौर्या (58), लंबे समय से डेढ़ एकड़ (1.5 बीघा) में गन्ने की खेती करते चले आ रहे हैं। किसानों का गन्ने की खेती के प्रति झुकाव कम होने का कारण बताते हुए वह द मूकनायक को बताते हैं, “यहां राष्ट्रीय स्तर पर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समस्याएं हैं। राष्ट्रीय स्तर पर जो धरातल पर समस्याएं हैं, वह है चीनी मिल द्वारा समय से भुगतान न करना। हमारे बगल में गोविन्द नगर शुगर मिल थी, जो 4 - 5 साल बाद बंद हो गई। किसानों का लगभग 55 करोड़ बकाया है। अगर छोटी-छोटी चीनी मिलों को शुगर कॉम्प्लेक्स, चीनी संस्थानों में नहीं बदला गया तो राष्ट्रीय स्तर पर यह समस्या बरकर रहेगी। वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हम ब्राजील में देखते हैं कि वह गन्ने के सीरे से, गन्ने के बगास से कई तरह के ऐसे उत्पाद तैयार करता है जिनकी मांग विश्वस्तर पर है। जबकि हम कृषि प्रधान देश तो हैं लेकिन उस तरह की नई टेक्नोलॉजी अपना नहीं पा रहे हैं। हमारे यहां पुरानी टेक्नोलॉजी से चीनी मिलें चल रही हैं। उन पुरानी चीनी मिलों से उद्धार होना (किसानों का भला) संभव नहीं है।”

मौर्या आगे बताते हैं कि, “वर्तमान सरकार गन्ने का रेट चुनाव के समय ही घटती और बढ़ाती है। इससे भी किसानों का गन्ने की खेती से मोहभंग हो जाता है। अगर सच्ची मानसिकता से केंद्र सरकार और राज्य सरकार गन्ने की खेती में लागत का आकलन कर लें तो उन्हें मालूम पड़ जाएगा कि किसान कैसी चुनौती का सामना कर रहा है।” वह बताते हैं कि, “अगर ऐसी स्थित बनी रही तो किसान गन्ने की खेती छोड़ देंगे। आज किसान गन्ने की आमदनी से अपने बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा और भरण-पोषण नहीं कर पा रहा है। क्योंकि मार्केट में यह चीजें बहुत महंगी हो चुकी हैं। जबकि किसान को गन्ने पर मिलने वाला मूल्य बहुत ही कम है। सरकार को चाहिए कि उनके जो रिसर्च सेंटर हैं वहां से प्रति कुंतल गन्ने को तैयार करने में जो लागत आती है उसको ध्यान में रखकर गन्ने का मूल्य तय करें।”

वर्तमान समय में पूर्वी यूपी में किसानों ने गेट पर अर्ली किस्म के गन्ने का दाम 350 रुपए प्रति क्विंटल, सामान्य किस्म के गन्ने का दाम 340 रुपए प्रति क्विंटल बताया है। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले कार्यकाल में गन्ना किसानों के भुगतान को लेकर एक ट्वीट किया था। जिसमें उन्होंने लिखा था कि, “गन्ना किसानों के पुराने बकाये 15 दिन के अन्दर भुगतान कराया जाये।” हालांकि, मौजूद समय में परिदृश्य एकदम अलग है। 

गन्ना किसानों के भुगतान के मामले में देरी पर 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश के गन्ना किसानों को बड़ी राहत दी थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि सरकारी कंट्रोल ऑर्डर के तहत गन्ना खरीद से 14 दिन के भीतर गन्ने का पूरा भुगतान किया जाना चाहिए और अगर भुगतान नहीं होता है तो उस पर 15 फीसदी ब्याज देना होगा। इस नियम के बावजूद किसानों को अपने भुगतान प्राप्त करने के लिए चीनी मिलों पर धरना प्रदर्शन और कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।

ग्राम पंचायत डड़वा भैया निवासी किसान, कुलदीप चौधरी (44) के पास कुल 5 एकड़ खेती योग्य जमीन है, जिसमें से वह मौजूदा समय में 2 एकड़ (लगभग 6 बीघा) में गन्ने की खेती करते हैं। इससे पहले वह लगभग साढ़े 4 एकड़ (लगभग 10 बीघा) खेत में गन्ने की खेती कर रहे थे। लेकिन अब वह गन्ने की बुवाई कम कर सिर्फ दो फसलों — गेहूं, धान — तक ही सीमित हो गए हैं। 

