मध्य प्रदेश: "मैं नर्मदा नदी हूँ, सदियों से अमरकंटक के जंगलों से प्रवाहमान हूँ। मेरे तट के कई इलाकों में प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष पाएं गए हैं। विश्व की प्राचीनतम नदी सभ्यताओं में से एक नर्मदा घाटी की सभ्यता का का जिक्र किया जाता है। पूर्व से मैं स्वच्छ और स्वस्थ्य थी। लेकिन अब मुझमें मिल रहे दूषित पानी के कारण मेरा दम घुटने लगा है। जब चुनाव आते हैं तो मुझे साफ करने की घोषणाएं मंचों से की जाती हैं। लेकिन चुनाव के बाद सब मुझे भूल जाते हैं। मेरा अस्तित्व खतरे में है, और याद रखिए इसका सीधा असर पर्यावरण और लोगों पर पड़ेगा," यह चेतावनी नर्मदा नदी ने लोगों को दी है।
मध्य प्रदेश की जीवन रेखा और करोड़ो लोगों की आस्था का केंद्र नर्मदा नदी के हालात दिन-प्रतिदिन खराब हो रहे हैं। जिन नगरीय क्षेत्रों से यह गुजरती है, वहीं से इस नदी का पानी प्रदूषित हो रहा हैं। नर्मदा नदी मालवा-निमाड़ के बड़े क्षेत्र से होकर गुजरती है। इसके साथ महाकौशल जबलपुर संभाग के कई शहरों से निकलने के कारण नगरीय क्षेत्र के दूषित पानी नर्मदा के जल में घुल रहा है। इसके बावजूद नगरीय निकाय अपने-अपने क्षेत्रों में दूषित जल को नर्मदा नदी में मिलने से रोक नहीं पा रहे हैं।
पिछले 15 सालों के लोकसभा, विधानसभा और नगरीय निकायों के चुनावों में नर्मदा की स्वच्छता का मुद्दा रहा है। सीएम से लेकर महापौर, सांसद विधायक सभी ने यह कहा था कि नर्मदा में शहरों का गंदा पानी नहीं मिलने देंगे, लेकिन चुनाव के बाद इस पर कोई खास काम नहीं हुए। कहने भर को कुछ जगह सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं। लेकिन यह प्लांट भी गंदे पानी को नदी में जाने से रोक नहीं पा रहे।
केंद्र सरकार द्वारा नमामि गंगे मिशन, राष्ट्रीय नदी संरक्षण और रिवर फ्रंट डेवलपमेंट जैसी कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं। लेकिन क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अफसर की रुचि नहीं होने से नर्मदा में प्रदूषण का स्तर कम होने के बजाय बढ़ ही रहा है।
महाकौशल क्षेत्र के जबलपुर में पूरे शहर का दूषित पानी नर्मदा नदी मिल रहा है। यहां दो जगहों से दूषित पानी बड़ी मात्रा में निकलता है। शहर के गौरीघाट के आगे एक बड़ा नाला नदी में मिलता है। इस नाले में शहर का पूरा गंदा पानी इक्क्ठा होता है। इसके साथ भेड़ाघाट स्थित जिलेटिन फेक्ट्री के केमिकल युक्त पानी नर्मदा के जल में घुल रहा है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए जबलपुर के स्थानीय पत्रकार नील तिवारी ने बताया कि, "सरकार द्वारा किए गए सारे प्रयास असफल रहे हैं। शहर की नालियों से और अन्य दूषित पानी एक बड़े नाला का आकार लेता है, और यही गन्दा पानी गौरी घाट के आगे से नर्मदा नदी में मिल रहा है," नील तिवारी ने कहा, "फिलहाल एक भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट यहां काम नहीं कर रहा है लेकिन अभी तीन नए ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण कार्य चल रहा है। यह प्लांट कब तक शुरू होंगे यह कह पाना मुश्किल होगा।"
खंडवा जिले की तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में ही नाले-नालियों का गंदा पानी सीधे नर्मदा में मिल रहा है। जिले में 45 किमी क्षेत्र में बहने वाली नदी को गंदगी और प्रदूषण से मुक्त करने के लिए ओंकारेश्वर में सीवरेज प्लांट बनाए गए, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी और संचालन में लापरवाही के चलते यह कुछ खास काम नहीं कर रहे हैं।
नर्मदा में प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ओंकारेश्वर सहित नर्मदा किनारे की छह नगर परिषदों, जिनमें सनावद, बड़वाह, मंडलेश्वर, महेश्वर व बड़वानी पर 42.50 करोड़ की पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की मांग के साथ स्थानीय न्यायालय में परिवाद भी दायर किया है। वहीं पिछली बार लोकसभा चुनाव में खंडवा के सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल ने वादा किया था कि हर हाल में नर्मदा को प्रदूषण से बचाएंगे, लेकिन उनका वादा पूरा नहीं हो सका।ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी में गंदा पानी मिलने से रोकने के लिए चार सीवरेज प्लांट का निर्माण कार्य चल रहा है। इनमें से जेपी चौक का एक प्लांट शुरू हो गया है।
