नई दिल्ली। दिल्ली की सर्दी काफी प्रसिद्ध है। दिसंबर आते ही दिल्ली-एनसीआर में कड़ाके की ठंड पड़नी शुरू हो जाती है। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं है। दिसंबर आ चुका है, इसके बावजूद अबकि बार यहां पहले वाली ठंड का एहसास नहीं हो रहा है।
दिल्ली में गर्मी पिछले 20 सालों में सबसे तेजी से बढ़ रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की स्टडी में खुलासा हुआ था कि दिल्ली का बढ़ता तापमान जानलेवा होता जा रहा है। साल 2011 से दिल्ली के औसत तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन नमी लगातार बढ़ी है। साल 2022 पिछले 12 सालों में सबसे गर्म साल रहा है। 2022 में गर्मी का औसत तापमान 31.2°C रहा। वहीं, 2023 में औसत तापमान 28.9°C दर्ज हुआ है। इस साल बेमौसम बारिश ने गर्मी को थोड़ा काबू में रखा है।
दिसंबर की शुरुआत करीब 8 सालों बाद इतनी गरम हो रही है। इससे पहले 2015 में 1 दिसंबर को न्यूनतम तापमान 14 डिग्री रहा था शुक्रवार को यह 13.3 डिग्री दर्ज हुआ मौसम विभाग के अनुसार वेस्टर्न डिस्टरबेंस के असर की वजह से न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी हुई है। एक के बाद एक आ रहे कमजोर वेस्टर्न डिस्टरबेंस ने उत्तर भारत में बढ़ती ठंड पर ब्रेक लगा दिया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ला नीना के असर की वजह से भी इस बार सर्दियों में ठिठुरन कम रहने और उनके सामान्य से अधिक गर्म रहने की संभावना है। आईएमडी ने शुक्रवार को कहा कि उत्तर भारत में शीतलहर कम पड़ेगी। साथ ही तापमान में सामान्य से अधिक रहेगा। इस बार सर्दियों ने अक्टूबर में दस्तक देना शुरू कर दिया था। तापमान सिमटकर 9 डिग्री पर पहुंच गया। यह सामान्य से तीन से चार डिग्री कम चल रहा था। लेकिन इसके बाद वेस्टर्न डिस्टेंस की वजह से बढ़ोतरी हुई और बढ़ती ठंड पर ब्रेक लग गया।
द मूकनायक ने अतुल सती से बात की। अतुल जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति का सदस्य हैं और पर्यावरण बचाने के लिए भी कार्य करते हैं। अतुल बताते हैं कि, दिल्ली क्या सभी जगह-जगह यही हाल है। पहले जैसी सर्दी अब कहीं नहीं पड़ती है। इसका कारण है ग्लोबल वार्मिंग इसी के कारण पूरी दुनिया में यही हाल हो रहा है। जहां बाढ़ नहीं आनी चाहिए। वहां बाढ़ आ रही है। जहां सर्दी रहती थी, वहां अब गर्मी भी पड़ती है। यह पर्यावरण परिवर्तन के कारण है। इसके लिए दुनिया में काफी सारी मीटिंग्स की जा रही हैं। इस समय सबको एक साथ खड़े रहने की जरूरत है, और अब तो इसके असर दुनिया पर दिखाई भी देने लगे हैं। धरती अब गर्म होने लगी है। दुनिया के दीप अब पानी में डूबने लगे हैं। उनके सामने अस्तित्व का संकट आ गया है। इसके लिए जागने की जरूरत है। केवल बोलने और दावे करने से कुछ नहीं होगा।
आगे वह बताते हैं कि, "दुनिया के सभी देशों ने मिलकर यह समझौता किया है कि हमें धरती का तापमान 1.5 डिग्री तक रखना चाहिए। अगर गंभीरता नहीं बढ़ाई गई, तो हम यह लक्ष्य नहीं पा पाएंगे। इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी विकसित देशों की है। क्योंकि धरती को गर्म करने का सबसे बड़ा हाथ विकसित देशों का ही है। यह केवल भारत का मामला नहीं है। हमें विकास करने के तरीकों को बदलना पड़ेगा। कितनी पक्षियों जानवरों की प्रजातियां अब खत्म होने के कगार पर हैं। अगर जल्दी ही इसको नहीं रोका गया तो इंसानों की जिंदगी भी नहीं बच पाएगी।"
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