गन्ने की खेती करने वाले किसान कुलदीप चौधरी का मानना है कि समय से गन्ने का भुगतान नहीं होने से पूरे साल का बजट गड़बड़ हो जाता है। किसान के पास अगली फसल लगाने के लिए पैसे नहीं होते।
गन्ने की खेती करने वाले किसान कुलदीप चौधरी का मानना है कि समय से गन्ने का भुगतान नहीं होने से पूरे साल का बजट गड़बड़ हो जाता है। किसान के पास अगली फसल लगाने के लिए पैसे नहीं होते। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

“हम किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या चीनी मिलों द्वारा गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं किया जाना है। समय से भुगतान नहीं होने से हमारे पास पूंजी नहीं होती, अगली फसल लगाने के लिए पैसा नहीं होता, बच्चों की फीस देने के लिए या अन्य खर्च के लिए हमारे पास पैसे नहीं होते। इसलिए हमें गन्ने की खेती को छोड़कर अन्य फसलों की खेती करनी पड़ रही है”, कुलदीप चौधरी ने द मूकनायक को बताया। 

“समय से भुगतान न होने के कारण हमारे पूरे साल का बजट ही बिगड़ जाता है। गन्ने की खेती में जो लागत मूल्य आती है उस हिसाब से गन्ने का दाम बहुत ही कम या न्यूनतम है। यदि गन्ने का मूल्य 700 या 750 रुपए प्रति कुंतल किया जाए तब जाकर किसानों का कुछ मुनाफा हो पाएगा। पहले की अपेक्षा वर्तमान में जो चीनी मिल मालिक हैं वह किसानों के प्रति बिल्कुल भी वफादार नहीं हैं”, कुलदीप ने वर्तमान चीनी मिल मालिकों का किसानों के प्रति रवैये से असंतुष्टि व्यक्त करते हुए कहा।

बस्ती जिले के रुधौली तहसील क्षेत्र के ग्राम पैड़ा निवासी किसान राजेश मणि त्रिपाठी (54) के पास कुल 16 बीघे (9.9 एकड़) खेती है। वर्ष 2011 तक वह अपने 12 बीघे (7.4 एकड़) में गन्ने की खेती करते थे, लेकिन 2011 के बाद से आज तक वह गन्ने की खेती नहीं किए। अब वह अपनी पूरी खेती में सिर्फ गेहूं और धान की फसल बोते हैं। उक्त सभी किसानों की तरह त्रिपाठी भी गन्ने की खेती बंद करने के पीछे का कारण गन्ने के भुगतान में देरी बताते हैं। 

सालों पहले गन्ने की खेती करने वाले किसान राजेश मणि त्रिपाठी अब गन्ने की खेती पूर्णतया बंद कर चुके हैं। उनके गांव में सिर्फ एक किसान गन्ने की खेती करता है।
सालों पहले गन्ने की खेती करने वाले किसान राजेश मणि त्रिपाठी अब गन्ने की खेती पूर्णतया बंद कर चुके हैं। उनके गांव में सिर्फ एक किसान गन्ने की खेती करता है।फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

किसान राजेश ने द मूकनायक को बताया, “आज गन्ने की खेती में लेबर से लेकर मिल तक पहुंचाने, निराई-गुड़ाई, और जुताई में लागत बढ़ गई है, जबकि इतनी पूंजी लगाने के बाद भी समय से गन्ना मूल्य का भुगतान नहीं मिल पाता है। इसी वजह से गन्ने की खेती से मोह भंग हो गया। हम साल भर गन्ना तैयार करने में लागत लगाते हैं, और मिल वाले सालों तक भुगतान ही नहीं देते हैं। किसान उसी पैसों से शादी-विवाह निपटाते थे। गन्ने के भुगतान से किसानों को उनके बच्चों की फीस व स्वास्थ्य देखभाल के लिए इकट्ठा पैसा मिल जाता था। लेकिन अब जो चुनौतियाँ आ रहीं हैं, इससे किसान गन्ने की खेती करने से पीछे हट रहा है। मैं पहले 12 बीघा (7.4  एकड़) गन्ना बोता था, लेकिन अब लगभग 7 - 8 साल से एक गन्ने का पेड़ तक नहीं लगाया हूँ। इतनी लागत के बावजूद गन्ने का रेट बहुत कम है। इससे गन्ने की खेती बंद कर दिया।”

