भोपाल। मध्य प्रदेश में अफ्रीकन चीतों के बाद जेब्रा और जिराफ भी लाने की तैयारी है। वन विभाग ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। मध्य प्रदेश के जंगल, दुनिया के सबसे अच्छे जंगलों में शामिल हैं। यहां वन्यजीवों के लिए अनुकूल माहौल है। इसके चलते अफ्रीकन चीतों को कूनो नेशनल पार्क लाया जा चुका है। 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अफ्रीकन चीतों को बाड़े में छोड़ा था। देश में 70 साल बाद चीते भारत में दिख रहे है, लेकिन अब प्रदेश के जंगलों में जेब्रा और जिराफ भी चहल कदमी करेंगे।
दरअसल मध्यप्रदेश सरकार के वन मंत्री विजय शाह ने बताया कि प्रदेश में चीता प्रोजेक्ट के बाद जेब्रा और जिराफ को यहां लाकर बसाया जाएगा। इससे जंगल में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने बताया हमारे जंगल सभी वन्य प्रजातियों के लिए अनुकूल है जो देश के सबसे अच्छे जंगलों में शुमार है।
वन मंत्री ने कहा "मैंने अधिकारियों के साथ अफ्रीका की यात्रा की है। वहां के वन्य प्राणियों का रहन-सहन व व्यवहार देखकर आए हैं। अब जिराफ और जेब्रा भी भोपाल लाएं जाएंगे। वन विभाग इसकी स्टडी कर रहा है। हमारी पहचान दुनिया में टाइगर स्टेट के रूप में है। पुरी दुनिया में वन्य प्राणियों के संरक्षण व संवर्धन के लिए भारत में अनूठा और अद्वितीय कार्य हो रहा है। किसी दूसरे महाद्वीप से वन प्राणियों का पुनर्स्थापन हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कमाल है। यह अंतरराष्ट्रीय घटना है। हमारे जंगल भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं। इन्हे सुरक्षित रखना हम सब की जिम्मेदारी है।"
वन विहार आएंगे जिराफ, जेब्रा
मध्यप्रदेश में जिराफ और जेब्रा इसके सबसे पहले प्रदेश की राजधानी भोपाल लाए जायंगे, यहाँ स्तिथ वन विहार नेशनल पार्क और जू को चुना गया है। जिराफ और जेब्रा के रहवास और भोजन के संबंध में फिजिबिल्टी सर्वे कराया जा रहा है।
जिराफ को भोजन के लिए सबसे ज्यादा पेड़ की पत्तियों की जरूरत होती है। यह कटीली झाडि़यों को ज्यादा पसंद करता है, जो वन विहार और और आस-पास के जंगलों में है। अभी फिलहाल यह सर्वे किया जा रहा है कि वन विहार में एक साल तक इनके खाने-पीने की व्यवस्था हो सकेगी की नहीं।
सीजेडए के पास भेजा जाएगा प्रस्ताव
देश के कुछ राज्यों के जू में जिराफ हैं। वहां से वन विहार में लाना आसान होगा। इसके लिए दो राज्यों की सहमति भी नहीं लेनी होगी। सिर्फ सेंट्रल जू अथॉरिटी आफ इंडिया (सीजेडीए) की अनुमति से एक जू से दूसरे जू वन्यजीव लाए जा सकते हैं। दूसरे प्रस्ताव में भारत सरकार के जरिए दूसरे देशों से जिराफ और जेब्रा लाने का प्रयास किया जाएगा। वैसे भी देश में जेब्रा नहीं हैं, इन्हें भी दक्षिण अफ्रीकी देशों से ही लाया जाएगा।
जेब्रा का इतिहास-
