नई दिल्ली: भले ही मार्च के अंतिम दिनों में और अप्रैल में तपिश रहने से गर्मी अब ज्यादा लगने लगी है। लेकिन भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मानसून को लेकर एक अच्छी खबर दी है। इस वर्ष मानसून सामान्य रहेगा। इसलिए मानसून में वर्षा अच्छी होगी। यह किसानों के लिए अच्छी खबर हो सकती है। लेकिन बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में वर्षा कम होने की संभावना है। स्काईमेट के अनुसार, इस साल मानसून में सामान्य से 102% बारिश होगी इसमें 5% का मार्जिन रह सकता है। लेकिन चार राज्यों में कम बारिश भी होगी।
नई दिल्ली स्थित डाउन टू अर्थ पत्रिका के संवाददाता अक्षित संगोमला द मूकनायक को बताते हैं कि, "अभी आईएमडी ने कहा है कि मानसून का जो प्रदर्शन रहेगा। वह पिछले सालों से अच्छा रहेगा। जितनी बारिश होनी चाहिए, उतनी बारिश होने की इस साल संभावना है। अभी 15 तारीख को आईएमडी की ओर से एक और फोरकास्ट आएगा। तब हमें और अच्छे से पता चलेगा कि मानसून कैसा रहेगा। 15 मई को फिर दोबारा IMD की तरफ से फोरकास्ट आएगा। जिसमें और अधिक जानकारी मिलेगी। अभी हम मौसम वैज्ञानिकों के संपर्क में है, उनसे जो हमें पता चला है कि यह सब 'अल नीनो' और 'ला लीनो' में की वजह से हो रहा है। अल नीनो कमजोर हो रहा है और ला नीनो मजबूत हो रहा है। इसलिए इस साल मानसून सामान्य रहने और दो प्रतिशत अधिक वर्षा होने की संभावना है।"
वह आगे बताते हैं कि, "ज्यादातर मानसून की वजह से ही किसी राज्य में ज्यादा और कम बारिश होती है। जैसे दक्षिण भारत में जो राज्य है, वहां मानसून में ज्यादा बारिश नहीं होती है। वहां बारिश नॉर्थ ईस्ट मानसून में होती है, जो दिसंबर और जनवरी में होता है। मेघालय, अरुणाचल प्रदेश राज्यों में मानसून के दौरान बहुत अधिक बारिश होती है। सभी का खाना, पीना, फसल मानसून पर ही निर्भर है। इस तरह से जो हमारे मैदानी राज्य हैं। हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि वह सभी मानसून पर ही निर्भर करते हैं। अच्छा मानसून होगा तो फसल भी अच्छी होगी."
"अभी बीते सालों में कुछ बदलाव देखे जा रहे हैं। जहां कुछ-कुछ राज्य ऐसे थे, जहां बारिश नहीं होती थी। लेकिन अब वहां बारिश बहुत होने लगी है। राजस्थान का पश्चिमी इलाका जहां थार मरुस्थल है। वहां पिछले कुछ सालों में बारिश होने लगी है। वहीं जहां देश के वह राज्य जहां हमेशा बारिश होती आई है, वहां अब बारिश कम होने लगी है। यह सब जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है। वैसे गर्मी का मानसून पर अच्छा ही असर पड़ता है। अगर गर्मी जितनी अच्छी होगी, उतना ही मानसून भी अच्छा होगा," अक्षित ने कहा.
वह बताते हैं कि, "ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय इलाके में समुद्र का तापमान और वायु में आये बदलाव के लिए जिम्मेदार समुद्री घटना को अल नीनो कहते हैं। इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है। अल नीनो जलवायु प्रणाली का एक हिस्सा है। यह मौसम पर बहुत गहरा असर डालता है। इसके आने से दुनियाभर के मौसम पर प्रभाव दिखता है और बारिश, ठंड, गर्मी सबमें अंतर दिखाई देता है। इसमें बारिश घटती है। राहत की बात ये है कि ये दोनों ही हालात हर साल नहीं, बल्कि 3 से 7 साल में दिखते हैं."
ला नीना को लेकर अक्षित बताते हैं कि, "भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर हवा का दबाव होने पर ये स्थिति पैदा होती है। इससे समुद्री सतह का तापमान काफी कम हो जाता है। इसका सीधा असर दुनियाभर के तापमान पर होता है, और तापमान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है। ला नीना का चक्रवात पर भी असर होता है। ये अपनी गति के साथ उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा को बदल सकती है। ला नीना से आमतौर पर उत्तर-पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण-पूर्व में मौसम गर्म होता है। इस दौरान भयंकर ठंड पड़ती है और बारिश भी ठीक-ठाक होती है।"
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