“गन्ने की खेती से लोगों का मोह भंग हो रहा है, ऐसे रहा तो आज जो ‘चीनी के कटोरे’ का गौरव यूपी को मिला है यह किसी अन्य राज्य को प्राप्त हो जाएगा। सरकार को मिलों पर शिकंजा कसना चाहिए। जिससे किसानों को समय से गन्ने का भुगतान हो। प्रदेश में कुछ सरकारी मिल हैं तो कुछ प्राइवेट हैं। हमारे यहां (बस्ती) तो अधिकांश प्राईवेट हैं। मिल प्रबंधन की मनमानी बंद होनी चाहिए”, राजेश ने अपने पीछे खेतों की ओर इशारा करते हुए कहा कि, “अगर यही दशा बनी रही तो हम कभी गन्ना नहीं बोएंगे। मेरे पीछे आपको जो खेत दिख रहा है वह हमारे गाँव के एकलौते एक ऐसे किसान हैं जो पूरे गाँव में सिर्फ अकेले गन्ने की खेती कर रहें हैं। उनके अलावा गांव का अन्य कोई किसान गन्ना नहीं बो रहा है।”

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को चीनी मिल मालिकों द्वारा बकाया राशि का भुगतान किए जाने के संबंध में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा को जानकारी दी है कि, बीते पांच वर्षों में चीनी मिलों की बकाया राशि 2,00,719.38 करोड़ रुपये थी जिसमें से 2,00,404.18 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया है। हालांकि अभी भी चीनी मिलों पर 300.2 करोड़ रुपये बकाया है जिसका भुगतान जल्द किए जाने के निर्देश सरकार ने दिए हैं।

गन्ना मूल्य का भुगतान अभी भी इन जिलों — बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, बागपत, गोंडा, लखीमपुर खीरी के रहने वाले किसानों का नहीं हुआ है। बस्ती में वर्ष 2017-18 में 19.65 करोड़ का भुगतान नहीं किया गया जबकि 2020-21 में महाराजगंज के किसानों को 8.92 करोड़ का बकाया नहीं दिया गया। इसके अलावा 2021-22 में कुशीनगर के चीनी मिलों पर 39.31 करोड़, महाराजगंज में 7.47 करोड़, बागपत में 139.78 करोड़, गोंडा में 19.72 करोड़ और लखीमपुर खीरी में 80.35 करोड़ रुपये बकाया है।

किसान प्रमोद कुमार चौधरी (38) का परिवार आज से 4 - 5 साल पहले अपने कुल खेती का आधे से ज्यादा हिस्से में गन्ने की खेती करता था। कुल 10 बीघे (6.19 एकड़) खेती में लगभग 6 बीघे (3.71 एकड़) में प्रमोद गन्ने की फसल लगाते थे। शेष 4 बीघे में धान-गेहूं की बुवाई करते थे। “हम लोग किसान हैं, जब गन्ने की खेती करते थे तब उसी से हम लोगों का भविष्य तय होता था। उसी से हमारी पढ़ाई-लिखाई, शादी-विवाह का काम होता था। क्योंकि गन्ना ही हम लोगों का मुख्य आय का स्रोत था। लेकिन जब से भुगतान को लेकर देरी होने लगी तब से गन्ने की खेती बंद कर दिया”, प्रमोद ने बताया। 

कभी बस्ती जिले में गन्ने की खेती खूब हुआ करती थी।
कभी बस्ती जिले में गन्ने की खेती खूब हुआ करती थी। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

प्रमोद आगे बताते हैं कि, “वाल्टरगंज चीनी मिल बंद हो गई, उसमें लाखों रुपया पड़ा है। बस्ती जनपद में गन्ना किसानों की बड़ी दुर्दशा है। इस साल का उस साल, ऐसी तो भुगतान मिलता है। गन्ने की छिलाई, ढुलाई में जो मजदूरी होता है वह तत्काल देना होता है। सिंचाई के लिए डीजल का पैसा तत्काल देना है। डीजल का दाम चरम सीमा पर पहुंच गया है। खाद जहां पहले 50 किलो की आती थी उसको अब 45 किलो कर दिया गया है। यह सब होते हुए भुगतान समय से मिल ही नहीं रहा है।” 

