ग्राउंड रिपोर्टः जलवायु परिवर्तन के कारण धान की खेती छोड़ मत्स्य पालन को चुना, अब उसमें भी हो रहा घाटा

ग्राउंड रिपोर्टः जलवायु परिवर्तन के कारण धान की खेती छोड़ मत्स्य पालन को चुना, अब उसमें भी हो रहा घाटा
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सुंदरवन (पश्चिम बंगाल)। "इस बार तो अभी तक हमने धान को रोपा भी नहीं है। क्या करें कुछ समझ नहीं आता है। हम बारिश का इंतजार कर रहे हैं। ताकि धान की खेती कर पाएं। स्थिति यह हो गई है कि अब हम सिर्फ खेती से अपना घर नहीं चला पा रहे हैं"। यह कहना है एक मझोले किसान लकी सोदार का जो सुंदरवन क्षेत्र के संदेशखाली ब्लॉक में रहते हैं। लकी किसान है और मौसमी पलायन कर कोलकाता काम की तलाश में जाते है ताकि अपने घर को अच्छे से चला सकें।

सुंदरवन के किसान हो रहे दूसरे कामों पर निर्भर

ऐसी ही स्थिति सुंदरवन इलाके के कई किसानों की है, जो मुख्य रूप से खेती पर निर्भर हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन और मौसम की उठा पटक के बीच दूसरे कामों को भी कर रहे हैं। जिससे वह अपनी जीविका भी चला सकें। लकी उनमें से एक हैं। जो धान की खेती के लिए बारिश पर निर्भर रहते हैं। अगर बारिश अच्छी हुई तो उनके लिए लाभ निकाल पाना आसान हो जाता है। अगर साइक्लोन आ गया या ज्यादा बारिश हो गई तो सबकुछ बर्बाद हो जाता है।

लकी उन किसानों में है, जिन्होंने अभी तक अपनी जमीन पर मस्त्य पालन (फिशरी) का काम शुरू नहीं किया है। वह अपने पूर्वजों की धान की खेती की परंपरा को ही कायम रखना चाहते हैं। वह कहते हैं कि सामान्यतः धान की खेती तीन बार होती है, लेकिन साइक्लोन के कारण हमें कई बार नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।

वह बताते हैं कि साल 2020 में आएं अम्फान के कारण खड़े धान के पौधे पूरी तरह से नष्ट हो गए। बहुत ज्यादा नुकसान हो गया था। हमारी खरीफ की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी। इस बर्बादी पर सरकार ने किसानों को मुआवजे देने का ऐलान किया था।

वह कहते है दीदी(मुख्यमंत्री ममता बनर्जी) ने इन सारे इलाकों का हेलीकॉप्टर से दौरा भी किया था, लेकिन ऐलान के बाद भी आजतक हमें कोई मुआवजा नहीं मिला है। ऐसे में हम सब छोटे किसानों के पास क्या विकल्प बचता है। सिर्फ बाहर काम करने के अलावा।

धान के खेत।
धान के खेत।

लकी खेती किसानी के साथ-साथ मार्बल का काम भी करते हैं। वह बताते हैं कि जिस वक्त खेती का काम खत्म हो जाता है (यानि धान रोप कर चले जाना और पकने का इंतजार करना) मैं कोलकाता में मजदूरी करता हूं। वहां से जो पैसे कमाता हूं उससे ही घर चलता है। आपको बता दें पश्चिम बंगाल में आऊस, अमन, बोरो तीन तरह का धान की पैदावर होती है।

बारिश पर आश्रित किसानों की स्थिति बुरी

लकी के ही बगल में खड़े एक बुर्जुग जो एक आदिवासी किसान है। वह अभी अपनी जमीन की तरफ इशारा करते हुए कहते है कि स्थिति यह आ गई है कि जुलाई-अगस्त का महीना भी पार हो जाता है। खेती नहीं हो पाती है। हमारी खेतों में अभी तक धान की रोपाई नहीं हो पाई है। जिसके कारण हमें आर्थिक तंगी का सामना हर साल करना पड़ता है। वह भी अम्फान का जिक्र करते हैं कि स्थिति ऐसी है कि पहले के नुकसान का ही सरकार ने मुआवजा नहीं दिया है। जिसके कारण स्थिति और खराब हो गई है।

