भोपाल। "मैं कलियासोत नदी हूँ, 11वीं सदी से जंगलों में प्रवाहमान हूँ। कालांतर में भोपाल शहर मेरे पास बसा, बसावट ने आकर लिया तो मेरी गोद में सैकड़ों मकान बन गए हैं, कुछ निर्माणाधीन हैं। धीरे-धीरे जंगल कम हो रहे है। पेड़ काटे जा रहे हैं। हरियाली खत्म हो रही है, इससे मुझे परेशानी हो रही है। मैं सिर्फ 36 किलोमीटर लंबी हूँ, इसलिए मुझे छोटा समझ मेरे अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की जा रही है। मैं भोपाल के लोगों से कहना चाहती हूँ कि ये मत भूलना की शहर झीलों की नगरी के नाम से सिर्फ मेरे अस्तित्व के कारण जाना जाता है। मैं ही भोज तालाब में पानी लेकर आई थी। मत भूलना में ही शहर के 10 तालाबों को सिंचित कर रही हूँ। मेरा अस्तित्व मिटा तो शायद भोपाल के तालाबों का अस्तित्व खतरे में पढ़ जाएगा, इसका सीधा असर पर्यावरण और लोगों पर पड़ेगा।"
यह चेतावनी कलियासोत नदी ने लोगों को दी है। सदियों से यह नदी बह रही है। कहते हैं कि भोपाल की प्यास बुझाने के लिए तालाब काफी है, परंतु तालाब की प्यास बुझाने वाली नदियों का भी संरक्षण जरूरी है। यदि नदी नहीं होती तो शायद भोपाल भी नहीं होता। लगातार नदी, तालाबों के कैचमेंट, वैटलैंड पर अवैध कब्जे और कॉन्क्रीट निर्माण से वॉटर बॉडी पर तो खतरा है ही, इससे पूरे पर्यावरण को बड़ी मात्रा में नुकसान हो रहा है। पहले से ही भोपाल के बड़े तालाब की आद्रभूमि पर सैकड़ों अवैध पक्के निर्माण किए जा चुके हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कलियासोत नदी की चौड़ाई छोड़ कर दोनों किनारे से 33 मीटर के दायरे में अनाधिकृत रूप से मकान बनाने वालों पर कार्रवाई करने के आदेश जारी किए हैं। यह कार्रवाई जिला प्रशासन और नगर निगम को करनी है। सरकारी जमीन पर अवैध अतिक्रमण के खिलाफ जिला प्रशासन और निजी जमीन पर अनाधिकृत निर्माण के खिलाफ नगर निगम को कार्रवाई करना है। नगर निगम की ओर से सागर प्रीमियम टॉवर, अल्टीमेट कैंपस, भूमिका रेसीडेंसी, सिग्नेचर, सर्वधर्म, मंदाकिनी कॉलोनी, शिर्डी पूरम, अमरनाथ कॉलोनी में नोटिस जारी करने की कार्रवाई की जा रही है।
बता दें कलियासोत नदी के शहर में स्थित इलाके में कॉलोनाइजर ने बड़े कंस्ट्रक्शन करके आम जनता को बेच दिए। अब यह अवैध चिन्हिकरण और सीमांकन में आ गए हैं, जिसको हटाया जाना है।
कलियासोत नदी की चौड़ाई छोड़ कर दोनों किनारों से 33 मीटर के दायरे में अवैध अतिक्रमण को हटाने की समयसीमा गत रविवार को समाप्त हो चुकी है, लेकिन जिला प्रशासन और नगर निगम का चिन्हांकन और सीमांकन का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। अभी चिन्हांकन और सीमांकन की सभी जगह की रिपोर्ट ही एकत्रित की जा रही है। हालांकि कुछ जगह नगर निगम ने अवैध मकान बनाने पर नोटिस जारी किए हैं।
दरअसल, कलियासोत नदी के आस-पास हुए अवैध अतिक्रमण के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में यह केस 2014 से प्रचलित है। एनजीटी ने अगस्त 2023 में दो माह में नदी के दोनों किनारे से 33 मीटर के दायरे में चिन्हांकन और सीमांकन करने के आदेश दिए थे। इसके बाद 31 अगस्त तक इस दायरे में आने वाले अवैध अतिक्रमण और अनधिकृत निर्माण को तोड़ने को कहा था। आदेश पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट 15 जनवरी को पेश करने के निर्देश दिए हैं, जिसके लिए नगर निगम सीमांकन और नदी की सीमा में बने अवैध मकानों को नोटिस भेज रही है। पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष सी पांडेय ने बताया कि पर्यावरण के संरक्षण के लिए नदी, तालाबों और जंगलों का संरक्षण होना जरूरी है। कलियासोत के आस-पास अब की जा रही कार्यवाही नगर निगम पहले ही करती तो शायद इतने अधिक अवैध निर्माण नहीं होते।