खण्डवा के रहवासी छात्र नेता अक्षत अग्रवाल ने द मूकनायक से बातचीत करते हुए बताया कि, "नर्मदा नदी के आसपास के शहरी क्षेत्र का गंदा पानी तो मिलता ही है, इसके साथ फैक्ट्रियों का कैमिकल युक्त पानी भी नदी के जल में मिल रहा है। हर चुनाव में नर्मदा की स्वच्छता का मुद्दा रहता है, लेकिन चुनाव के बाद नर्मदा नदी की कोई बात नहीं होती। "
मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के महेश्वर, मंडलेश्वर में सीवरेज का पानी नर्मदा में मिलता है। महेश्वर क्षेत्र में नर्मदा मंदिर, बड़घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर और नरसिंह मंदिर के पास से गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है। यहां छह साल से सीवरेज ट्रीटमेंट का काम चल रहा है। लेकिन अभी तक सिर्फ 40 प्रतिशत काम ही पूरा हुआ है। इसके अलावा मंडलेश्वर में तीन जगह से गंदा पानी नर्मदा में पहुंच रहा है।
धार जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के साथ औद्योगिक क्षेत्र का दूषित पानी नर्मदा में जाता है। कुक्षी, मनावर, निसरपुर, धामनोद जैसे नगरों का गंदा पानी मान, उरी, बाघनी आदि सहायक नदियों से सीधे नर्मदा में मिल रहा है। नर्मदा को प्रदूषण से बचाने के लिए यहां अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं। इधर, बड़वानी जिले से गुजर रही नर्मदा नदी के सभी किनारों से दूषित जल पानी मे घुल रहा है। जिले के ब्राह्मणगांव, छोटा बड़दा, छोटा कसरावद, राजघाट, भवती बिजासन सहित अन्य घाटों पर नर्मदा नदी प्रदूषित है। राजघाट के बैक वाटर में सबसे अधिक गंदगी है। बीते दिनों हुई एक रिसर्च के अनुसार बैक वाटर का पानी पीने योग्य नहीं है।
द मूकनायक से बातचीत में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी एसएन द्विवेदी ने बताया कि नर्मदा नदी में प्रदूषण पाए जाने पर हम तुरंत कार्रवाई करते हैं। हर महीने नदी के जल प्रदूषण का स्तर मापा जाता है। प्रदूषण जिन क्षेत्रों में बढ़ता है उसके कारणों का पता लगा कर सम्बंधित पर कार्रवाई कर रहें हैं।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जगह-जगह नर्मदा नदी के हिस्से में हो रहे प्रदूषण को लेकर जांच की जाती है। बोर्ड के वैज्ञानिक हर माह अलग-अलग जगहों से नर्मदा जल का नमूना लेते हैं। पिछले तीन माह में बोर्ड ने नर्मदा नदी में सीवरेज व दूषित पानी छोड़ने के मामले में छह परिषदों के खिलाफ न्यायालय में परिवाद दायर किया है। इन परिषदों में ओंकारेश्वर, सनावद, बड़वाह, मंडलेश्वर, महेश्वर और बड़वानी परिषद शामिल है। इसके साथ ही पर्यावरण क्षतिपूर्ति के एवज में इन परिषदों पर 42 करोड़ रुपए का दंड भी लगाया गया है।
नर्मदा नदी जिसे स्थानीय में रेवा नदी भी कहा जाता है, भारत की 5वीं व पश्चिम-दिशा में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है। यह मध्य प्रदेश राज्य की भी सबसे बड़ी नदी है। नर्मदा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में बहती है। इसे अपने जीवनदायी महत्व के लिए "मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवनरेखा" भी कहा जाता है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले के अमरकंटक पठार में उत्पन्न होती है। फिर 1,312 किमी (815.2 मील) पश्चिम की ओर बहकर यह भरूच से 30 किमी (18.6 मील) पश्चिम में खम्भात की खाड़ी में बह जाती है, जो अरब सागर की एक खाड़ी है।
नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां हैं। उत्तरी तट से 19 और दक्षिणी तट से 22। नर्मदा बेसिन का जलग्रहण क्षेत्र एक लाख वर्ग किलोमीटर है। यह देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का तीन और मध्य प्रदेश के क्षेत्रफल का 28 प्रतिशत है। नर्मदा की आठ सहायक नदियां 125 किलोमीटर से लंबी हैं। मसलन- हिरन 188, बंजर 183 और बुढ़नेर 177 किलोमीटर। मगर लंबी सहित डेब, गोई, कारम, चोरल, बेदा जैसी कई मध्यम नदियों का हाल भी गंभीर है। सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहाशा कटाई से ये नर्मदा में मिलने के पहले ही धार खो रही हैं।
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