21 अगस्त से 30 अगस्त 2022 तक धौलपुर जिला स्थित चंबल नदी के डिस्चार्ज पॉइंट से 2687 एमसीएम पानी आगे उत्तर प्रदेश में छोड़ा गया, इस पानी से कोटा बैराज जल संग्रहण क्षमता वाले 23 बांधों को भरा जा सकता था
जयपुर। मरू धरा के लिए देश-विदेशों में ख्यात राजस्थान में जलसंकट की समस्या बहुत आम है। पानी की कमी से जूझते लोगों को वर्षा जल सहेजने के लिए नाना प्रकार के उपाय करते देखा जा सकता है। पानी के टांकों से लेकर जौहर-बाबडि़यों का रखरखाव हो या फिर झील-बांधों का प्रबंधन। पुरातन काल से ही पानी की एक-एक बूंद को सहेजने एवं संरक्षित करने की परम्परा है, लेकिन एक सच ये भी कि इतने प्रयासों के बाद भी अच्छे मानसून के दौरान बड़ी मात्रा में वर्षा जल व्यर्थ बह जाता है। पूर्वी राजस्थान में 10 दिनों में चम्बल व इसकी सहायक नदियों से 2687 एमसीएम ( मिलियन क्यूबिक मीटर) पानी व्यर्थ बह गया। इस पानी से कोटा-बैराज जैसे जलसंग्रहण वाले 23 बांधों को लबालब भरा जा सकता था।
जल संसाधन विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार 21 अगस्त से 30 अगस्त 2022 तक धौलपुर जिला स्थित चंबल नदी के डिस्चार्ज पॉइंट से 2687 एमसीएम पानी आगे उत्तर प्रदेश में छोड़ा गया है। अगर इस पानी को सहेजा जाता तो चंबल नदी पर बने कोटा बैराज की स्टोरेज क्षमता (112.06 एमसीएम) वाले 23 से अधिक बांधों में संरक्षित हो सकता था, जिसे भविष्य में पेयजल, सिंचाई व उद्योगों के लिए उपयोग में लिया जा सकता था।
हर साल बहता है व्यर्थ पानी
जल संसाधन विभाग से प्राप्त आंकड़ों की बात करें तो चंबल नदी पर बने कोटा बैराज से वर्ष 2019 में 13896 एमसीएम, वर्ष 2020 में 305.72 एमसीएम, वर्ष 2021 में 305.00 एमसीएम व वर्ष 2022 में 16 जून से 26 जून तक 4286 एमसीएम पानी डिस्चार्ज किया गया। इसमें बीसलपुर बांध का डिस्चार्ज वाटर शामिल नहीं है।
अतिरिक्त जल निकासी से हर बार बिगड़ते हालात
राजस्थान का चित्तौड़, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली व धौलपुर जिला चम्बल के अपवाह क्षेत्र में आते है। यह नदी कोटा के बाद सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर से गुजरती हुई राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा बनाते हुए चलती है। जो कि 252 किलोमीटर की है। कोटा बैराज ओवरफ्लो के बाद चंबल नदी में जल निकासी से निचले इलाके विशेष कर कोटा, सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर जिलों में बाढ़ के हालात बनते हैं। दर्जनों गांव डूब क्षेत्र में होने से प्रशासन को मशक्कत करनी पड़ती है। इस वर्ष भी इन जिलों में चंबल में अतिरिक्त पानी निकासी से हालात बिगड़े हुए हैं।
इतनी क्षमता के यह बांध हैं प्रस्तावित
सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता चेतराम मीना बताते है कि कुन्नू नदी में 56.97 एमसीएम वाटर स्टोरेज क्षमता वाला कुन्नू बैराज प्रस्तावित है। कुल नदी में 50.49 एमसीएम वाटर स्टोरेज के लिए रामगढ़ बैराज, पार्वती नदी में 162.20 एमसीएम वाटर स्टोरेज के लिए महालपुर बैराज, कालीसिंध में 226.65 एमसीएम वाटर स्टोरेज के लिए नवनेरा बैराज प्रस्तावित है। इसीप्रकार सवाईमाधोपुर जिले में बनास में 143,09 एमसीएम वाटर स्टोरेज के लिए नीमोद-राठौड़ बैराज, बनास नदी में ही जिले में दूसरा 2098.51 एमसीएम वाटर स्टोरेज के लिए डूंगरी डेम व बूंदी जिले से निकलने वाली मेज नदी में 50.80 एमसीएम वाटर स्टोरेज के लिए मेज बैराज प्रस्तावित है। इन बांधों से पानी लिफ्ट कर पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) के तहत प्रस्तावित बांध, नदी, व नहरों से खेती, उद्योग व पेयजल के लिए उपलब्ध करवाया जाना है।
सरकारों की लापरवाही का नतीजा
राजस्थान में पर्यावरण संरक्षण व किसानों के लिए काम करने वाले भू-प्रेमी परिवार नामक संगठन से जुड़े मुकेश भू-प्रेमी बताते है कि राजस्थान का भूजल भंडारण धरातल में समा गया है। यहां पानी की किल्लत किसी से छिपी नहीं है। जल संकट की वजह से पर्यावरण संतुलन डगमगा गया है। खेती भी संकट में है। पूर्वी राजस्थान में पानी की किल्लत दूर करने के लिए राज्य सरकार ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना बनाई थी। केंद्र व राज्य सरकारों के बीच श्रेय लेने की होड़ में योजना समय पर पूर्ण नहीं हो पा रही है। नतीजतन इतनी बड़ी मात्रा में वर्षा जल व्यर्थ बह जाता है।
बारह मास बहती है चम्बल नदी
राजस्थान की एकमात्र बारह मास बहने वाली चम्बल नदी का उदगम मध्यप्रदेश की जनापाव की पहाडि़यों से है। जनापाव विध्यांचल पर्वत का हिस्सा है। यह नदी मध्यप्रदेश व राजस्थान में बहते हुए उत्तरप्रदेश में 965 किलोमीटर की दूरी तय करके यमुना नदी में मिल जाती है। चम्बल नदी का कुल अपवाह क्षेत्र 19,500 वर्ग किलोमीटर हैं। चम्बल यमुना नदी की मुख्य सहायक नदियों में से एक है।
यह है चंबल की सहायक नदियां
बनास नदी सहित, क्षिप्रा नदी, मेज, बामनी, सीप, काली सिंध, पार्वती, छोटी कालीसिंध, कुनो, ब्राह्मणी, परवन नदी, आलनिया, गुजॉली इत्यादि चम्बल की सहायक नदियां हैं। इन नदियों का पानी भी कोटा बैराज के ओवरफ्लो के साथ चंबल नदी में व्यर्थ बह जाता है।
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