बाघों के रहवास के लिए सुरक्षित मुकुन्दरा हिल्स, फिर क्यों नहीं बढ़ रहा बाघों का कुनबा?

वन्य जीव विशेषज्ञों को करना होगा मंथन.
बाघों के रहवास के लिए सुरक्षित मुकुन्दरा हिल्स, फिर क्यों नहीं बढ़ रहा बाघों का कुनबा?
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राजस्थान। प्रदेश में रणथंभौर बाघ परियोजना (Ranthambore Tiger Project) के बाद मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व (दर्रा) के घने जंगल व मैदानी पठारों वाले इलाके को बाघों के रहवास के लिए सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता है। इसके बावजूद मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व (Mukundra Hills Tiger Reserve) की वादियां बाघों से आबाद नहीं हो रही है। यह वन्य जीव प्रेमियों के साथ ही वनाधिकारियों के लिए भी चिंता का विषय है। 

वनाधिकारियों के अनुसार, पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां अप्रैल 2018 से अप्रैल 2019 तक कुल चार बाघ बाघिन शिफ्ट किए गए। इस बीच दो शावकों के पैदा होने की खबर भी आई, लेकिन एक बाद एक शावकों और बाघ बाघिनों की मौत तथा गुम होने खबरें आती रहीं। विभाग के अथक प्रयासों के बाद भी यहां बाघों का कुनबा नहीं बढ़ सका, यह चिंता का विषय है। हालांकि वन्य जीव विशेषज्ञ मुकुन्दरा में बाघों का कुनबा नहीं बढ़ने का कारण बाघ बाघिनों की कम संख्या मान रहे हैं। इस बात की पुष्टि मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एसपी सिंह ने भी की है। 

बाघों के रहवास के लिए सुरक्षित है मुकुन्दरा हिल्स

मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एसपी सिंह ने द मूकनायक से बात करते हुए दावा किया कि यह (मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व) बाघों के रहवास के लिए पर्याप्त है। यह टाइगर रिजर्व 792 वर्ग किलोमीटर में फैला है। सिंह ने कहा कि इसमें टाइगरों के हेबिटेट के लिए दो बड़े क्षेत्र शामिल है तथा एक कनेक्टिंग कॉरिडोर भी है। जो दोनों बड़े क्षेत्रों को आपस में जोड़ता है। 

उन्होंने कहा कि मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व के क्षेत्र को और बढाने के नेशनल टाइगर कनजर्वेशन अथोरियटी के निर्देश है। एनटीसीए के निर्देश पर आसपास के सटे हुए वन क्षेत्र को मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व में शामिल करने का प्रस्ताव तैयार कर उच्च अधिकारियों को भेज रखा है। इसकी अनुमति मिलती है तो क्षेत्र का विकास भी होगा, टाइगरों के रहवास के लिए क्षेत्र भी बढ़ेगा।

यूं बढ़ती घटती रही बाघों की संख्या

वन विभाग के अनुसार अप्रैल 2013 में मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। पांच वर्ष के लंबे इंतजार के बाद पहली बार 3 अप्रैल 2018 को टाइगर री- इंट्रोडक्शन प्लान के तहत रणथंभौर से रामगढ़ में लाए गए बाघ टी-91 को मुकुन्दरा में छोड़ा गया। इसे एमटी-1 नाम दिया गया। 19 दिसम्बर 2018 को रणथंभौर से बाघिन टी-106 को मुकुन्दरा में शिफ्ट कर एमटी-2 नाम दिया। इसने दो शावकों को जन्म दिया।

9 फरवरी 2019 को रणथंभौर से निकला टी-98 सुल्तानपुर के रास्ते कालीसिंध के नेचुरल घाटी माता मंदिर क्षेत्र पहुंचा। यहां फोटो कैमरे में ट्रेप होने के बाद इसे एमटी 3 नाम दिया था। 12 अप्रैल 2019 को बाघिन टी-83 को रणथंभौर से ट्रांसलोकेट कर मुकुन्दरा लाए। इसे एमटी 4 नाम दिया। इसके बाद जून-2020 के प्रारंभ में बाघिन एमटी-2 के दो शावक सामने आए। ऐसे में यहां बाघों की संख्या 6 हो गई। 

इसके बाद फिर मुकुन्दरा से दुखदायी खबरों का सिलसिला सामने आया। 23 जुलाई 2020 को बाघिन एमटी 4 का जोड़ीदार बाघ एमटी 3 की मौत हुई। बीमारी के कारण इलाज के लिए टाइगर रिजर्व में टीम इसे ट्रंकोलाइज करने आई थी, लेकिन इसी दौरान यह मृत अवस्था में मिला। अब शावक समेत 6 में से 5 बाघ बचे। इसके बाद 3 अगस्त 2020 को 82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बाघिन एमटी 2 का एक से दो दिन पुराना शव मिला। वन अधिकारियों ने इसकी मौत का कारण बाघ से आपसी झगड़ा बताया। 

