द मूकनायक की पत्रकार पूनम मसीह से बात करते हुए किसान राजाराम
द मूकनायक की पत्रकार पूनम मसीह से बात करते हुए किसान राजाराम

ग्राउंड रिपोर्ट: सर्दी का असर नहीं, रबी की फसलों को नुकसान

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पिछले कुछ सालों से मौसम में काफी बदलाव हुए हैं, जिसके दुष्परिणाम हमें दिखने लगे हैं। इसमें एक नुकसान खेती को भी हो रहा है। ठंड का मौसम सामान्यतः अक्टूबर के महीने के आखिरी दिनों से शुरू हो जाता है, लेकिन इस साल अक्टूबर और नवंबर के महीने में भी दिन का तापमान 28 से 30 डिग्री से ज्यादा था, जिसके कारण रबी की फसल की बुआई अच्छे से नहीं हो पाई और जिन्होंने बुआई की भी है उनके खेतों में पौधे की बढ़वार सही से नहीं हो पाई है। इसकी पड़ताल करने के लिए द मूकनायक की टीम ने हरियाणा के कई खेतिहर इलाकों का दौरा किया।

तापमान में गिरावट नहीं आई तो होगा आधे का नुकसान

गुड़गांव के पास फर्रुखनगर तहसील में रहने वाले राजाराम एक दलित किसान है जो पिछले 40 साल से किसानी कर रहे हैं। उनके पास एक एकड़ जमीन है और 10 एकड़ की जमीन बटाई पर लेते हैं। उन्होंने सरसों और गेहूं बोया है। लेकिन तापमान को लेकर थोड़ा चिंतित है।

उन्होंने बताया कि गेहूं की बुआई नवंबर के पहले सप्ताह में की थी। उस समय दिन का तापमान सामान्य से ज्यादा था। जिसका असर बुआई के बाद गेहूं के पौधों में देखने को मिल रहा है। राजाराम एक पौधे के तोड़कर दिखाते हैं कि यह पीला पड़ गया है क्योंकि बुआई के बाद तापमान अधिक था। यहां तक की रात का तापमान भी अधिक था। जिसके कारण पौधे बढ़ भी नहीं रहे हैं और पीले भी पड़ रहे हैं।

जब द मूकनायक ने उनसे पूछा कि मीडिया रिपोर्टस के अनुसार इस साल मौसम ज्यादा सर्द नहीं होगा, अगर ऐसा होता तो इसका खेती पर कितना और कैसे नुकसान पड़ेगा! तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया— "आधा नुकसान हो जाएगा। प्रति एकड़ पैदावर में कमी आ जाएगी। कई बार तो ऐसा होता है कि पैदावर आधी ही होती है।"

उन्होंने बताया कि, गेहूं के दाने छोटे होते हैं। अच्छी पैदावर के लिए एक बार बारिश हो जाए तो बेहतर है। वह कहते है कि "गेहूं की पैदावर के लिए अच्छी ठंड की जरूरत है। अगर ठण्ड नहीं पड़ती है तो खेत में पानी देना पड़ता है। यहां की मिट्टी थोड़ी चिकनी है इसलिए यहां पानी भी ज्यादा लगता है। यहां भी छोटे किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। अगर आपके पास अपनी बोरिंग नहीं होती है तो उसे पैसे देकर पानी लगवाना पड़ता है। यह भी एक अतिरिक्त खर्च है।"

बगल में खड़ी राजाराम की मां कहती है "हमारा पूरा परिवार लंबे समय से खेती किसानी करता आया है। लेकिन अब मेरे पोते इसे छोड़ने की बात करते हैं। वह कहते हैं जब इसमें कोई मुनाफा नहीं हो रहा है तो इसे क्यों करें," वह बताती हैं कि, "पहले हमारे घर में मवेशी भी थे। लेकिन चारा धीरे-धीरे इतना महंगा हो गया है कि उनका खर्चा निकालना बहुत मुश्किल हो रहा था। इसलिए उन्हें बेच दिया। अब जो खेती करते हैं, उसमें भी ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है।"

किसान गजराज [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
किसान गजराज [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]