प्राचीन घोड़ों के कुछ जीवाश्मों को छोड़कर, भारत में जंगली जेब्रा का कोई रिकॉर्ड इतिहास नहीं है। इसके अलावा, भारत में वन भूमि की कमी, जो हमेशा शिकारियों के खतरे में रहती है, इस तरह के प्रयोगों के लिए इसे बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं बनाती है। उन्हें मानव आबादी से दूर विशाल घास भूमि की आवश्यकता है।
भारत में ट्रांसपोर्टेशन के लिए इस्तेमाल होते थे जेब्रा-
ट्रांसपोर्टेशन के लिए इस देश में जेब्रा गाड़ी का इस्तेमाल किया जाता था। आजादी के पूर्व भारत में अंग्रेज ट्रांसपोर्टेशन के लिए जेब्रा गाड़ी का इस्तेमाल करते थे। 1930 में जेब्रा गाड़ी बंगाल के कोलकाता में चलती थी। इस गाड़ी का इस्तेमाल इसलिए किया जाता था ,क्योंकि जेब्रा घोड़े-बैल से ज्यादा ताकतवर होते थे और तेजी से काम करते थे। जेब्रा कार्ट के साथ सबसे बड़ी प्रॉब्लम ये थी कि इन्हें संभालना काफी मुश्किल होता था। इनका खाना-पीना आम घोड़े से अलग होता था।
जेब्रा का वजन 350 से 450 किलोग्राम के बीच होता है। जबकि इसकी ऊंचाई 5 फुट तक हो सकती है। जेबरा के सोने का अंदाज थोड़ा अलग होता है वो लेट कर सोने की बजाए खड़े खड़े ही सो लेते हैं। झुण्ड में चलते हुए नर सबसे आगे चलते हैं और उनके पीछे मादा चलती हैं। नर जेबरा झुण्ड को लीड करता है।
जिराफ का इतिहास-
जिराफ की अजीबोगरीब उपस्थिति के कारण, इन्हे विभिन्न प्राचीन और आधुनिक संस्कृतियों में विशेष मान्यता दी गई है, और अक्सर चित्रों, किताबों तथा कार्टूनों में चित्रित किया गया है। जिराफ जैसे पैलियोट्रैगस, शानसिथेरियम और समोथेरियम 14 मिलियन वर्ष पूर्व पूरे अफ्रीका और यूरेशिया में दिखाई देते थे। बोहलिनिया, जो 9-7 मिलियन वर्ष पूर्व दक्षिणपूर्वी यूरोप में रहता था, संभवतः जिराफ का प्रत्यक्ष पूर्वज था। बोहलिनिया आधुनिक जिराफ से काफी मिलता-जुलता था, जिसकी लंबी गर्दन, पैर, समान अस्थि-पंजर और दांत होते थे।
जलवायु परिवर्तन के कारण बोहलिनिया ने चीन और उत्तरी भारत में प्रवेश किया। वहां से, जीनस जिराफ विकसित हुआ और लगभग 7 मिलियन वर्ष पूर्व अफ्रीका में प्रवेश किया। आगे चलकर जलवायु परिवर्तन के कारण एशियाई जिराफों की संख्या में भारी कमी आई , जबकि अफ्रीकी जिराफ बच गए और कई नई प्रजातियों में विकीर्ण हो गए।
जिराफ 24 घंटे में केवल 5 से 30 मिनट सोते हैं। साथ ही जिराफ के धब्बे काफी हद तक मानव उंगलियों के निशान की तरह होते हैं। अर्थात किसी भी दो अलग-अलग जिराफों का पैटर्न कभी भी कहीं भी बिल्कुल एक जैसा नहीं होता है। इसके साथ ही ऐसे कई अन्य संदर्भ भी हैं, जिनके आधार पर हम कह सकते हैं की, जिराफ एक अद्वितीय जानवर है!
जिराफ लंबे खुरों वाला एक अफ्रीकी स्तनपायी होता है। जो जिराफ जीनस से संबंधित है। यह सबसे लंबा जीवित स्थलीय जानवर है और पृथ्वी पर सबसे बड़ा जुगाली करने वाला जानवर भी है।
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