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर डॉ. विपिन व्यास ने बताया कि नदी हमेशा से प्राकृतिक स्वरूप में रही है। इनके आस-पास कॉन्क्रीट के निर्माण से सबसे पहले पानी के रिसोर्सेस प्रभावित होते हैं। नदी के पास रिहायशी इलाकों के कारण पानी में अपशिष्ट पदार्थ बढ़ते है। पानी की आवक और उसकी गुणवत्ता दोनों पर ही असर पड़ता है। इसके साथ जब यहां निर्माण शुरू होता है तो नदी के किनारे के पेड़ काट दिए जाते हैं। प्रदूषित जल और पानी के आवक की कमी के कारण जलीय जीवजंतु भी प्रभावित होते हैं। उनकी प्रजनन प्रक्रिया पर असर पड़ता है। नदियों के आस-पास अतिक्रमण होना पूरे इको सिस्टम पर असर डालता है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए कोलार एसडीएम आशुतोष गोस्वामी ने बताया, "सीमांकन का काम पूरा किया जा चुका है। अब हम रिपोर्ट को एक जगह एकत्रित कर रहे हैं। दो जनवरी तक यह काम पूरा कर लेंगे। नगर निगम द्वारा अवैध मकानों को नोटिस भेजे जा रहे हैं। जल्द ही अवैध और अनधिकृत अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू करेंगे। 15 जनवरी तक एनजीटी में रिपोर्ट पेश करनी है।"
बात 11वीं सदी की है। धार के राजा भोज एक ऐसे चर्म रोग से पीड़ित हो गए, जिसका इलाज किसी भी वैद्य-हकीम के पास नहीं था। कहते हैं कि एक सिद्ध साधु ने उन्हें बताया कि यदि वह एक ऐसा जलाशय बनाएं, जिसमें 365 वाटर सोर्स से पानी भरता हो, और उसमें स्नान करेंगे तो राजा की काया पहले की तरह दमकने लगेगी। राजा ने अपने विशेषज्ञों को इस तरह के स्थान की खोज करने के लिए भेज दिया जहां पर 365 वाटर सोर्स मौजूद होता कि जलाशय बनाया जा सके।
राजा भोज के विशेषज्ञ बेतवा नदी के मुहाने पर आकर रुक गए क्योंकि यहां पर 356 वाटर सोर्स से पानी आ रहा था, लेकिन प्रॉब्लम यह थी कि यह संख्या सिद्ध साधु द्वारा बताई गई संख्या 365 से 9 कम थी। राजा के दरबारी परेशान थे तभी भोपाल में रहने वाले गोंड कबीले के मुखिया (कालिया) ने राजा के विशेषज्ञों ने एक ऐसी नदी के बारे में बताया जो जंगल में बहती है और जिसके 9 वाटर सोर्स हैं। यानी दोनों नदियों का पानी मिलाकर एक जलाशय में डाल दिया जाए तो उसका टोटल वाटर सोर्स 365 हो जाएगा।
इस प्रकार भोपाल के तालाब का निर्माण शुरू हुआ। राजा भोज बड़े प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें मृत्यु के निकट ले जा रहे चर्म रोग से मुक्ति मिल गई थी। जंगल में बहने वाली इस अज्ञात नदी का नाम गोंड आदिवासी कबीले के मुखिया कालिया के नाम पर कालियास्त्रोत रखा गया, समय के साथ इसका उच्चारण बदला और इसे कलियासोत नदी कहा जाता है।
इस नदी के पानी में आज भी काफी चमत्कारी गुण हैं। कलियासोत नदी के पानी का उपयोग किसानों के खेतों में सिंचाई के लिए किया जाता है और आश्चर्यजनक रूप से काफी अच्छी फसल होती है। काली नदी के पानी से सिंचित खेतों की फसलों में न्यूट्रिशन वैल्यू भी काफी अच्छी देखी गई है।
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