जलाशयों के भंडारण स्तर में गिरावट, नहरों - नदियों का पानी सूख रहा, किसान चिंतित

देश में जलाशयों का मौजूदा भंडारण 10 वर्ष के औसत भंडारण 41.446 बीसीएम से भी कम है। इस प्रकार, मौजूदा भंडारण पिछले वर्ष के स्तर का 80 फीसद तथा इस अवधि के सामान्य भंडारण का 91 फीसद है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहने वाली आमी नदी किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन धान की रोपाई के इस समय यह सूखी पड़ी है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहने वाली आमी नदी किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन धान की रोपाई के इस समय यह सूखी पड़ी है। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक
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नई दिल्ली। देश में बीते कुछ सप्ताह से जारी भीषण गर्मी के बीच 150 प्रमुख जलाशयों के भंडारण स्तर में लगातार गिरावट आई है और यह कुल भंडारण क्षमता का 21 फीसद रह गया है। शुक्रवार को प्रकाशित रिपोर्ट में द मूकनायक ने बताया था कि कैसे उत्तर प्रदेश में नहरें, सहायक नदियां और तालाब सूखे पड़े हैं, जिससे किसानों में धान की रोपाई के लिए खेत की सिंचाई के लिए चिंता बढ़ रही है। 

केंद्रीय जल आयोग ने शुक्रवार को देश भर के 150 प्रमुख जलाशयों के ताजा भंडारण स्तर की स्थिति पर अपना साप्ताहिक बुलेटिन जारी किया। जलविद्युत परियोजनाओं और जलापूर्ति के लिए महत्वपूर्ण इन जलाशयों की संयुक्त भंडारण क्षमता 178.784 अरब घन मीटर (बीसीएम) है, जो देश में निर्मित कुल भंडारण क्षमता का लगभग 69.35 प्रतिशत है।

केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक गुरुवार तक इन जलाशयों में उपलब्ध जल भंडारण 37.662 बीसीएम है, जो उनकी कुल क्षमता का 21 फीसद है।

जलाशयों का मौजूदा भंडारण 10 वर्ष के औसत (सामान्य) भंडारण 41.446 बीसीएम से भी कम है। इस प्रकार, मौजूदा भंडारण पिछले वर्ष के स्तर का 80 फीसद तथा इस अवधि के सामान्य भंडारण का 91 फीसद है। उत्तरी और पूर्वी भारत के बड़े हिस्से लंबे समय से भीषण गर्मी की चपेट में हैं, जिससे राष्ट्रीय राजधानी सहित देश के कई क्षेत्रों में जल संकट पैदा हो गया है।

जलाशयों की भंडारण क्षमता के मद्देनजर देश के दक्षिणी क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में 42 जलाशय हैं, जिनकी कुल भंडारण क्षमता 53.334 बीसीएम है। मौजूदा समय में इन जलाशयों में उपलब्ध भंडारण 8.508 बीसीएम (क्षमता का 16 प्रतिशत) है, जो पिछले वर्ष के 21 फीसद और सामान्य भंडारण 20 फीसद से कम है।

जलाशयों के भंडारण स्तर में गिरावट और राज्यों में सूख रहीं नदियां और नहरें इस बात का साफ संकेतक हैं कि जलवायु परिवर्तन का कहर इस बार खरीफ की फसल — चावल, मक्का, बाजरा, रागी, दालें, सोयाबीन, मूंगफली — की खेती करने वाले किसानों की मुसीबत बढ़ने वाली है। 

ऐसी स्थिति में अगर धान की खेती की बात करें तो इसके लिए अच्छी बारिश या खेतों में लगातार पानी की जरूरत पड़ती है, लेकिन राज्यों में अभी किसान धान की नर्सरी तैयार करके बारिश या नहरों में पानी आने का इंतजार कर रहे हैं। 

भंडारण क्षमता खो रहे जलाशयों में घटते निरंतर जल से हर कोई चिंतित है। कृषि प्रधान देश होने के कारण सिंचाई के लिए प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर किसानों के लिए यह और भी चिंता का विषय है। हालांकि, इस दिशा में शासन स्तर पर क्या तैयारियां की जा रहीं हैं यह अभी भी ज्ञात नहीं है। 

जलस्तर गिरने से किसानों में खलबली

उत्तर प्रदेश में बरेली जिला प्रशासन की ओर से विकास भवन में बुधवार को आयोजित किसान दिवस पर बहेड़ी तहसील के किसानों ने कहा कि वे भूजल स्तर गिरने की कई बार शिकायत कर चुके हैं। किसानों ने कहा कि तहसील क्षेत्र में "साठा धान" की खेती किए जाने की वजह से लगातार जलस्तर गिरता जा रहा है।

लेकिन उनकी समस्या का अबतक कोई निदान नहीं हो सका। शासन और प्रशासन की ओर से इसकी रोकथाम के भी अबतक कोई उपाय नहीं किए गए, जिससे कृषकों की परेशानी लगातार बढ़ती जा रही है। हालांकि, बैठक में मौजूद कृषि अधिकारियों ने बताया कि इस संबंध में शासन को अवगत कराया जा चुका है। उन्होंने उम्मीद जताई कि शासन की ओर से इस संबंध में जल्द कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहने वाली आमी नदी किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन धान की रोपाई के इस समय यह सूखी पड़ी है।
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