बलरामपुर शुगर मिल (बीसीएम) के तुलसीपुर यूनिट में कार्यरत पैनमैन पवन कुमार त्रिपाठी (41) लगभग 16 सालों से बीसीएम ग्रुप के चीनी मिल में काम कर रहे हैं। पवन के अनुसार, बलरामपुर क्षेत्र असिंचित भूमि (सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता की कमी) होने की वजह से यहां के किसान गन्ने की बुवाई कम करते हैं। लेकिन जो भी किसान गन्ने की खेती करते हैं उन्हें गन्ने का भुगतान मात्र सप्ताह भीतर ही कर दिया जाता है। “जितना होना चाहिए उतना गन्ना तो पेराई के लिए नहीं मिल रहा है, जितना पहले मिलता था। इसके कई कारण हैं जैसे- फैक्ट्रियों की संख्या बढ़ना, और फैक्ट्री के कैप्सिटी का बढ़ना। कई फैक्ट्रियों के लगने से उसी दायरे में चीनी मिलों को वांछित गन्ना पेराई के लिए नहीं मिल पाता। फैक्ट्री की कैप्सिटी बढ़ाने से भी पर्याप्त गन्ना किसानों से नहीं मिल पाता”, त्रिपाठी ने द मूकनायक को गन्ने की खेती की कमी की वजह जनसंख्या वृद्धि भी बताया। 

“चूंकि जब जनसंख्या बढ़ रही है तो लोग गन्ने की बुवाई कम कर रहे हैं, धान, गेहूं और सब्जी की खेती पर लोग ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जो लोगों के पेट भरने के काम आए”, पवन ने बताया।

द मूकनायक से बातचीत के दौरान पवन कुमार त्रिपाठी ने यह भी जानकारी दी कि प्रदेश में जहां-जहां भी बजाज ग्रुप की चीनी मिलें लगीं हैं वहां-वहां गन्ना किसान निराश हैं। पवन ने बताया, “किसानों को बजाज चीनी मिलों द्वारा समय से गन्ने का भुगतान नहीं मिल रहा है। साल-दो साल या महीनों की देरी से किसानों को भुगतान मिल रहा है। जबकि हमारा ग्रुप (बीसीएम) सातवें दिन किसानों को भुगतान कर देता है।”

गन्ना किसानों का गन्ने की खेती से खत्म होते लगाव और यूपी के पूर्वाञ्चल में गन्ना किसानों की मौजूदा समस्याओं पर सरकार का पक्ष जानने के लिए द मूकनायक ने चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग उत्तर प्रदेश के जन सूचना अधिकारी, आयुक्त गन्ना एवं चीनी, अपर चीनी आयुक्त, व अपर गन्ना आयुक्त (प्रशासन) लखनऊ से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन अधिकारियों के सीयूजी नंबर बंद मिले। हमने उन्हें संबंधित मामले पर ईमेल भी किया है। जैसे ही हमें मामले पर कोई टिप्पणी मिलती है, उसे रिपोर्ट में अपडेट कर दिया जाएगा।

गन्ना उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु होने के बावजूद किसान गन्ने की खेती से मुंह फेर रहे।
गन्ना उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु होने के बावजूद किसान गन्ने की खेती से मुंह फेर रहे।फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

उत्तर प्रदेश में गन्ने का उत्पादन

पूरे देश में गन्ना उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश का स्थान अग्रणी रहा है, जिससे प्रदेश को ‘चीनी का कटोरा’ का गौरव प्राप्त है। प्रदेश में लंबे समय से किसान अपने अधिकांश कृषि योग्य खेतों में गन्ने की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन अब वर्तमान परिस्थितियों में गन्ना किसान निराश और हताश दिखाई दे रहा है। चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग उत्तर प्रदेश के अनुसार, पेराई सत्र 2022-23 के दौरान राज्य में कुल 118 चीनी मिलें संचालित हुईं। किसान आज भी 28.53 लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती करते हैं जिसकी गन्ना उत्पादकता 839 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जो पिछले वर्ष की तुलना में 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अधिक है। 

इस साल मई में, यूपी के गन्ना विकास एवं चीनी मिल मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने समाचार एजेंसी पीटीआई के हवाले से जानकारी दी थी कि, ''कई अन्य कारकों के साथ-साथ चीनी उत्पादन के मामले में यूपी महाराष्ट्र से आगे है। चीनी सत्र 2022-2023 में उत्तर प्रदेश द्वारा उत्पादित कुल चीनी 107.29 लाख टन है (जिसमें 3.05 लाख टन खांडसारी (तरल गुड़ से भौतिक रूप से निकाली गई चीनी) शामिल है, जबकि महाराष्ट्र द्वारा 105.30 लाख टन है। यूपी में गन्ने का उत्पादन 2,348 लाख टन रहा है, जबकि महाराष्ट्र में यह 1,413 लाख टन था। 2022-2023 सीज़न में यूपी में चीनी मिलों द्वारा कुल गन्ना पेराई 1,084.57 लाख टन थी, जबकि महाराष्ट्र में यह 1,053 लाख टन थी।”

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