कीड़े लगने का डर

खेते के बीच अपना घर बनाकर रहे दलित किसान गजराज का हाल भी कुछ ऐसा ही है। उनके पास जमीन का कुछ हिस्सा अपना है बाकी बटाई पर लेकर खेती करते हैं। वह भी तापमान के लेकर चिंतित है। वह कहते है कि अगर ओस ज्यादा नहीं पड़ी तो सिर्फ यह नुकसान नहीं होगा कि दाने छोटे लगे, बल्कि कीटों के कारण भी फसल खराब हो जाती है। कई तरह के कीटे फसल में लग जाते हैं। छोटे किसानों को इससे सबसे ज्यादा नुकसान होता है। एक तो उनके पास खेत काम होते हैं और इस तरह के नुकसान जीवन को और कठिन बना देते हैं।

अपने खेतों में काम रहीं महिला कृषक शैलेजा ने बताया कि खेत में बीज छीटने से लेकर पानी लगाने तक वह सारे काम करती हैं। फिलहाल वह प्याज को निकाल रही थीं।

शैलेजा और उसके पति भी छोटे किसान है, जिनके पास जमीन का कुछ हिस्सा अपना है और कुछ लोगों से बटाई पर लेकर खेती करते हैं। वह खेत की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, "फिलहाल हमने प्याज, जौ, सरसों बोया है।" सरसों के पौधों की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं कि मौसम का असर इन पौधों के आकर को देखकर लगा सकती हैं। अगर मौसम और ठंडा होता तो सरसों का पौधा और ज्यादा खिला होता। लेकिन अभी ऐसा नहीं है। बाकी नफा नुकसान तो मार्च अप्रैल में समझ में आएगा।

द मूकनायक ने गेहूं अनुसंधान संस्थान के कृषि विशेषज्ञ वैज्ञानिक डॉ. अनुज कुमार से बात की। उनका कहना है कि गेहूं की बुआई के लिए आदर्श तापमान 19 से 23 डिग्री होता है। दूसरा दिन रात के तापमान से भी इस पर असर पड़ता है। दिन में अगर तापमान अगर थोड़ा गर्म है और रात में तापमान ठंडा रहता है। लगभग 10 डिग्री तक रहता है तो फसल के लिए सही है। दिन में धूप अगर तेज रहती भी तो यह खेती के लिए अच्छी होती है। क्योंकि दिन में ही पौधे में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। वह कहते हैं कि ज्यादा ठंड भी रबी की फसल के लिए अच्छी नहीं हैं। क्योंकि ज्यादा ठंड में ओस पड़ने के बाद दिन में धूप नहीं निकलती है, जिससे पौधों के खराब होने की संभावना ज्यादा रहती है। वह तापमान पर बात करते हुए कहते हैं कि फिलहाल तापमान में उतना बदलाव नहीं आया है कि यह कहा जाए कि फसल को नुकसान होगा। नवंबर में गेहूं को बोया गया है। मार्च-अप्रैल में जाकर कटाई होगी। अभी तो मौसम में कई तरह के बदलाव होंगे। अभी से इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि फसल कैसी होगी।

वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक अनुज कुमार अहीरवाल से द मूकनायक ने फोन पर बात कर इस तापमान और रबी की फसल पर पड़ने वाले असर के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि, "अभी पौधे के बढ़ने का समय है। अगर ठंड नहीं बढ़ेगी तो बाली अच्छी नहीं होती, जिसका सीधा असर फसल पर पड़ेगा। दिन का तापमान दिसंबर के महीने में उतना ठंडा नहीं है। रात का तापमान में भी वह गिरावट नहीं है।"

"साल 2016 में आठ दिसंबर की रात का तापमान 7.2 था और दिन का अधिकतम तापमान 25.0 डिग्री था। इस तापमान में साल दर साल वृद्धि हो रही है। इस साल आठ दिसम्बर का अधिकतम तापमान 27.6 और न्यूनतम 9.0 डिग्री रहा है, जिसका सीधा असर फसल और मॉर्केट पर पड़ता है," पिछले सालों के तापमानों का अंतर बताते हुए उन्होंने कहा।

वह बताते हैं कि, तापमान का यही हाल रहा तो पौधों को कीट लग जाते हैं। उनके खराब होने की संभावना ज्यादा रहती है। वहीं पिछले छह साल की मॉर्केट वैल्यू की बात करें तो 20 से 30 प्रतिशत का अंतर इस बार आ जाएगा।

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