प्राणिशास्त्रियों द्वारा किये सर्वे में चौंकाने वाले परिणाम आए सामने। अधिकांश किसान आज भी पिडकनाशी के हानिकारक प्रभावों से अनभिज्ञ है तथा वो पिडकनाशी के इस्तेमाल के लिए तय सुरक्षा मानकों की अवहेलना कर अपनी और अपने परिवार की जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं।
उदयपुर, राजस्थान। सुखाड़िया विश्वविद्यालय के प्राणी शास्त्र विभाग द्वारा हाल में जारी एक शोध-सर्वे रिपोर्ट के नतीजे डराने वाले हैं। रिपोर्ट की माने तो उदयपुर के आसपास खेतों में उगाई जा रही फसलों और फल-सब्जियां पर अनियंत्रित रूप से कीटनाशक केमिकल्स का इस्तेमाल हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2011 में देश में प्रतिबंधित किया गया एंडोसल्फान भी बाजार में धड़ल्ले से बिक रहा है जिसे किसान बिना किसी रोक टोक फसलों में कीटनाशक के तौर पर छिड़काव कर रहे हैं। गौरतलब है कि उदयपुर में कृषि और प्रौद्योगिकी के लिए एक ख्यातिनाम विश्वविद्यालय महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि भी कार्यरत है साथ ही राज्य सरकार के कृषि विभाग के संभाग स्तरीय उच्च अधिकारी भी यहां आसीन हैं, फिर भी दिया तले अंधेरा की स्थिति बनी हुई है।
एक्सपर्ट्स की राय है कि स्थानीय निकाय को साथ में लेकर राज्य सरकार के स्तर से कीटनाशक के नियंत्रित उपयोग पर पहल होनी चाहिए वरना वो दिन दूर नहीं होगा जब राजस्थान में भी पंजाब की तरह कैंसर हर घर की बीमारी बन जाए। इस मामले में कृषि विभाग से पूछने पर अधिकारियों ने खाद-कीटनाशक विक्रेताओं द्वारा एंडोसल्फान बेचने की कोई जानकारी नहीं होना बताया और ऐसा पाया जाने पर सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रुसा-2.0) के अंतर्गत विभागाध्यक्ष एवं पीआई प्रो. आरती प्रसाद और को-पीआई डॉ. गिरीमा नागदा के निर्देशन में चल रहे पिडकनाशी सर्वेक्षण एवं जागरूकता प्रोजेक्ट के तहत किए गए फील्ड सर्वेक्षण एवं शोध से कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े सामने आए हैं। विभागाध्यक्ष एवं प्रोजेक्ट की पीआई प्रो. आरती प्रसाद ने द मूकनायक को बताया कि इस सर्वेक्षण के तहत एक प्रश्नावली तैयार कर उदयपुर एवं उदयपुर के पास स्थित क्षेत्रों माली कॉलोनी, मनवाखेड़ा, छोटी नोखा, बड़ी नोखा, डांगियो का मोहल्ला, सीसारमा, कलारोहि, शोभागपुरा, बेदला, बड़ी, ईसवाल, शिवपुरी(चिरवा), एकलिंगपुरा एवं कराकला गांव में जाकर सर्वेक्षण कार्य किया गया तथा सर्वेक्षण के दौरान कुल 304 किसानों से संवाद कर प्रश्नावली भरवायी गयी।
जब प्रश्नावली द्वारा जुटाए गए आंकड़ो का तुलनात्मक अध्ययन किया गया तो यह पाया गया कि सर्वेक्षण के दौरान खेतों में कार्य कर रहे कुल 350 व्यक्तियों मे से सर्वाधिक 31.58% व्यक्ति 40 से 50 वर्ष की आयु के थे जबकि 70 वर्ष से अधिक की आयु के व्यक्तित्व सबसे कम 4.61% थे। कुल किसानों में से सर्वाधिक 25.7% किसान अनपढ़ थे, ज्यादातर किसान दसवीं से कम पढ़े थे जबकि मात्र 2.6%किसान दसवीं अथवा इससे अधिक की पढ़ाई कर चुके थे।
सर्वेक्षण के दौरान सामने आया कि गेंहू, मक्का, बाजरा, ज्वार, सोयाबीन, सरसों, मिर्ची, फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर, करेला एवं भिंडी मुख्य उगायी जाने वाली फ़सलें थी। सर्वेक्षण के दौरान पाया गया कि सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाने वाला पिडकनाशी 2,4 D (33.55%) जबकि सबसे कम इस्तेमाल किया जाने वाला पिडकनाशी एंडोसल्फान (1.97%) पाया गया। इनके अलावा प्रोफेनोफोस (3.94%), अट्रैजिन (3.28%), क्लोरपायरीफॉस (4.60%), डाईमेथोएट (4.23%), ग्लायफोसेट (2.96%), एवम फोरेट (2.63%) पाया गया।
