जयपुर। राजस्थान में एक तरफ पर्यावरण संरक्षण का हवाला देकर सोलर बिजली उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ सोलर प्लांट लगाने के लिए सैकड़ों खेजड़ियों को उजाड़ कर पर्यावरण को क्षति पहुंचाई जा रही है। सरकार के दोहरे रवैये से पर्यावरण प्रेमी आहत है। निरंतर शिकायत के बावजूद राज्य वृक्ष खेजड़ी का अवैध कटान नहीं रुकने से नाराज पर्यावरण प्रेमियों ने मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा से कार्रवाई की गुहार लगाई है।
जीव रक्षा संस्था बीकानरे के जिलाध्यक्ष मोखारमा विश्नोई ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंप कर बिजली उत्पादन के लिए किसानों से अनुबंध कर कृषि खातेदारी भूमियों पर स्थापित सोलर प्लांटों की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। पर्यावरण प्रेमी जाट ने बीकानरे जिले के वन विभाग, जल संसाधान व जलदाय विभाग पर मिलीभगत के आरोप भी लगाए हैं।
जीव रक्षा संस्था बीकानेर के बैनर तले सीएम को सौंपे ज्ञापन में आरोप लगाया है कि सरकारी मशीनरी की मिलीभगत से बीकानेर जिले में राजस्व रिकार्ड में हेरा फेरी की, वन भूमियों पर अवैध कब्जे किए जा रहे हैं। इससे वन्य जीवों पर भी संकट आ गया है। खनन माफिया जिप्सम जैसी महत्वपूर्ण संपदा का अवैध खनन कर सरकार के करोड़ों रुपए का राजस्व का चूना लगा रहे हैं। अवैध खनन व खेजड़ियों के अवैध कटान से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। निरंतर हो रहे अवैध कटान पर कार्रवाई नहीं होने से संबंधित अधिकारियों की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में हैं। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि आखिर सरकारी कार्मिकों की क्या मजबूरी है कि सब कुछ जानते हुए भी राज्य वृक्ष खेजड़ी का अवैध कटान नहीं रुकवा पा रहे हैं।
सोलर प्लांट लगाने के बहाने से खेजड़ियों की अवैध कटाई के विरोध में गत वर्ष अगस्त महीने में अखिल भारतीय विश्नोई महासभा प्रदेशाध्यक्ष देवेन्द्र बूडिया विश्नोई ने बीकानेर जिला कलक्टर को पत्र लिख कर वन माफियाओं पर कार्रवाई की मांग की थी। देवेन्द्र बूडिया ने पत्र में बताया था कि जिले के राजस्व रोही जयमलसर जहां सोलर कंपनियां पूर्व में हजारों वृक्ष खेजड़ियों की कटाई करवा चुकी है। माननीय उच्च न्यायालय जोधपुर के आदेशों के बवजूद भी बीकानेर जिला क्षेत्र में वृक्षों की अंधाधुंध कटाई सोलर कंपिनयों द्वारा करवा कर खेजड़ियों की हरी लकड़ियों को पिकअप गाड़ियों, ट्रैक्टर ट्रॉली और ऊंट गाढ़ों से परिवहन कर वन माफियाओं को बेची जा रही है।
कलक्टर बीकानेर को सम्बोधित पत्र में लिखा गया था कि आपके राजस्व विभाग के पटवारी, गिरदावर, तहसीलदार को सोलर कंपनियों द्वारा पेड़ों की कटाई की जानकारी होने के बावजूद पर्यावरण प्रेमी और अन्य वन्य जीव प्रेमियों की शिकायत के बाद भी कानूनी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। ऐसे में आप खुद मौका निरीक्षण कर कानूनी कार्रवाई करवाने की कृपा करें। इसके बावजूद कार्रवाई का नहीं होना अधिकारियों की मंशा पर सवाल खड़ा करता है।
