उत्तर भारत की भीषण गर्मी ने तोड़े 120 वर्षों के रिकार्ड, वसंत ऋतु की अवधि में भी हुई कमी: अध्ययन

जानकर बताते हैं कि शहरों में कंक्रीट और डामर से बनी सतह दिन में उष्मा को अवशोषित कर लेती है और शाम को तापमान गिरने पर इसे वायुमंडल में छोड़ देती है। यह उष्मा अंतरिक्ष में नहीं जाती, बल्कि इमारतों के बीच ही रहती है और रात के समय वातावरण को ठंडा होने से रोकती है।
दिन के समय कड़ी धूप और बढ़ा हुआ तापमान
दिन के समय कड़ी धूप और बढ़ा हुआ तापमान फोटो- द मूकनायक
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नई दिल्ली: ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के रूप में मौसम और जलवायु असमानताओं को हम हर रोज देख, सुन और महसूस कर रहे हैं. खासकर भारत में इन दिनों चमड़ी झुसला देने वाली कड़ी धूप और “लू” ने जलवायु परिवर्तन के खतरे के प्रति चिंता और बढ़ा दी है. उत्तर भारत में पिछले कुछ दिनों में लू से कई लोगों को जान गंवानी पड़ी और पूर्वोत्तर में बाढ़ व भूस्खलन ने लाखों लोगों को प्रभावित किया। इसके अलावा 2024 के शुरुआती पांच महीनों में मौसम की प्रतिकूल स्थिति रहने के मद्देनजर हर कोई सवाल कर रहा था कि यह किस ओर जा रहा है। जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि इस साल गर्मी के मौसम में तापमान चिंताजनक है, हालांकि आश्चर्यजनक नहीं है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान विभाग के विक्रम साराभाई चेयर के प्रोफेसर विमल मिश्रा ने बताया कि यह पिछले 120 वर्षों में उत्तर भारत के लिए सबसे भीषण गर्मी हो सकती है। इतने बड़े क्षेत्र में जो घनी आबादी वाला भी है, तापमान कभी इतना अधिक, 45-47 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं रहा है। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। मिश्रा के अनुसार, अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के समान तापमान कम से कम तीन या चार डिग्री तक अधिक है।

आइआइटी मुंबई में पृथ्वी प्रणाली के वैज्ञानिक रमु मुर्तुगुडे ने कहा कि यह जलबायु परिवर्तन, अल-नीनो और जनवरी 2022 में टोंगा के हुंगा टोंगा ज्वालामुखी विस्फोट से निकले जलवाष्य का संयुक्त प्रभाव है। अल-नीनी की स्थिति में समुद्र के सतह का तापमान बढ़ता है जिससे विश्व का मौसम प्रभावित होता है। पश्चिम एशिया बहुत तेजी से गर्म हो रहा है क्योंकि रेगिस्तान 'ग्लोबल वार्मिंग' के दौरान उष्मा को अवशोषित कर लेता है, गर्म वायुमंडल अधिक आद्रं होता है और जल वाष्प एक ग्रीनहाउस गैस है। 

इस उष्मा के कारण अरब सागर के ऊपर की हवाएं गर्मियों में और मानसून के दौरान भी उत्तर की ओर मुड़ जाती हैं। ये हवाएं अरथ सागर को बहुत तेजी से गर्म कर रही हैं और दिल्ली में अधिक आर्द्रता वाली हवाएं ला रही हैं, जिससे 'हीट इंडेक्स' बढ़ रहा है। हालांकि, दिल्ली में कंक्रीट के ढांचों ने स्थिति को और भयावह कर दिया है।

शहरों में कंक्रीट और डामर से बनी सतह दिन में उष्मा को अवशोषित कर लेती है और शाम को तापमान गिरने पर इसे वायुमंडल में मुक्त कर देती है। यह उष्मा अंतरिक्ष में नहीं जाती, बल्कि इमारतों के बीच ही रहती है और रात के समय वातावरण को ठंडा होने से बाधित करती है। 

मिश्रा ने कहा कि इस तरह की अत्यधिक उष्मा सार्वजनिक स्वास्थ्य, बिजली, पानी की आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डालती है। विभिन्न अध्ययनों ने लंबे समय तक रहने वाली लू की स्थिति को अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ने, समयपूर्व बच्चों का जन्म और गर्भवती महिलाओं में गर्भपात जैसे प्रतिकूल परिणामों से जोड़ा है।

भारत में वसंत ऋतु की अवधि कमी 

आइआइटी मुंबई में पृथ्वी प्रणाली के वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुडे ने कहा कि रेमल चक्रवात, (अल-नीनो प्रभाव के कारण) बंगाल की खाड़ी से आने वाली उष्मा के कारण स्थल पर लंबे समय तक बना रहा। चक्रवात के कारण बहुत अधिक वर्षा हुई। अमेरिका स्थित वैज्ञानिकों के स्वतंत्र समूह 'क्लाइमेट सेंट्रल' के विश्लेषण से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में वसंत ऋतु की अवधि कम हो रही है, और सर्दियां तेजी से गर्मियों जैसी स्थितियों में बदल रही हैं। देश के कई उत्तरी क्षेत्रों में वसंत ऋतु अब देखने को नहीं मिल रही है। जो गंभीर चिंता का विषय है. यह कृषि प्रधान देश के उस हिस्से को प्रभावित करता है जहां ऐसे मौसमों में वहां के किसान अपनी खेती कार्यों में व्यस्त होते हैं और पैदावार को लेकर मौसम पर ही निर्भर होते हैं.

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