भोपाल। मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ अंचल के किसानों के लिए यह साल बेहद मुश्किल भरा साबित हो रहा है। जिन खेतों में पूरे देश के लिए सोयाबीन और कपास की फसलें उगाई जाती थीं, वहां इस बार बारिश ने किसानों के सपनों को बर्बाद कर दिया है। मानसून के अंतिम दौर में आई भारी बारिश ने पक चुकी और कटाई के लिए तैयार फसलों को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है। इस क्षेत्र में कई जगहों पर 80 प्रतिशत तक फसलें नष्ट हो गई हैं, जिससे किसानों की हालत बेहद खराब हो गई है।
मालवा-निमाड़ क्षेत्र के खेतों में अब हरे-भरे पौधों की जगह सूखे, सड़े हुए पौधे दिखाई दे रहे हैं। किसानों का दर्द और हताशा इन खेतों में साफ देखी जा सकती है। सोयाबीन और कपास की फसलों पर निर्भर किसान अब कभी अपनी बर्बाद फसलों को देखकर आंसू बहा रहे हैं, तो कभी बादलों को कोस रहे हैं।
इस विपदा के बीच सरकारी सहायता भी अब तक किसानों तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई है। खेतों में फसलों की बर्बादी का आकलन करने के लिए सरकारी सर्वे टीमें कहीं-कहीं ही पहुंची हैं। कई जिलों में सर्वे का काम शुरू तक नहीं हो पाया है, जबकि किसानों ने जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से बार-बार गुहार लगाई है। किसानों को सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, लेकिन सर्वे की प्रक्रिया धीमी गति से आगे बढ़ रही है।
जिन जिलों में सर्वे शुरू हुआ है, वहां भी किसान नतीजों का इंतजार कर रहे हैं। शाजापुर, मंदसौर और रतलाम जैसे जिलों में कुछ जगहों पर सर्वे का काम चल रहा है, लेकिन रिपोर्टें अभी तक नहीं सौंपी गई हैं। इससे किसानों में और निराशा फैल रही है। किसान संघ और अन्य संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया, तो वे आंदोलन करने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
खंडवा जिले में सबसे अधिक नुकसान दर्ज किया गया है। यहां लगभग ढाई लाख हेक्टेयर में सोयाबीन, 10 हजार हेक्टेयर में प्याज, और 55 हजार हेक्टेयर में कपास की खेती की गई थी। लेकिन लगातार बारिश ने सोयाबीन और प्याज की फसलों को 70 से 80 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाया है। किसान इस स्थिति से बेहद परेशान हैं और उन्होंने कई बार जिला प्रशासन से सर्वे की मांग की है, लेकिन अब तक सर्वे टीमें गठित नहीं की गई हैं। खंडवा जिले में किसानों ने प्रशासन के खिलाफ धरना भी शुरू कर दिया है।
झाबुआ जिले में भी स्थिति गंभीर है। यहां एक लाख 89 हजार हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बोवनी की गई थी, लेकिन अधिक वर्षा के कारण 70 से 80 प्रतिशत फसलें बर्बाद हो गई हैं। भारतीय किसान यूनियन के सचिव जितेंद्र पाटीदार का कहना है कि प्रशासन सर्वे कराने में देरी कर रहा है, जिससे किसानों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
प्रदेश के शाजापुर जिले में सोयाबीन की फसल का क्षेत्रफल 2.60 लाख हेक्टेयर है। कुछ क्षेत्रों में सर्वे का काम चल रहा है, लेकिन फसल के नुकसान की रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। किसानों का कहना है कि 50 से 60 प्रतिशत तक फसल बर्बाद हो चुकी है।
रतलाम जिले में लगभग सवा तीन लाख हेक्टेयर में रबी की फसल की बोवनी की गई थी। अतिवृष्टि और बीमारियों के कारण फसलें पूरी तरह बर्बाद हो चुकी हैं। किसान संघ के जिलाध्यक्ष ललित पालीवाल का कहना है कि 50 प्रतिशत से अधिक नुकसान हुआ है, लेकिन सर्वे का काम धीमी गति से हो रहा है।
मंदसौर जिले में 2.23 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी की गई थी, लेकिन लगातार बारिश से 40 से 60 प्रतिशत तक फसलें खराब हो गई हैं। यहां भी सर्वे की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हो पाई है।
किसानों की बदहाली को देखते हुए किसान संगठनों ने राज्य सरकार को सख्त चेतावनी दी है। उनका कहना है कि यदि जल्दी से जल्दी फसलों की क्षति का आकलन कर मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया, तो वे आंदोलन की राह पर उतरेंगे। इस स्थिति में त्योहारी मौसम में जब देश के बाकी हिस्सों में खुशी का माहौल है, मालवा-निमाड़ के गांवों में सिर्फ अंधकार और निराशा का माहौल है।
द मूकनायक प्रतिनिधि से बातचीत करते हुए भारतीय किसान संघ के मध्यभारत प्रान्त प्रचार प्रमुख राहुल धूत ने बताया, की निमाड़ और मालवा में 80 प्रतिशत तक फसलें बर्बाद हुई है। हम सरकार से मांग करते हैं कि वह तत्काल सर्वे कराकर किसानों को उचित मुआवजा और बीमा की राशि देना सुनिश्चित करें ताकि किसानों को राहत मिल सके।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.