मध्य प्रदेश: औषधीय पौधों की विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित करने की शुरू हुई कवायद

उज्जैन में पौधों की दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षित करने की पहल शुरू
उज्जैन में पौधों की दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षित करने की पहल शुरू
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अंजन, कुल्लू, कुसुम, खिरनी, अर्जुन, बहेड़ा, अचार, शिशु, गुगल, पाखर, कबीट, पुत्रजीवा, बीजा, लसोड़ा जैसी कई वनस्पति प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर

भोपाल। मध्यप्रदेश के उज्जैन में पौधों की दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षित करने की पहल शुरू की गई है। इसके लिए एक नर्सरी में पौधों को तैयार कर पार्कों, शासकीय कार्यालयों सहित जंगलों में इन्हें रोपा जाएगा। उज्जैन के शिप्रा विहार स्थित सामाजिक वानिकी की नर्सरी में दुर्लभ प्रजातियों के पौधे तैयार करने का काम जारी है। इसी के साथ यहां 65 प्रजातियों के पौधों पर क्यूआर कोड लगाया जा चुका है। यह प्रदेश की पहली ऐसी नर्सरी बन गई है, जहां पौधों के क्यूआर कोड तैयार किए हैं।

मोबाइल से स्कैन करते ही मिलेगी जानकारी

नर्सरी में पौधौं पर बार कोड लगाए गए हैं। यहां मोबाइल से बार कोड स्कैन कर पौधे के बारे में सभी जरूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं। नर्सरी में दुर्लभ प्रजातियों के पौधे भी तैयार किए जा रहे हैं, ताकि वे विलुप्त न हो जाएं। यहां 65 प्रजातियों के पौधों पर क्यूआर कोड लगाया जा चुका है। इसके साथ ही अन्य पौधों पर भी बार कोड लगाने का काम चल रहा है।

सामाजिक वानिकी नर्सरी नर्सरी से हर साल पौधों का विक्रय भी किया जाता है। यहां से सार्वजनिक स्थलों व पौधारोपण क्षेत्रों में लगाए जाने वाले सभी तरह के पौधे यहां तैयार होते हैं। नर्सरी कई बार पुरस्कृत भी हो चुकी है। नर्सरी प्रभारी केके पवार के अनुसार इस साल नर्सरी में दुर्लभ प्रजातियों व प्रचलित प्रजातियों के पौधों पर क्यूआर कोड लगाए गए हैं।

बार कोड स्कैन करते ही पौधे का प्रचलित नाम, वैज्ञानिक नाम, खासियत, औषधीय गुण व अन्य जानकारी के साथ उस पौधे को किस तरह की जमीन और वातावरण में लगाया जा सकता है। विजिटर अपने मोबाइल के माध्यम से ही पौधे के बारे में सभी जानकारी हासिल कर लेंगे।

90 प्रजातियों के पौधें हो रहे तैयार

जानकारी के अनुसार, नर्सरी में 90 प्रजातियों के पौधे तैयार हो रहे हैं। इनमें छायादार, फलदार और शोभा बढ़ाने वाले शामिल हैं। फूलदार पौधों की भी कई प्रजातियां हैं, जिनमें गुलाब, मोगरा आदि शामिल हैं। सामाजिक वानिकी के तहत यहां छायादार, फलदार पौधे लगाए जाते हैं। इनमें बड़, पीपल और नीम के ज्यादा पौधे तैयार किए जाते हैं, जो पर्यावरण के लिए कारगर साबित होते हैं। बीते साल पीपल के 2500 व बड़ के 600 पौधे लगाए गए थे।

विलुप्त प्रजातियों को किया जा रहा संरक्षित

उज्जैन मालवा क्षेत्र में पौधों की कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है। नर्सरी में इन्ही पौधों को विशेष रूप से तैयार किया जा रहा है। जिसमें अंजन, कुल्लू, कुसुम, खिरनी, अर्जुन, बहेड़ा, अचार, शिशु, गुगल, पाखर, कबीट, पुत्रजीवा, बीजा, लसोड़ा जैसी कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। नर्सरी में प्रजातियों के पौधे जुटाकर उनसे नए पौधे तैयार कर जिले में रोपने की शुरुआत की है। यह पौधे औषधीय उपयोग के भी हैं। इनसे कई दवाइयां भी बनाई जाती हैं। उज्जैन धार्मिक क्षेत्र होने के बावजूद हवन-यज्ञ आदि में उपयोग होने वाली गुगल प्रजाति लुप्त हो गई है। नर्सरी में इन प्रजातियों के 25 हजार से ज्यादा पौधे तैयार कर जिले में रोपे गए हैं।

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