बाघिन एमटी-2 की मौत के एक महीने पहले नजर में आए शावकों में से एक कि उपचार के दौरान कोटा चिड़िया घर में मौत हो गई। जबकि दूसरा शव गुम हो गया। एमटी-1 भी लापता हो गया। जिसका पता नहीं चल सका। अब बाघिन एमटी 4 की भी मौत हो गई।

बाघों के कुनबा बढाने के लिए कम से कम पांच की संख्या जरूरी

मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिर्जव के फील्ड डायरेक्टर एसपी सिंह कहते हैं कि वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया के वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार टाइगरों की सुरक्षित ब्रीडिंग कर कुनबा बढाने के लिए कम से कम पांच बाघ बाघिनों का होना जरूरी है। इनमें दो नर और 3 मादा का अनुपात में टाइगर ब्रीडिंग कर सुरक्षित सन्तान उत्पत्ति करने में सक्षम रहते हैं। 

सिंह कहते हैं कि मुकुन्दरा में हम एक बार भी एक साथ बाघों की उतपत्ति की आवश्यक संख्या तक नहीं पहुंच सके। उन्होंने कहा कि हमने यहां टाइगर की मिनिमम वायबल ब्रीडिंग की संख्या के हिसाब से टाइगर ट्रंसपेशन की मांग की है, लेकिन पर्याप्त बाघों की संख्या एक बार भी नहीं मिली। ऐसे में इस तरह की घटना (बाघों की अकस्मात मौत) होने पर हम ग्रोथ करने की बजाय वापस शून्य पर आकर खड़े हो रहे हैं। 

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सिंह ने सरिस्का टाइगर रिजर्व का उदहारण देते हुए कहा कि 2004 के आस पास वहां टाइगर नहीं रहे। 2008 में पुनः टाइगर बसाने का काम शुरू किया गया। उन्होंने कहा सरिस्का में टाइगर पुनर्वास के दौरान शुरुआत में 6 तक टाइगर लेकर आए। इसके बाद और भी लाए गए। यही वजह है कि 15 साल के वक्फे में अब सरिस्का बाघों से आबाद हो गया। 

इसी तरह के प्रयास अब मुकुन्दरा हिल्स के लिए भी करने होंगे। तब जाकर सफलता मिल सकती है। एसपी सिंह ने कहा हमने बाघिन एमटी 4 को बचाने के लिए अथक प्रयास किया है। वह कहते हैं कि वाइल्ड एनिमल में, विशेषकर जब बाघिन गर्भावस्था में हो और उसका गर्भाशय फट जाए। ऐसी स्थिति में बच्चों को या बाघिन को बचा पाना असंभव है। 

फिर होगा पुनर्वास रणथंभोर से एक और बाघिन शिफ्टिंग की अनुमति

मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एसपी सिंह ने कहा कि 2 मई को एनटीसीए की टेक्निकल कमेटी की बैठक हुई थी। टेक्निकल कमेटी की बैठक में सैद्धांतिक तौर पर रणथंभौर से एक बाघिन को शिफ्टिंग की अनुमति के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा गया था। वहां से रणथंभौर से मुकुन्दरा में एक बाघिन को शिफ्टिंग की अनुमति मिल गई है। 

सिंह ने बताया कि टेक्निकल कमेटी की बैठक में हमने दो बाघ मुकुन्दरा हिल्स में शिफ्ट करने की डिमांड रखी थी। हम चाहते हैं कि टाइगरों का कुनबा बढ़ाने के लिए सरिस्का की तरह मुकुन्दरा में भी आवश्यक संख्या बाघ बाघिनों की हो। ताकि मुकुन्दरा भी रणथंभौर और सरिस्का की तरह बाघों से आबाद रहे।

बाघों और अन्य वन्य जीवों के लिए सुरक्षित है मुकुन्दरा हिल्स के जंगल

मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान या दर्रा वन्यजीव अभयारण्य को 9 अप्रैल, 2013  को मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। यह राजस्थान के कोटा जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर कोटा-झालावाड़ मार्ग पर है। इस टाइगर रिजर्व के बीच से दिल्ली-मुम्बई रेलवे लाइन भी निकल रही है। 

रणथंभौर बाघ परियोजना (Ranthambore Tiger Project) सहित विभिन्न वन अभयारण्यों में वन जीव एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रही सवाईमाधोपुर की पथिक लोक सेवा समिति के संयोजक आदिवासी मुकेश मीना ने द मूकनायक को बताया कि मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व कोटा, झालावाड़, बूंदी और चित्तौड़गढ़ के क्षेत्र को मिलाकर 792 वर्ग किमी क्षेत्रफल में है। 

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