जयपुर। 5 जी मोबाइल इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने की आड़ में राजस्थान के नगरीय विकास विभाग ने 5 जी को लेकर नई गाइडलाइन जारी की है। नई गाइडलाइन के मुताबिक आमजन से मोबाइल टावर पर आपत्ति का अधिकार छीन लिया गया है। यदि मोबाइल ऑपरेटर्स आपके पड़ोस के निजी भवन या प्लॉट में मोबाइल टावर लगाते हैं तो आप आपत्ति या विरोध नहीं कर पाएंगे। यहां ऑथोरिटी से अनुमति लेने की बंदिश हटा दी गई है। अब मोबाइल ऑपरेटर्स अथॉरिटी को केवल सूचना देकर टावर लगा सकते हैं। सरकार की नई गाइड को लेकर लोग दबी जुबान से विरोध भी कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। सरकार की इस नई गाइडलाइन को स्वास्थ्य से भी जोड़ कर भी देखा जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यदि मोबाइल ऑपरेटर्स आपके पड़ोस में मकान व प्लॉट पर मोबाइल टावर लगते हैं तो आप आपत्ति नहीं कर सकते। 5 जी मोबाइल तकनीकी और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने नई गाइडलाइन जारी करते हुए आमजन से आपत्ति का अधिकार छीन लिया है। निजी भवन व इमारतों पर मोबाइल टावर लगाने से पूर्व जनता से सुझाव व आपत्ति लेने की बंदिश भी अब खत्म कर दी गई है। इतना ही नहीं मोबाइल ऑपरेटर्स को सम्बन्धित अथॉरिटी से भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। मोबाइल टावर लगाने से पूर्व केवल सूचना देना होगा। नगरीय विकास विभाग ने शुक्रवार को इसके आदेश जारी कर दिए हैं।
उपभोक्ता मामलों के जानकार एवं एडवोकेट हरिप्रसाद योगी कहते हैं कि निजी भवन या भूखण्ड में मोबाइल टावर लगाने से पहले मोबाइल ऑपरेटर्स को सम्बन्धित अथॉरिटी में आवेदन करना होता था। आवेदन के बाद अथॉरिटी सार्वजनिक सूचना प्रकाशित कर 15 दिन में आमजन से आपत्ति के साथ सुझाव मांगती है। आमजन या पड़ोसियों के आपत्ति दर्ज कराने या निर्धारित मापदंड पूरे नहीं करने पर ऑपरेटर्स को मोबाइल टावर लगाने की अनुमति नहीं दी जाती। अब मोबाइल ऑपरेटर्स को इस प्रक्रिया से नहीं गुजरना होगा। निजी समाप्ति मालिक से एग्रीमेंट के बाद अथॉरिटी को सूचना देकर ही मोबाइल टावर लगाया जा सकेगा। यदि कोई पड़ोसी इस पर आपत्ति करेगा तो कोई सुनवाई नहीं होगी।
सरकार की नई गाइडलाइन पर आगे बात करते हुए एडवोकेट योगी द मूकनायक से कहते हैं कि, मोबाईल से एवं मोबाईल टावर से मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने वाली घातक रेडिशन निकलती है। इससे मोबाईल कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं को मोबाईल के उपयोग करने के लिये जो दिशानिर्देश अपने मेन्युअल में दिये जाते हैं, उसमे स्पष्ट लिखा होता है कि मोबाईल को अपने सीने के सामने जेब में नहीं रखे। कानों से भी दूरी बना कर बात करें। दूसरे तरीके से भी देखें तो जब टेबल पर रखा हुआ मोबाईल वाइब्रेट होते है तो पूरा टेबल ही हिल जाता है ऐसे में मानव शरीर में भी कंपन होता है। जब मोबाइल से इतना नुकसान होता है तो मोबाईल टावरों से कितना ज्यादा नुकसान होता है। यह कैसे नकारा जा सकता है। इसलिये अगर किसी आबादी या कॉलोनी में मोबाईल टावर लगाया जाता है तो वहां के स्थानीय नागरिकों से आपत्ति लिया जाना जरूरी हो जाता है। यह प्रावधान पहले से है। जनता के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए पड़ोसियों से आपत्ति का अधिकार नहीं छीना जा सकता। सरकार ने 5 जी तकनीक की आड़ में स्थानीय नागरिकों को भरोसा एवं उनका सुझाव या आपत्ति नहीं लेकर मोबाईल कंपनियों को मनमानी करने का एकाधिकार दे दिया गया है। सरकार का यह निर्णय बेहद ही गलत है। इस निर्णय पर सरकार को पुनः विचार करना चाहिए।
मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन से मानव जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर एक्सपर्ट की अलग-अलग राय है। विशेषज्ञ बताते हैं कि विकिरण दो प्रकार के होते हैं - एक आयनकारी विकिरण है जो एक्स-रे के लिए है और दूसरा गैर-आयनीकरण विकिरण है जो गैजेट विकिरण जैसे मोबाइल फोन विकिरण, लैपटॉप विकिरण, डेस्कटॉप विकिरण, टैबलेट विकिरण, स्मार्ट टीवी विकिरण, वाई-फाई राउटर, नेटवर्क बूस्टर और हमारे घरों और कार्यस्थलों के आसपास मोबाइल टावरों से हानिकारक विकिरण उत्सर्जित होता है। आयोनाइजिंग रेडिएशन हाई-फ्रीक्वेंसी रेडिएशन है जिसे कैंसर पैदा करने के लिए जाना जाता है।
दूसरी ओर, कम आवृत्ति वाले गैर-आयनीकरण विकिरण भी हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं। यह कैंसर और ब्रेन ट्यूमर जैसे स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का कारण भी बन सकता है, जब मानव शरीर लंबे समय तक इसके संपर्क में रहता है।
डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा है कि इन विकिरणों का मानव शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और लंबे समय तक इनके संपर्क में रहने से कैंसर का कारण भी बन सकता है, उन्हें धुएं और निकास की श्रेणी में रखा जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विद्युत चुम्बकीय विकिरण और कैंसर के बीच संबंध के इस ठोस प्रमाण के अलावा, कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं जिन्होंने मोबाइल टावर विकिरण और मनुष्यों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के बीच संबंध की भी पुष्टि की है। WHO ने इन रेडिएशन को 2B कैटेगरी में रखा है जो कैंसर होने के कारणों को वर्गीकृत करता है।
भारत वह देश है जहां दुनिया की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा रहता है। यही कारण है कि भारत में मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं की भी एक विशाल संख्या है। ये मोबाइल फोन देशभर में फैले मोबाइल टावरों को सिग्नल भेजते और प्राप्त करते हैं और एक कनेक्टिविटी नेटवर्क बनाते हैं। मोबाइल टावर हानिकारक विद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित करते हैं और विकिरण स्तर की विश्व स्तर पर अनुमेय सुरक्षित सीमा 0.5 मिलीवाट प्रति वर्ग मीटर है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में यह सीमा 2013 में 900 गुना अधिक तक पहुंचने के लिए बुरी तरह से पार हो गई थी। यदि हम भारत के वर्तमान मोबाइल टॉवर विकिरण स्तर के बारे में बात करते हैं, तो हमारे पास 9.2 वॉट प्रति वर्ग मीटर की विकिरण जोखिम सीमा है जो अभी भी चीन (0.4 w/वर्ग मीटर) और रूस (0.2 w/वर्ग मीटर) जैसे देशों की तुलना में अधिक है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल से उस मोबाइल नेटवर्क टॉवर को हटाने के लिए कहा, जिससे ग्वालियर शहर के निवासी को कैंसर हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तब सुनाया जब ग्वालियर में एक घरेलू सहायक, कैंसर रोगी, हरीश चंद रावत ने मोबाइल टावर को हटाने की गुहार लगाई क्योंकि उन्होंने दावा किया कि यह उनकी बीमारी के पीछे का कारण था। जिस घर में वह काम कर रहा था, उससे 20 मीटर से भी कम दूरी पर मोबाइल टावर लगाया गया था। भारत में यह पहली बार था जब उच्चतम न्यायपालिका ने स्वीकार किया कि मोबाइल टावरों से कम आवृत्ति वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण (ईएमआर) वास्तव में मनुष्यों में घातक बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा रिपोर्ट की गई ऐसी ही एक अन्य घटना में, 2003 में जयपुर में सी-स्कीम लक्ज़री अपार्टमेंट के पड़ोस में तीन मोबाइल टावर लगाए गए थे। सबसे पहले, पास के एक इलाके के दो भाइयों को ब्रेन कैंसर हुआ था। 2011 में, अंतर-मंत्रालयी समिति ने विद्युत चुम्बकीय विकिरण के जोखिम को घटाकर 450 मेगावाट/वर्ग मीटर करने की सिफारिश की थी। अब तक, जयपुर के विकिरण प्रभावित पड़ोस में रहने वाले सात लोगों में कैंसर का पता चला है।
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