राजस्थान: कोटा शहर का कचड़ा बिगाड़ रहा चंबल की सेहत, जलीय जीवों पर संकट

घड़ियाल, मगरमच्छ व अन्य जलीय जीवों का अस्तित्व खतरे में, पर्यावरणविद की जनहित याचिका पर प्रमुख सचिव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा जिला कलेक्टर कोटा सहित आधा दर्जन अधिकारियों को एनजीटी का नोटिस.
चंबल नदी
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जयपुर। राजस्थान के कोटा शहर के सीवरेज के पानी के साथ ही औद्योगिक वेस्ट से चंबल नदी की सेहत बिगड़ रही है. प्रतिदिन शहर का 312 एमएलडी गंदा पानी चंबल नदी में गिर रहा है। इससे चंबल के पानी की गुणवत्ता अत्यधिक खराब हो रही है। नदी के स्वच्छ पानी में दूषित जल मिश्रण से घड़ियाल, क्रोकोडाइल एवं डॉल्फिन सहित अन्य जलीय जीवों का जीवन संकट में आने की आशंका जताई जा रही है। चंबल से अनेक जिलों में पेयजल आपूर्ति भी हो रही है जिससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।

जिला कलेक्टर कोटा सहित 6 को नोटिस

चंबल नदी में जा रहे कोटा शहर के गंदे पानी के सैकड़ों नालों को रोकने के लिए पीपल फॉर एनिमल्स के प्रदेश प्रभारी एवं पर्यावरणविद् बाबूलाल जाजू ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल सेंट्रल जोनल बेंच भोपाल के समक्ष जनहित याचिका दायर की थी। अधिवक्ता दीक्षा चतुर्वेदी के मार्फत दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायाधिपति शिव कुमार सिंह व एक्सपर्ट मेंबर ए सेंथिल की बेंच ने प्रमुख सचिव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, जिला कलेक्टर कोटा, अधीक्षण अभियंता जल संसाधन विभाग कोटा, सदस्य सचिव राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल, सचिव नगर विकास न्यास कोटा एवं आयुक्त नगर निगम कोटा को नोटिस जारी कर 19 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से एनजीटी न्यायालय भोपाल के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है।

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के रहने वाले पर्यावरणविद बाबूलाल जाजू ने याचिका में बताया कि कोटा शहर का 312 एमएलडी गंदा सीवरेज के पानी के साथ ही औद्योगिक वेस्ट प्रतिदिन चंबल नदी में जा रहा है जिससे चंबल के पानी की गुणवत्ता अत्यधिक खराब हो रही है जो घड़ियाल, क्रोकोडाइल एवं डॉल्फिन के लिए खतरनाक है। साथ ही चंबल से अनेक जिलों में पेयजल आपूर्ति भी हो रही है जिससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।

जाजू ने बताया कि पूर्व में उनकी याचिका संख्या 384/2014 पर शहर में ईटीपी ट्रीटमेंट प्लांट लगाया था जिसकी क्षमता मात्र 50 एमएलडी ही है। उल्लेखनीय है की चंबल देश की प्रमुख नदी होकर एकमात्र घोषित घड़ियाल सेंचुरी है। जिस पर स्थानीय प्रशासन द्वारा ध्यान नहीं दिया जाने से खतरा मंडरा रहा है।

याचिका में बताया गया कि नगर निगम कोटा और शहरी विकास ट्रस्ट कोटा, राजस्थान द्वारा अनुपचारित अपशिष्टों का निर्वहन करके जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 और पर्यावरण नियमों का उलंघन है। चंबल नदी में अपशिष्ट जल, सीवरेज, औद्योगिक अपशिष्ट और घरेलू अपशिष्ट जल नदी के पानी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जो गंभीर रूप से लुप्तप्राय घड़ियाल, मगरमच्छ और गंगा नदी में डॉल्फिन के आवास के लिए खतरनाक है, ये दोनों चंबल नदी के अभिन्न अंग हैं।

चंबल नदी के किनारे अनियंत्रित रेत खनन के कारण पर्यावरणीय गिरावट हुई है, जिसमें नदी के किनारे का क्षय और प्राकृतिक प्रवाह बाधित हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप कटाव और निवास स्थान का नुकसान हुआ है। इसके साथ ही नदी स्थानीय मछुआरों द्वारा कानूनी रूप से स्वीकृत और अवैध मछली पकड़ने की गतिविधियों से जूझती है। इस कारण चंबल नदी में जलीय जैव विविधता में गिरावट आ रही है।