नहीं मिला लोगों को मुआवजा

आपको बता दें अम्फान का असर मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, मुर्शिदाबाद, हुगली, हावड़ा और कोलकाता में देखने के मिला। इस नुकसान के बाद राज्य सरकार ने 6,250 करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा की थी। जिसमें से पांच लाख परिवारों को घर बनाने के लिए प्रत्येक को 20 हजार रुपए की सहायता राशि की घोषणा की गई। एक दूसरी योजना के तहत प्रति एकड़ के नुकसान पर किसानों को 15,000 देना का ऐलान किया गया था। लेकिन लकी और उनके पड़ोसी जैसे कई लोग आज भी इस योजना का लाभ नहीं ले पाएं हैं।

आयला के बाद से बदला खेती का पैटर्न

आयला साइक्लोन का जिक्र करते हुए तपन दास कहते है कि साल 2009 से पहले हमारे यहां भी तीन प्रकार के धान की खेती होती थी। लेकिन उस चक्रवाती तूफान के कारण हमारा घर जमीन सबकुछ तहस-नहस हो गया है। उपजाऊ जमीन पर खारे पानी की लेयर बन गई, जिसके कारण यहां खेती करना संभव नहीं था। इसलिए हमने फिशिंग के तरफ अपना रुख मोड़ लिया। ताकि बेहतर जीवन जी सकंे। लेकिन साइक्लोन ने हमारा यहां भी जीवन चलाना मुश्किल कर दिया है।

वह बताते है कि अम्फान, बुलबुल जैसे चक्रवाती तूफानों के कारण नदियों का बांध टूट गए। खारे पानी वाली नदियों का पानी हमारे खेतों में गया। जिसका असर मछलियों पर पड़ने लगा क्योंकि मछलियां मीठे पानी की है और साइक्लोन के कारण खेतों में खरा पानी भर गया। जिसके कारण मछलियों में लगातार बीमारियों हो रही हैं।

खेती छोड़ मत्स्य पालन को बनाया अपना व्यवसाय

पिछले कुछ दशकों से लगातार मौसम की मार के कारण सुंदरवन में रहने वाले कई किसानों ने खेती करना छोड़कर मछली पालन को अपना पहला व्यवसाय बना लिया है। इस क्षेत्र में दूर तक फैला पानी और उसके बीच बनी पग डंडियां किसी भी व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर खींच सकती हैं।

सुमन, मत्स्य पालक/किसान
सुमन, मत्स्य पालक/किसान

सुमन इसी क्षेत्र के एक बड़े किसान है, जिनकी पिछली पीढ़ी धान की खेती करती थी, लेकिन अब मछली पालन का काम कर रही है। सुमन ही इस काम को सुचारू रुप से चला रहे हैं। वह कहते हैं कि साल 2009 में आयला तूफान आने के बाद ही चीजें बदल गई है। वह कहते हैं कि जिस जमीन पर आप सिर्फ पानी-पानी देख रहे हैं। वहां कभी धान की पौधे लहलहाते थे। आयला के बाद से ही पूरी उपजाऊ जमीन बंजर बन गई है। जिसके कारण हमें अपनी खेती वाली जमीन पर आज मछली पालन करना पड़ रहा है। वह कहते हैं कि हमारे परिवार को यह काम करते हुए लगभग 12 साल हो गए हैं। शुरुआती दिनों में तो इस बिजनेस में मुनाफा हुआ लेकिन अब नहीं हो रहा है।

द मूकनायक की टीम ने उनसे जब काम करने के लिए मौसमी पलायन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मेरे पास इतनी जमीन है कि मेरा काम ठीकठाक चल रहा है। अगर नहीं चल पाएगा तो बाहर काम करने जाने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता है।

