भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शुक्रवार को शिवपुरी जिले में स्थित माधव राष्ट्रीय उद्यान के बलारपुर रेंज में बने बाड़ों में दो बाघों को छोड़ा। बांधवगढ़ से एक मादा बाघ और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से एक नर बाघ यहां लाए गए थे। 27 साल बाद माधव राष्ट्रीय उद्यान में टाइगर चहलकदमी करेंगे। इधर, उद्यान क्षेत्र से सटे हुए गावों पर विस्थापन का संकट मंडरा रहा है। इन गांवों में निवासरत आदिवासी समुदाय के लोग चिंतित हैं।
माधव नेशनल पार्क के पास और सीमा के भीतर बसे आदिवासी समुदायों के गांव में सरकार ने जमीन के क्रय-विक्रय पर रोक लगा दी थी। वर्तमान में यहाँ के रहवासी स्वयं के स्वामित्व की जमीन को न बेच पा रहे हैं और न ही खरीद पा रहे हैं। आदिवासियों को सरकार से इस बात की आशा थी कि उन्हें उनकी जमीनों पर पूर्ण अधिकार मिलेगा। यहाँ के लोग खेती और पशुपालन के जरिए अपनी आजीविका को चला रहे हैं। लेकिन अब टाइगर के पार्क में आने के बाद उन्हें यहाँ से विस्थापित किया जा सकता है।
माधव नेशनल पार्क के चार गाँव को कुछ सालों पहले विस्थापित किया जा चुका है, लेकिन यहाँ से विस्थापित हुए लोग आज भी मुआवजे के लिए भटक रहे हैं। शासन-प्रशासन के खौफ में जी रहे एक आदिवासी युवक ने द मूकनायक से बातचीत करते हुए नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उनके परिवार को नेशनल पार्क के कारण गाँव छोड़ना पड़ा लेकिन इतने सालों बाद मुआवजे का एक पैसा तक नहीं मिला। युवक ने बताया कि उसके दादा का निधन हो चुका है। वह कलक्टर कार्यालय के सैकड़ों चक्कर काटते रहे, लेकिन मुआवजा के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिला। जब दादा का निधन हुआ तो हमने मुआवजे मिलने की उम्मीद भी छोड़ दी।
माधव नेशनल पार्क के पास बसे 127 गाँवों को हटाने की तैयारी की जा रही है। कुछ सालों पहले ही यहाँ की भूमि के क्रय-विक्रय पर रोक लगा दी गई थी। इन गांवों में निवासरत आदिवासी समुदाय के ही लोग हैं। पार्क में बाघों के आने के बाद इन गांवों को विस्थापित किया जा सकता है। पहले भी यहाँ के कुछ गाँवों को विस्थापित किया जा चुका है। लेकिन अब गांवों की संख्या बहुत ज्यादा है। हालांकि विस्थापन को लेकर गांव के आदिवासियों में रोष है। वह अपनी जमीन और घर छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए स्थानीय पत्रकार और आदिवासियों के अधिकारों लिए लंबे समय से काम कर रहे संजय बेचौन ने कहा कि पहले भी सरकार ने कुछ गांवों को विस्थापित किया था। लेकिन वह लोग आज भी मुआवजे के लिए भटक रहे हैं। उन्होंने कहा इस बार हम आदिवासियों के गांवों को किसी भी कीमत पर विस्थापित नहीं होने देंगे।
शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में 27 साल बाद एक बार फिर से टाइगर की दहाड़ सुनाई देगी। माधव नेशनल पार्क में 1990-91 तक यहां काफी संख्या में टाइगर हुआ करते थे, लेकिन अंतिम बार 1996 में यहां टाइगर देखा गया था। अब माधव नेशनल पार्क एक बार फिर से बाघों से आबाद होने जा रहा है। टाइगर प्रोजेक्ट के तहत यहां कुल पांच बाघों को बसाए जाने की योजना है। पहले चरण में यहां दो बाघों को शिफ्ट किया गया है।
माधव नेशनल पार्क में पहले चरण में आने वाले दोनों टाइगरों को फ्री रेंज में रखा गया है। यानी यहां टाइगरों को पिंजरे में कैद करके ना रखते हुए पार्क में उनके लिए बनाए गए बाड़े में खुले में रखा जाएगा। यहां इन टाइगरों को लेकर अध्ययन भी किया जाएगा कि वह यहां किस तरह से रहते हैं और खुद को कैसे इस नए वातावरण में अनुकूल करते हैं। हालांकि माधव नेशनल पार्क टाइगर सहित अन्य वन्य प्राणियों का प्राकृतिक घर है, लेकिन लगातार शिकार के चलते एक समय बाद यहां बाघों की संख्या खत्म हो गई थी।
माधव राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1958 में हुईं थी। यह मूलतः ग्वालियर महाराजा के लिए शाही शिकार का अभयारण्य था। इस नेशनल पार्क का कुल क्षेत्रफल 354.61 वर्ग किमी है। माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1918 में मनिहार नदी पर बांधों का निर्माण करते हुए साख्या सागर और माधव तालाब का निर्माण कराया था, जो आज अन्य झरनों और नालों के साथ पार्क के सबसे बड़े जल निकाय हैं। इतिहासकारों के मुताबिक शिवपुरी स्थित माधव नेशनल पार्क का नाम इतिहास के पन्नों में अकबर के शासनकाल से लेकर औपनिवेशिक काल तक दर्ज है। ऐसा कहा जाता है कि अकबर ने यहां हाथियों के पूरे झुंड को अपने अस्तबल तक पहुंचाया था। इतिहास में दर्ज इस लेख से साबित होता है कि शिवपुरी का जंगल हाथियों और शेरों का सदियों पुराना रहवास है। नेशनल हाईवे-3 पर स्थापित नेशनल पार्क की देखरेख वन विभाग वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत कर रहा है।
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