भोपाल। भोपाल में गिद्धों के सरक्षंण के लिए स्थापित किए गए प्रजनन केंद्र में अबतक पांच करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन एक भी गिद्ध को खुले आसमान में नहीं छोड़ा गया है। वन विहार भोपाल एवं बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के संयोजन से गिद्ध सरक्षंण प्रजनन केंद्र की शुरुआत 2014 में की गई थी। प्रजनन केंद्र में अभी दो प्रजातियों के 85 गिद्धों को तैयार कर लिया गया है। लेकिन अबतक एक भी गिद्ध को खुले आसमान में नहीं छोड़ा गया है।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य गिद्धों का प्रजनन और संरक्षण कर पर्यारण में उनकी संख्या वापस से बढ़ाया जाना था। प्रोजेक्ट को शुरू हुए दस वर्षों का समय बीत चुका है, लेकिन एक भी गिद्ध खुले आसमान में नहीं छोड़ा गए हैं। इससे यह साफ है कि गिद्ध प्रोजेक्ट की सफलता फिलहाल शून्य है।
गिद्धों के प्रजनन और संरक्षण के इस प्रोजेक्ट के लिए 2014 से केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के द्वारा प्रजनन केंद्र को 50 लाख रुपए प्रति वर्ष दिया गया है। वन विहार से मिली जानकारी के मुताबिक, आगे प्रोजेक्ट को और बढ़ाया जाएगा, जिससे यह खर्च 40 प्रतिशत तक और अधिक बढ़ सकता है।
‘द मूकनायक’ से बातचीत करते हुए वन विहार भोपाल की डायरेक्टर पद्म प्रिया ने बताया कि “भोपाल के केरवा में गिद्ध प्रजनन केंद्र को गिद्धों की विलुप्त हो रहीं प्रजातियों की संख्या पुनः बढ़ाकर पर्यावरण में छोड़ने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है। प्रजनन केंद्र बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के तकनीकी सहयोग से और वन विहार द्वारा संचालित किया जाता है। प्रति वर्ष इस प्रोजेक्ट के लिए 50 लाख रुपए भारत सरकार के केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा दिए जाते हैं, आगे इस प्रोजेक्ट को और बढ़ाया जाएगा जिसमें अतरिक्त खर्च भी बढ़ेगा। अभी गिद्धों को रिलीज नहीं किया गया है, लेकिन मार्च में हम चार गिद्धों को खुले में छोड़ने की योजना बना रहे हैं।“
दस सालों में 13 गिद्धों की मौत
केरवा गिद्ध प्रजनन केंद्र में दो प्रजातियों के गिद्ध हैं। यहाँ प्राकृतिक तरीके से गिद्धों का प्रजनन कर उन्हें संरक्षित किया जाता है। सीसीटीवी कैमरे से गिद्धों पर नजर रखी जाती है। इन्हें एक बड़े से खुले हुए हॉल में रखा जाता है जिसके छत पर एक जाल है। ऊपर से छत पूरी तरह खुला हुआ है। गिद्धों को जमीन पर घास- फूंस दे दी जाती है ताकि वह खुद से अपना घोंसला तैयार कर सकें। वहीं प्रजनन केंद्र में पिछले दस सालों में 13 गिद्धों की मौत हो चुकी है।
विलुप्ति की कगार पर हैं गिद्ध
वर्ष 1990 के बाद भारत समेत दुनियाभर से गिद्ध विलुप्त होते जा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत मे 1990 के पहले गिद्धों की संख्या करीब चार करोड़ थी। जो अब सिर्फ हज़ारों में रह गई है। गिद्धों का विलुप्त होना मनुष्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए घातक है, क्योंकि गिद्ध प्राकृतिक तौर पर सफाई में मदद करते हैं। उनके आहार में मुख्य तौर पर मरे हुए जानवर शामिल होते हैं।
केंद्र में दो प्रजातियों के गिद्ध
विश्वभर में गिद्धों की 23 तरह की प्रजातियां हैं, जिनमें से सिर्फ भारत में 9 तरह की प्रजातियां और मध्य प्रदेश में 7 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भी 4 स्थानीय है, वहीं 3 गिद्धों की प्रजाति प्रवासी हैं जो सिर्फ शर्दियों में यहां आते हैं। भोपाल के केरवा गिद्ध प्रजनन केंद्र में दो तरह की प्रजातियां हैं, जिनमें सफेद पीठ और लंबी चोंच का गिद्ध शामिल है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.