राजस्थान के बांशिन्दे पशु-पक्षी और पर्यावरण के प्रति अपने स्नेह के लिए भारत में ही नहीं समूचे विश्व में विख्यात हैं। तीन सदियों पहले जब पर्यावरण संरक्षण को लेकर कोई जागरूकता कार्यक्रम नहीं होते थे, तब उस समय जोधपुर के एक गांव में 363 ग्रामीणों ने खेजड़ी के वृक्षों को कटने से बचाने के लिए अपनी जानें कुर्बान कर दी थीं। पर्यावरण संरक्षण के एक गौरवशाली इतिहास वाला यह प्रदेश अब बदल गया है।
वर्ष 2022 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े पर्यावरण से जुड़े अपराधों की विभिन्न श्रेणियों में राजस्थान की स्थिति दूसरे राज्यों की तुलना में चिंताजनक रही है। एनसीआरबी डेटा के मुताबिक राजस्थान पर्यावरणीय उल्लंघनों में आगे है। ध्वनि, वायु और जल प्रदूषण के साथ-साथ वन अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम जैसे प्रमुख अधिनियमों के उल्लंघन सहित कई श्रेणियों में राजस्थान की गिनती 28 राज्यों में टॉप 5 जगहों पर पाई गई है जो अच्छा संकेत नहीं है। 2022 में देश भर में दर्ज किए गए 52,768 पर्यावरण-संबंधी अपराधों में से राजस्थान में 9529 मामले दर्ज किए गए, जो स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करता है।
खेजड़ली नरसंहार सितंबर 1730 में राजस्थान के जोधपुर गांव में हुआ था जब बिश्नोई समुदाय के 363 लोग खेजड़ी पेड़ों के एक बाग की रक्षा करने की कोशिश में मारे गए। जोधपुर के तत्कालीन महाराजा अभय सिंह ने एक नया महल बनाने की योजना बनाई जिसके लिए लकडिय़ों की आवश्यकता पड़ी। इसके लिए खेजड़ी के पेड़ों को काटने के लिए गाँव में सैनिकों को भेजा गया जिसके परिणाम भयावह साबित हुए। गांव में अमृता देवी बिश्नोई नामक महिला के नेतृत्व में, ग्रामीणों ने अपने पेड़ों की कटाई को रोकने का संकल्प उठाया। अमृता ने कहा कि खेजड़ी के पेड़ बिश्नोई लोगों के लिए पवित्र हैं और उनका विश्वास उन्हें पेड़ों को काटने की अनुमति देने से रोकता था। अमृता देवी ने निडरता से सैनिकों का सामना किया और कुल्हाड़ी से बचाने के लिए एक पेड़ को आलिंगनबद्ध किया। सैनिकों ने उसे हटाने का प्रयास किया लेकिन वो नहीं मानी। उनकी तीन बेटियां भी मां की देखादेखी पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गई और सैनिकों ने उन्हें काट डाला। प्रतिरोध के इस कृत्य ने गांव के अन्य लोगों को प्रेरित किया, जिसमें इस ह्रदयविदारक घटना में 363 लोगों ने खेजड़ी पेड़ों की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। इसके बाद महाराजा अभय सिंह ने द्रवित होकर अंतत: सैनिकों को वापस बुला लिया। अमृता देवी की विरासत आज भी कायम है, जो विविध समुदायों को प्रेरणा देती है। उनका गांव, जिसे अब 'खेजड़ली' के नाम से जाना जाता है, उनके बलिदान की याद दिलाता है, जहां बिश्नोई समुदाय हर साल सितंबर में उनकी और अन्य प्रदर्शनकारियों की याद में इकट्ठा होता है।
बीकानेर में पेड़ों की अवैध कटाई, अवैध जिप्सम खनन व वनभूमि पर अवैध कब्जों को लेकर जीव रक्षा संस्था बीकानेर के जिलाध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को सौंपे ज्ञापन में वन विभग सहित अन्य विभागों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। ज्ञापन में पर्यावरण प्रेमियों ने आरोप लगाया कि बीकानेर संभाग में करीब 245 वर्षों से ग्राम वन सुरक्षा एवं प्रबंध समितियां मनमाने तरीके से काम कर