लखनऊ। यूपी की राजधानी लखनऊ में पर्यावरण संरक्षण को लेकर तीन दिवसीय 'कॉन्क्लेव ऑन क्लाइमेट चेंजः इम्पैक्ट एण्ड चैलेंजस' कार्यक्रम का बुधवार को गोमती नगर स्थित रणवीर होटल में आगाज हुआ। इस दौरान पर्यावरण विज्ञानियों ने पर्यावरण की बिगड़ती सेहत को लेकर चिंता जाहिर की। वहीं संरक्षण के उपाए बताए। इस कार्यक्रम में तीन राज्यों के प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया।
दरअसल, जलवायु परिवर्तन वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इसके व्यापक प्रभाव से निपटने के लिए एक्शनएड एसोसिएशन, विज्ञान फाउंडेशन एवं बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में लखनऊ में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और चुनौतियों पर तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
एक्शन एड एसोसियेशन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर संदीप चाचरा ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले वंचित तबकों की आवाज को मजबूत करना और उन्हें जलवायु न्याय की वैश्विक चर्चा से जोड़ना है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के हितधारकों को एक साथ लाना था। वे जलवायु परिवर्तन के बढ़ते संकट और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली चुनौतियों पर गहन चर्चा कर सकें।
उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सबके ऊपर उतना ज्यादा नहीं पड़ता, लेकिन वंचित समुदाय में जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, जिसमे छोटे किसान, मजदूर, निर्माण मजदूर, मछुआरे भाई व पटरी दुकानदार इनको अधिक नुकसान होता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्य आपदा प्रबंधन के उपाध्यक्ष वाई डिमरी ने कहा कि यह तीन दिवसीय कार्यशाला बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण है, क्योंकि भविष्य में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और पड़ने वाला है। इसके लिए सबको अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। कार्यक्रम में बतौर अतिथि डॉ. हीरालाल ने कहा कि अगर हमें जलवायु परिवर्तन रोकना है तो जितना पानी हम वर्ष भर में खर्च करते हैं। उतना पानी हम सबको बचाना पड़ेगा। इसके साथ जितनी ऑक्सीजन हम 1 वर्ष में लेते हैं, उतनी ऑक्सीजन के लिए हमको पेड़ों को बचाना पड़ेगा।
कार्यक्रम में मौजूद शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर तिकन्दर सिंह पंवार ने कहा कि इलेक्ट्रिक कार को आज पर्यावरण के अनुकूल माना जा रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है। इलेक्ट्रिक कार बनाना सौ पेड़ों को काटने के बराबर है। इलेक्ट्रिक कार हो या कोई भी कार उसे बनाने और चलाने के लिए ईंधन को जलाकर ही ईंधन बनाया जा रहा है। बिजली बनाने के लिए भी पर्यावरण का दुरूपयोग किया जाता है। अतः यह भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। कार्यक्रम में एक्शनएड से खालिद चौधरी विज्ञान फाण्उडेशन से संदीप खरे, बाबा साहब विश्वविद्यालय से नंदकिशोर मोरे सहित तमाम लोगों ने अपनी बात रखी।
उक्त सम्मेलन में विभिन्न जिलों, कस्बों और गांवों से आए सरकारी अधिकारी, पर्यावरण विशेषज्ञ, शिक्षाविद्, नागरिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, विश्वविद्यालय के शोध छात्र-छात्राएँ और विभिन्न समुदायों के सदस्य शामिल हुए। कार्यक्रम में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों यथा- बाढ़, सूखा, लू और भूस्खलन पर गहन चर्चा हुई I
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