जब किसानों से पिडकनाशी, कवकनाशी एवं खरपतवार नाशी के सुरक्षित इस्तेमाल के बारे में पूछा गया तो 59.04% किसानों ने इस विषय पर बात करने से ही इनकार कर दिया। सिर्फ एक किसान को पिडकनाशी के उपयोग के दौरान सुरक्षा के सभी तय मानकों की जानकारी थी। प्रो. आरती प्रसाद ने बताया कि इस शोध कार्य का मुख्य उद्देश्य उदयपुर एवम् आस पास के क्षेत्रों में सामान्यतः उपयोग किए जाने वाले पिडकनाशी, कवकनाशी एवम खरपतवार नाशी के बारे में जानकर, किसानों में पिडकनाशी के इस्तेमाल के तरीके एवं सम्भावित जोखिम की जानकारी एकत्रित करना था। शोध के दौरान प्राप्त हुए नतीजे बेहद गम्भीर एवं चौंकाने वाले हैं क्योंकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मई 2011 में प्रतिबंधित पिडकनाशी एंडोसल्फान उदयपुर में आज भी धड़ल्ले से बिक रहा है और बिना किसी सुरक्षा के इसका इस्तेमाल अनवरत जारी है।
लगभग 31% किसानों द्वारा पिडकनाशी का खुले में संग्रहण तथा 70.68% किसानों द्वारा पिडकनाशी के खाली पात्रों को खुले में फेंकना स्पष्ट रूप से दर्शा रहा है कि अधिकांश किसान आज भी पिडकनाशी के हानिकारक प्रभावों से अनभिज्ञ हैं और वो पिडकनाशी के इस्तेमाल के लिए तय सुरक्षा मानकों की अवहेलना कर अपनी एवं अपने परिवार की जिंदगी को दांव पर लगा रहे हैं।
किसानों से बात करने पर यह पता चला कि किसान पिडकनाशी को खाद-बीज की दुकान चलाने वाले दुकानदार को पूछकर उनके द्वारा सुझाए गए पिडकनाशी, खरपतवारनाशी, एवं कवकनाशी का उपयोग करते हैं तथा उनके द्वारा बतायी गयी मात्रा को पिडकनाशी के ढक्कन गिनकर प्रयुक्त कर लेते हैं। प्रो. प्रसाद ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के माध्यम से हमने किसानों को जागरूक करने की कोशिश की है लेकिन मानव संसाधन की कमी की वजह से हम सीमित लक्ष्य तक ही अपनी पहुंच सुनिश्चित कर सके। इसके लिए स्थानीय निकाय को साथ मे लेकर राज्य सरकार के स्तर से पहल होनी चाहिए वरना वो दिन दूर नही होगा जब राजस्थान में भी पंजाब की तरह कैंसर हर घर की बीमारी बन जाए। उक्त शोध का शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शोध पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है।
सर्वे से प्राप्त नतीजो में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले पिडकनाशी की मात्रा सबसे ज्यादा उगायी जाने वाली सब्जियों तथा फलों में आंकलन के लिए रूसा प्रोजेक्ट के तहत विकसित प्रयोगशाला में आंकलन हेतु खरीदे गए विशिष्ट उपकरणों की सहायता से आंकलन का कार्य जारी है।
सर्वेक्षण दल में डॉ नीलोफर सैयद, डॉ अशोक कुमार, संजय मीणा, भाविका, नरेश एवं गिरिश सम्मिलित थे।
फसलों में असुरक्षित मात्रा में केमिकल रसायनों के छिड़काव, किसानों द्वारा इनके डिस्पोजल में सुरक्षा मापकों की पालना में कोताही को लेकर द मूकनायक ने अतिरिक्त निदेशक, कृषि विस्तार, उदयपुर संभाग बीएल पाटीदार से बात की। अधिकारी ने कहा कि विभाग की टीमें समय समय पर कीटनाशकों और खाद विक्रेताओं के आउटलेट्स पर निरीक्षण करती है मगर एंडोसल्फान बेचने की जानकारी अभी तक हमारे टीम को नहीं मिली है। इसपर काफी पहले बैन लगा था और अगर इसके बावजूद दुकानदार इसे बेच रहे हैं तो विभाग सख्त कार्रवाई करेगा।
पाटीदार ने ये भी बताया कि विभाग समय-समय पर किसानों के लिए गोष्ठियों का आयोजन करता है जिसमें सरल शब्दों में उन्हें केमिकल्स युक्त कीटनाशक आदि का कम से कम उपयोग करने, जैविक और नीम बेस्ड दवाएं अपनाने की सलाह दी जाती है। "अब तो हम किसानों को समेकित कीट प्रबंध के तहत फसल बुवाई से लेकर कटाई तक ऐसे टिप्स बताते हैं जिसमें रसायनों का उपयोग किये बिना अच्छी फसल प्राप्त किया जा सकता है। सर्वे में बताए गए किसानों से संपर्क कर हम उन्हें जागरूक करने का निश्चित रूप से प्रयास करेंगे।"
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