बारिश ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन और दोस्त भी है

सुमन के घर के ही सामने सड़क के उस पार तपन दास बारिश को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन और मित्र बताते हैं। वह कहते है कि मैं बारिश का इंतजार कर रहा हूं और वह अभी तक नहीं आई है। वह बताते है कि मछलियों के लिए सबसे ज्यादा परिवेश बारिश का पानी है। लेकिन साल 2022 या उससे पहले के कुछ सालों की बात करें तो बारिश उतनी नहीं हुई। जिसकी हम उम्मीद कर रहे थे। जिस कारण मत्स्य पालन सही से नहीं चल पा रहा है। तपन का कहना है कि दिन प्रतिनदिन परिवार बढ़ रहा है। लेकिन हमारी कमाई में किसी तरह की वृद्धि नहीं हो रही।

मछलियों में फैल रहा है एक विशेष वायरस

तपन दास [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
तपन दास [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]

तपन खेत की तरफ इशारा करते हुए कहते है कि यहां सिर्फ मछली पालन होता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इस व्यवसाय में भी व्यापारियों को घाटा लग रहा है। व्यापार के अपने घाटे के जिक्र करते हुए वह कहते है कि बारिश की कमी के कारण मछलियों में विशेष तरह का वायरस आ जा रहा है। जिसके कारण वह बीमार हो जा रही है। कई बार मर भी जा रही है। हालात यह है कि हम एक वायरस का पता करते हैं तब तक इन्हें कोई दूसरा वायरस से इंफेक्शन हो जाता है। यहां तक की फिशरी डिपार्टमेंट वाले भी इनको अच्छे से नहीं पकड़ पा रहे हैं।

बेबी पात्रो [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]
बेबी पात्रो [फोटो- पूनम मसीह, द मूकनायक]

मिट्टी भी दूषित हो गई है

संदेशखाली में रहने वाले किसान बेबी पात्रो के घर से लोग बाहर काम करने को गए हैं। वह खुद यहां रह कर फिशरिंग (मत्सय पालन) कर रहे हैं। वह कहते हैं कि, हमने नए काम को शुरु किया था ताकि जीवन अच्छा होगा कि यहां भी हमलोग खुश नहीं है। स्थिति ऐसी है कि तालाब या खेती का पानी और मिट्टी पूरी तरह से दूषित हो गई है। जिसमें कारण मछलियों का उत्पादन कम हो गया है। वह कहते हैं कि साइक्लोन के कारण नदियों द्वारा आया खरा पानी यहां भर तो जाता है, लेकिन बाहर नहीं निकल पाता है। जिसके कारण हम अपनी लागत को भी नहीं बचा पा रहे हैं।

वह कहते हैं कि, इसका असर सबसे ज्यादा छोटी मछलियों पर पड़ रहा है। चिंगड़ी (मछली की एक प्रजाति) का जिक्र करते हुए वह कहते हैं मिट्टी दूषित होने के कारण चिंगडी मछलियों का उत्पादन बहुत कम हो पाता है। जबकि इस मछली की मांग भी अधिक है। इनमें प्रोटीन ज्यादा होता है। दूसरी बात यह भी है अगर छोटी मछलियां बच नहीं पाएंगी तो वह बड़ी कैसी होगी। बाकी किसानों की तरह इसका भी कहना था कि मछलियों में वायरस हो जा रहा है। जिसका कोई उपचार नहीं मिल पा ल रहा है।

मत्स्य पालन की सही जानकारी नहीं है

लगातार 28 सालों से सुंदरवन पर काम करने वाले जादवपुर यूनिवर्सिटी में समुद्र विज्ञान के निदेशक डॉ. तुहिन घोष का कहना है कि मत्स्य पालन करना हर किसी के लिए संभव नहीं है। आपको इसके बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। लेकिन वह कहते हैं कि सुंदरवन में ऐसा नहीं है। यहां जिसके पास जमीन है। उसने ही इस काम को एक बिजनेस के तौर पर शुरू कर दिया है।
जबकि यह काम मछुआरे अच्छे से कर पाते हैं। उन्हें मछलियों की जानकारी अच्छी होती है। क्योंकि वह पीढि़यों से अपने घरों में यह काम देखते हुए आ रहे हैं। उन्हें पता है किस मछली को कितना पानी चाहिए। लेकिन आज यह काम ठेकेदारों को हाथों में चल गया है। जिसका नतीजा यह है कि लोग मत्स्य पालन तो कर रहे हैं। लेकिन पैसा नहीं कमा पा रहे हैं।

