उत्तर प्रदेश: विधानसभा में बुधवार को बस्ती जिले के रुधौली से सपा विधायक राजेंद्र प्रसाद चौधरी ने कृषि उपकरणों, कीटनाशक व अन्य कृषि निवेश से जीएसटी हटाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि उपकरणों पर 12 से 18 प्रतिशत तक जीएसटी लगाया है, कई उपकरणों पर तो 28 प्रतिशत जीएसटी लिया जा रहा है. इससे किसानों का नुकसान हो रहा है.
विधायक ने यह मुद्दा उठाते हुए तर्क दिया कि जब कृषि से सम्बंधित सारे उपकरण जीएसटी से मुक्त होंगे तो लागत घटेगी और किसानों की आय बढ़ेगी. हालाँकि, एमएलए राजेन्द्र प्रसाद चौधरी द्वारा विधानसभा में उठाए गए इस मुद्दे पर जब प्रदूषण रोकने में मदद करने वाले कृषि उपकरणों पर भी जीएसटी वसूली की बात का उल्लेख किया तो मुद्दे ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया.
द मूकनायक से बात करते हुए विधायक राजेन्द्र प्रसाद चौधरी ने बताया कि, पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने वाले उपकरण जैसे सुपर सीडर, पैड़ी स्ट्रा चापर व मल्चर पर भी जीएसटी वसूली जा रही है। यह किसानों की जेब पर भारी पड़ रहा है।
“पर्यावरण की चिंता हमें भी है, उन्हें (सरकार) भी है और कोर्ट को भी है. पराली को नष्ट करने वाले तमाम ऐसे कृषि यन्त्र हैं, उस पर भी उन्होंने टैक्स लगा रखा है. मेरा आशय यह था कि अगर यह टैक्स मुक्त होता तो किसान उसे सुलभता से ले पाता और उसका उपयोग करता. इससे पर्यावरण प्रदूषण से हमें सुरक्षा मिलती”, विधानसभा में उठाए गए मुद्दे को दोहराते हुए राजेन्द्र प्रसाद चौधरी ने द मूकनायक को बताया.
बुधवार को राजेन्द्र प्रसाद चौधरी द्वारा विधानसभा में उठाए गए इस मुद्दे के जवाब में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि खाद और कीटनाशकों पर जीएसटी पांच प्रतिशत ली जा रही है। जबकि, हस्त और पशु चलित कृषि उपकरण जैसे कुदाल, फावड़ा आदि को जीएसटी से मुक्त रखा गया है। रही बात अन्य उपकरणों पर तो जीएसटी काउंसिल सोच समझ कर फैसले करती है। यदि जीएसटी न लगाई गई तो किसानों के उपकरण और भी महंगे पड़ेंगे।
राजेन्द्र प्रसाद द मूकनायक को आगे बताते हैं कि, “खुरपी, हंसुवा, फावड़ा तो सौ रुपए का आइटम है. उसपर आप टैक्स नहीं ले रहे हो. लेकिन जिन कृषि यंत्रों के दाम लाखों में हैं- ट्रैक्टर से लेकर रोटावेटर, मल्चर, कल्टीवेटर, कंबाइन, और पलाऊ, अगर सबके दाम जोड़े जाएं तो किसान को कृषि यन्त्र पर लाखों रुपए का टैक्स देना पड़ता है. यह लाखों रुपए किसानों के लिए बहुत बड़ी कीमत है.” उन्होंने कहा, “किसानों को गुमराह करने के लिए यह कहते हैं कि हम 2000 रुपए प्रति तिमाही (किसान सम्मान निधि) किसानों को दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर कृषि यंत्रों पर आप लाखों रुपए किसानों से टैक्स के नाम पर ले लेते हो. लाखों रुपयों के सामने तो आपका 6 हजार कुछ भी नहीं है.”
आपको बता दें कि, विधानसभा में यूपी के विधायक ने जो मुद्दा उठाया था उसकी गंभीरता हम इस बात से समझते हैं कि मल्चर जो पराली इत्यादि को काटकर उनके टुकड़े करता है जिससे पराली जलाना नहीं पड़ता है। इस यंत्र के उपयोग से खेत में आग लगाने की वजह से पर्यावरण तथा भूमि के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान से बचाव किया जा सकता है। इसी तरह के जैसे तमाम यंत्रों- रिवर्सिवल प्लाउ, स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर - जो लाखों की कीमत में मिलते हैं, इनपर राज्य व केंद्र द्वारा लगाए जाने वाले जीएसटी भार की वजह से एक बड़ी राशि किसानों को सिर्फ एक कृषि यन्त्र पर जीएसटी के रूप में दे देना पड़ता है. जिससे पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने वाले ऐसे कृषि यंत्रों की खरीद और उपयोग बहुत कम हो पता है.
उत्तर प्रदेश में कम्बाइन और अन्य कृषि यंत्रों को बेचने वाले बड़े डीलर किसान हार्वेस्टर के प्रोपराइटर दिलीप तिवारी से द मूकनायक ने कृषि यंत्रों पर लगने वाले जीएसटी के बारे में बात की. कम्बाइन सहित पराली प्रबंधन के उपयोग में आने वाले स्ट्रा चापर, सुपर सीडर, मलचर जैसे कृषि यंत्रों को बेचने के सवाल पर दिलीप तिवारी ने बताया कि, “जिस कंपनी से हम यह कृषि यंत्र खरीदते हैं वह कंपनी हमें 12 प्रतिशत जीएसटी जोड़कर कृषि यंत्र देती है। इसी कारण हमें भी अपने ग्राहकों को वह कृषि यंत्र 12 प्रतिशत जीएसटी जोड़कर बेचना पड़ता है। पराली प्रबंधन वाले कृषि यंत्रों का दाम 3 से 4 लाख के आसपास होता है, जिसमें 35 से 40 हजार के बीच किसानों को जीएसटी देना पड़ता है।”
कृषि यंत्रों पर जीएसटी के मुद्दे पर यूपी के किसान राजेश त्रिपाठी द मूकनायक से बताते हैं कि, “कृषि यंत्रों पर सिर्फ जीएसटी हटाना ही नहीं चाहिए, बल्कि और चीजों पर जैसे सरकार अनुदान देती है उसी तरह इन यंत्रों पर भी सरकार को अनुदान देना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “सरकार तमाम चीजों का प्रबंध करती है, यह किसानों के पराली का प्रबंध क्यों नहीं कर सकती। किसान सूचित कर दे और सरकार किसानों के खेत से पराली उठवा ले जाए। इससे हमें किसी कृषि यंत्र की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। बड़े-बड़े फैक्ट्रियों को सरकार बिना ब्याज के पैसा देती है, और किसान आत्महत्या करता है।”
आपको बात दें कि, सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर को पंजाब और दिल्ली से सटे अन्य राज्यों में पराली जलाने को हतोत्साहित करने की carrot-and-stick नीति के एक हिस्से के रूप में, पराली जलाने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बुनियादी ढांचे के दायरे से बाहर करने का सुझाव दिया था।
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