रही है। इन समितियों में वन अधिकारियों ने अपने परिचतों को सदस्य बनाया है। फर्जीवाड़ा कर वन विकास के नाम पर फर्जी राशि उठा रहे हैं। समितियों द्वारा वन क्षेत्रों में क्या विकास किया गया, कितने पेड़ लगाए गए। इन सब की उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई है। आरोप है कि राजस्थान वन विभाग के पास पुलिस की भांति वन विभाग की एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्रवाई करने व कोर्ट में चालान करने के पूर्ण अधिकार है। इसके बावजूद अवैध कटान पर कार्रवाई नहीं हो रही है।
प्रत्येक वन मंडल में वन भूमि का नक्शा(एक्वायर लैण्ड का नक्शा) व राजस्व रिकार्ड का मिलान कर वन भूमि को चिह्नित करने की भी मांग की। आरोप है कि अधिकतत वन क्षेत्रों पर अवैध कब्जे कर रखे हैं, जिसमें कई जगह फसल काटी जा रही है। वन भूमियों में आवासीय कॉलोनी भी काटी गई है।
वन क्षेत्रों में जिप्सम का अवैध खनन हो रहा है। यह सिलसिला गत पांच वर्षों से निरंतर चल रहा है। मिलीभगत से अवैध खनन कर माफिया लाखों टन जिप्सम ले जा चुके हैं। जिप्सम खनन के दौरान हरे पेड़ भी काटे जा रहे हैं। जिससे सरकार को अरबों रुपए की राजस्व हानि हो रही है।
इंदिरा गांधी मुख्य नहर की 507 आर.डी. हेड पर बना पानी का स्केप (पानी की झील) जिसका एरिया 14 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें चालीस वर्षों से घने पेड़ लगा कर सघन वन तैयार किया गया था। इसमें शीशम, देशी बबूल, टोर्टलिस, बैरी, खेजड़ी, रोहिड़ा आदि के लाखों की तादाद में बड़े-बड़े पेड़ लगे थे। इन पेड़ों के साथ ही यहां हिरण, खरगोश, नीलगाय, गीदड़, मोर, चिडिय़ा, कौए आदि वन्य व जलीय जीव स्वछंद विचरण करते थे, लेकिन इस क्षेत्र में जलसंसाधन, वन विभाग व जलदाय विभाग ने मिलकर मनमानी कर एक समिति का गठन कर फर्जी दस्तावेज तैयार कर बिना किसी कानून कायदे के पेड़ों को कटवा दिया। पेड़ों की कटाई के बाद अन्य वन्य जीवों को शिकार कर खत्म कर दिया गया।
जिले के सोलर कंपनियों, वन माफियाओं, पेशेवर शिकारियों व खनन माफियाओं के साथ संबंधित राज्यकर्मियों की स्थायी अपराधिक, गठजोड़ के कारण सोलर कंपनियों की जमीनों, खेतों, वृक्षारोपित वन भूमियों में बार-बार हो रही खेजड़ियों की अंधाधुंध अवैध कटाई, अवैध शिकार, वन भूमियों में अवैध कब्जे, राजस्व विभाग के कर रिकार्ड में हेराफेरी अन्यों को नियम विरुद्ध वन भूमियों का आवंटन तथा रेंजरों की मिलीभगत से वन भूमि में अवैध जिप्सम खनन को अविलंब रुकवा कर उच्च स्तरीय जांच की मांग भी की गई है।
ग्रामीणों ने बताया कि सोलर कंपनियों द्वारा किसानों से कृषि भूमि का अनुबंध कर सोलर प्लांट स्थापित करने की आड़ में हरे खेजड़ी के पेड़ों की अवैध कटाई को लेकर जून 2022 से जुलाई 2023 तक अकेले नाल पुलिस थाने में अलग-अलग सोलर कंपनियों के खिलाफ 6 मुकदमे दर्ज हुए हैं। मुकदमा नंबर 87 एक जून 2022 को, मुकदमा नंबर 187, 6 सिबंदर 2022 को, मुकदमा नंबर 189, 9 दिसंबर 2022 को, मुकदमा नंबर 190, 15 दिसंबर 2022 को, मुकदमा नंबर 130, 11 जुलाई 2023 को व मुकदमा नंबर 148, 28 जुलाई 2023 को दर्ज किया गया था। इन मुकदमों में मुस्तगीस किसान व राजस्व कर्मी है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.