सुंदरवन का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि यहां मत्स्य पालन वाले किसानों का एक बड़ा तबका कुछ पूंजीपतियों की चंगुल में है। वह अपनी मर्जी से उनसे मछली पालन करवा रहे हैं। बड़े-बड़े ठेकेदार लोगों से जमीन को एक्वा फिशिंग के लिए कनवर्ट करवा रहे हैं। लोगों को लालच दिया जा रहा है कि अगर वह मत्स्य पालन करेंगे तो उन्हें ज्यादा मुनाफा है।

इस लालच के ऐवज में लोग लगातार इस काम से जुड़ तो रहे हैं, लेकिन इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। जिसका नतीजा यह होता है कि मछलियों में आए दिन कोई न कोई वायरस आ जा रहा है। और मर जा रही हैं।

इस कारण को वह पलायन से भी जोड़कर देखने की ंसलाह देते हैं। वह कहते हैं कि यहां जिनके पास थोडा बहुत पैसा इस व्यापार से आ जाता है वह मौसमी तौर पर पलायन कर दूसरी जगह पर काम करने को चले जाते हैं। जिनके पास नहीं है। वह यही रहकर थोड़े बहुत से अपना जीवनयापन करते हैं।

बंगाल की खाड़ी में तापमान वृद्धि

इंडिया स्पेंड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक 1999 का साइक्लोन, 2009 का आयला के बाद 2020 में आया अम्फान अब तक सबसे भयावह साइक्लोन था। जिसमें 1999 में 9,000 लोगों की मौत हुई थी। साथ ही किसानों को भारी नुकासन हुआ था। यहां तक की इसका असर सुंदरवन के जंगलों और जानवारों पर पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार आम्फान से पहले बंगाल की खाड़ी में तापमान 32-34 डिग्री सेल्सियस मई के दो सप्ताह में दर्ज किया गया। यानि की तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। जो जलवायु परिवर्तन का एक मुख्य कारण है।

साइक्लोन के कारण होते नुकसान की बात करें तो इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस सालों में इनमें 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। साल 2018-19 दो सालों में प्रत्येक साल औसतन 7 साइक्लोन आए हैं। जो कि साल 1965 से 2017 बीच आएं साइक्लोन की सालना औसत से 4.5 प्रतिशत ज्यादा है।

जलवायु परिवर्तन का असर जीडीपी पर

जलवायु परिवर्तन का सीधा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ने के साथ-साथ हमारी आर्थिक स्थिति(इकोनॉमी) व देश की जीडीपी पर पड़ता है। लगातार आते साइक्लोन और समुद्र में आते-ज्वार-भाटा के कारण ही यहां की खेती बर्बाद हो रही है।

क्लाइमेट चेंज एंड द इकोनॉमिक फ्यूचर ऑफ डेल्टास् इन अफ्रीका एंड एशिया नाम के रिसर्च पेपर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार डेल्टा में संचयी हानि साल 2050 तक जीडीपी की 12 प्रतिशत तक चली जाएगी। जिसका 9 प्रतिशत असर आधारभूत संरचना और 3 प्रतिशत असर कृषि पर पड़ने वाला है। रिसर्च पेपर के अनुसार जलवायु परिवर्तन देश की जीडीपी पर असर डाल रहा है। वहीं हाल के आंकड़ों की बात करें तो भारत-बांग्लादेश डेल्टा क्षेत्र देश की जीडीपी में 1.1 प्रतिशत का योगदान देता है।
वही इस पेपर के अनुसार टेरेट्री सेक्टर(सर्विस सेक्टर) ही डेल्टा क्षेत्र में कमाई का मुख्य स्त्रोत है। लेकिन अगर सिर्फ रोजगार की बात की जाए तो प्राइमरी सेक्टर(कृषि) ही जीडीपी में मुख्य रोल अदा करती है।

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