चंबल नदी की वर्तमान स्थिति यह है कि शहर में 312 एमएलडी अपशिष्ट जल निकलता है जबकि मौजूदा सीवरेज उपचार संयंत्रों के माध्यम से उपचार की क्षमता केवल 50 एमएलडी है। अगले दशक में यह असमानता और भी बदतर होने की आशंका है। भविष्य में पर्याप्त सीवर नेटवर्क की कमी के कारण चुनौतियां पैदा होंगी। अधिकांश अपशिष्ट जल छोटी नालियों के माध्यम से बह जाता है, जिससे बड़ी खुली नालियां बन जाती हैं, जो बरसात के मौसम में बाढ़ की समस्या पैदा करती हैं और अंतत: चंबल नदी में प्रवाहित होती हैं। इसके अलावा, कोटा में मौजूदा अपशिष्ट जल उपचार सुविधाएं अपर्याप्त है। केवल 2 सीवरेज उपचार संयंत्र हैं। नतीजतन 262 एमएलडी अपशिष्ट जल कई खुले नालों के माध्यम से सीधे चंबल नदी में प्रवाहित किया जाता है, जो लगातार प्रदूषण में योगदान देता है।

याचिका में आगे कहा गया कि, विश्वविद्यालय सिविल इंजीनियरिंग विभाग राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय कोटा द्वारा 21 से 25 जुलाई को पत्रिका इंटरनेशनल रिसर्च जनरल ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंस वॉल्यूम में शोध प्रकाशन कर बताया गया था कि राजस्थान के कोटा शहर के चारों ओर छोटे और मध्यम उद्यमों के अलावा विभिन्न औद्योगिक इकाइयां चल रही हैं, जिनके संचालन और रखरखाव के लिए बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है। शैक्षणिक संस्थान के केंद्र कोटा में छात्रों की बढ़ती संख्या के कारण उपचार संयंत्र की सुविधाओं की आवश्यकता है, जिसे स्थानीय प्रशासन द्वारा ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाता है और इस मामले में राज्य प्रशासन द्वारा तत्काल उपचारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है।

शोध पत्र में कहा गया था कि वर्तमान में चंबल नदी सार्वजनिक अतिक्रमण, अनुपचारित नगरपालिका के साथ-साथ औद्योगिक कचरे के निपटान, नगरपालिका के ठोस कचरे के सीधे डंपिंग और अन्य अपशिष्ट जल के अनधिकृत मोड़ के भारी दबाव से गुजर रही है। इसलिए इस अध्ययन का उद्देश्य कोटा शहर की मौजूदा सीवरेज प्रणाली का विश्लेषण करने के साथ-साथ नदी के पानी की गुणवत्ता पर अपशिष्ट जल के सीधे निर्वहन के प्रभाव का अध्ययन करना और इसके लिए उठाए जाने वाले आवश्यक कदमों का सुझाव देना है। नदी को प्रदूषित होने से बचाना है।

जाजू ने याचिका में बताया कि शहर की अधिकांश छोटी नालियां अंतत: मुख्य नाले में गिरती हैं। साजीहेड़ा नाला शहर के विभिन्न नालों के माध्यम से बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल ले जाता है और यह लगभग 5 किमी लंबा है और लगभग 55 एमएलडी अपशिष्ट जल इस नाले के माध्यम से सीधे चंबल नदी में छोड़ा जाता है।

शहर में सीवर लाइनों का नेटवर्क अपर्याप्त

याचिकाकर्ता ने एनजीटी न्यायालय को बताया कि विभिन्न स्थानों से नालों से पानी के नमूने एकत्र किए गए और परिणामों का विश्लेषण करने के बाद यह पाया गया कि डीओ, बीओडी, सीओडी और टीडीएस अनुमेय सीमा से बहुत अधिक है और यदि ऐसे अपशिष्ट जल को सीधे पानी में बहा दिया जाता है बिना किसी उपचार के, यह पानी की पोर्टेबल गुणवत्ता को बर्बाद कर देगा, जो जलीय जीवन के जीवित रहने के लिए हानिकारक है।

याचिका की सुनवाई के बाद न्यायालय ने जिम्मेदार विभागों के अधिकारियों को चार सप्ताह संयुक्त समिति का गठन प्रभावित क्षेत्र का दौरा करे। छह सप्ताह के भीतर तथ्यात्मक और की गई कार्रवाई की रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करे। संबंधित विभागों के प्रतिनिधि इस मामले में 19 फरवरी 2024 को सुबह 10:30 बजे इस ट्रिब्यूनल के समक्ष व्यक्तिगत रूप से या कानूनी व्यवसायी के माध्यम से उपस्थित होने का निर्देश दिया गया।

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