दिल्ली: "इस दम घोटने वाली हवा में सांस लेना मुश्किल..."

मौसम बदलते ही हवा में घुला जहर, दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों के लोग प्रभावित.
दिल्ली में वायु प्रदूषण
दिल्ली में वायु प्रदूषण
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दिल्ली/लखनऊ। दिल्ली में मौसम के करवट बदलने के साथ ही शहर की आबो हवा भी खराब हो गई है। दिल्ली के गोविंदपुरी विस्तार पर परचून की दुकान चलाने वाले सौरभ बताते हैं, 'इस दम घोटने वाली हवा में सांस लेना मुश्किल हो गया है। मेरी किराने की दुकान है। सरकार सावधानी बरतने के साथ ही घर पर रहने की सलाह दे रही है। घर पर पूरा दिन बैठकर कमाई नहीं हो सकती। घर का पेट पालने के लिए दुकान जाना ही पड़ेगा।'

दिल्ली के सुखदेव विहार मेट्रो स्टेशन के पास चाय की दुकान चलाने वाले विकास बताते हैं, 'प्रदूषण के कारण कुछ भी कर पाना मुश्किल है। हमारी तो रोजी रोटी इसी से चलती है। प्रदूषण के कारण लोगों ने बाहर निकलना बंद कर दिया है। जामिया में भी छात्र कम आ रहे हैं। रोजगार ठप्प हो गया है।'

वहीं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डॉक्टर के पास दवा लेने आए बुजुर्ग (65) अपना ब्लड प्रेशर चेक करवा रहे थे। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनका ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है। ऐसा मौसम में बदलाव और प्रदूषण के कारण ही है। हल्की कफ (बलगम) की समस्या भी है। उनकी पत्नी को भी यही समस्या आ रही थी।

केजीएमयू के रेस्पिरेट्री विभाग में सांस फूलने की समस्या से परेशान ज्योति दवा लेने पहुंची थीं। ज्योति पहले भी कोरोना के कारण कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहीं थी। उन्हें ऑक्सीजन लगाना पड़ा था। अब इस प्रदूषण में उनकी समस्या फिर से बढ़ गई है।

देश की राजधानी दिल्ली सहित अन्य शहरों में प्रदूषण के कारण यही स्थिति देखने को मिल रही है। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा के हिसार में सबसे ज्यादा प्रदूषण दर्ज किया गया है। इसका AQI 435 था। जबकि इससे सटे हुए शहर और देश की राजधानी दिल्ली में AQI 394 के करीब दर्ज किया गया। फरीदाबाद और सोनीपत में भी दिल्ली जैसी स्थिति है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद का AQI 401 दर्ज किया गया।

क्या है कारण और कैसा पड़ रहा असर?

भारत में ग्रीष्म से शीत ऋतु के बीच आई इस करवट ने देश की राजधानी दिल्ली के साथ ही विभिन्न राज्यों की हवा जहरीली हो गई है। वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं ने वातावरण में धुंध जैसी परत बिछा दी है। दिल्ली में इसका खासा असर दिख रहा है। दिल्ली में विजिबिलिटी 500 मीटर तक ही रह गई है। मौसम विभाग के अनुसार 6 नवंबर तक हालात ऐसे ही बने रह सकते हैं। मिनिस्ट्री का अर्थ साइंस के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम के अनुसार शनिवार को प्रदूषण की दो बड़ी वजह पराली और गाड़ियों को धुंआ रहा है। पराली का प्रदूषण इस सीजन में सबसे अधिक 35.42 प्रतिशत रहा। वहीं गाड़ियों का धुंआ 11.55% रहा। एक अधिकारी के अनुसार प्रणाली की वजह से सबसे ज्यादा प्रदूषण रहा। मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर कुलदीप श्रीवास्तव के अनुसार सुबह सुबह समय हल्का कोहरा था। दोपहर के समय नमी कम थी। वेदर एक्सपर्ट नवदीप के अनुसार 10 नवंबर तक ऐसे ही हालात बने रह सकते हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बिगड़ते मौसम का आंकलन करने को एयर क्वालिटी इंडेक्स तैयार किया है। यह वह मानक है, जिसके आधार पर पूरी दुनिया तय करती है कि मौसम मानव जीवन के अनुकूल है या प्रतिकूल? दिल्ली के संदर्भ में यह सालाना कार्यक्रम है। हर साल दिल्ली-एनसीआर के लोगों को यह परेशानी झेलनी पड़ती है। इससे बचने के जो भी उपाय किए जाते हैं, वे सब नाकाफी साबित होते हैं। एक नवंबर को मौसम ने अपना असर दिखाना शुरू किया और दो नवंबर आते-आते पूरे एनसीआर की हवा हर घंटे खराब ही हो रही है।

क्या है एयर क्वालिटी इंडेक्स के मानक?

50 तक: अच्छा

51-100: संतोषजनक

101-200: मध्यम

201-300: खराब

301-400 बहुत खराब

401-500: गंभीर

जहरीली हवा से हर साल 70 लाख मौत

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एचओ) का कहना है कि दुनिया में हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की मौत जहरीली हवा के कारण होती है। भारत में यह संख्या 16 लाख से ज्यादा है. एक अन्य स्टडी कहती है कि खराब हवा सीधे उम्र पर असर डालती है. विश्व स्तर पर यह 2.2 वर्ष है। दिल्ली-यूपी में 9.5 साल से ज्यादा उम्र कम हो रही है। भारत में 2019 में 1.16 लाख ऐसे नवजात केवल एयर क्वालिटी की वजह से मौत के मुंह में समा गए, उन्होंने एक महीने भी दुनिया नहीं देखी। वायु प्रदूषण जूझ रहे एक भारतीय की औसत जीवन प्रत्याशा 5.3 साल तक कम हो सकती है.

क्यों अचानक बढ़ गया प्रदूषण?

असल में जैसे ही ठंड का मौसम आता है तब गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की वजह से पीएम-2.5 की मात्रा 25 फीसदी तक बढ़ जाती है, जबकि गर्मियों में यह 8-9 फीसद रहती है। सड़कों पर जमी धूल भी इसमें बढ़ोत्तरी करती है। आईआईटी कानपुर की स्टडी के हवाले से संसदीय समिति ने इसका खुलासा किया था। दिल्ली में रोज पांच हजार टन कूड़ा निकलता है, और इसे शहर में ही अलग-अलग इलाकों में डंप किया जाता है। यहां अक्सर आगजनी भी होती है तब जहरीला धूंआ प्रदूषण को और बढ़ाता है। पटाखे-पराली का भी योगदान इसमें है। इस बार अक्टूबर में बारिश न होने की वजह से भी हवा खराब हुई है।

आपात बैठक में बोले-घर में रहे लोग

दिल्ली प्रदूषण की वजह से पैदा हुए गंभीर हालत को देखते हुए उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने शुक्रवार शाम तक आपात बैठक बुलाई। उन्होंने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय दोनों को इस मीटिंग के लिए राज निवास बुलाया था। एलजी ने स्थिति को चिंताजनक बताते हुए AQI में लगातार हो रही बढ़ोतरी पर गंभीर चिंता जाताई है। हालत को सुधारने के लिए कुछ अंतिम उपाय करने का निर्णय लिया गया। सभी सरकारी विभागों और एजेंसियों से कहा गया है कि वह अपने मुख्य कामों के उत्तर प्रदूषण के स्तर में कमी लाने में जुड़े। लोगों को यह सलाह दी गई है कि वह घर के अंदर ही रहे।

दिल्ली के एक्यूआई में शुक्रवार शाम 4 बजे आमूलचूल सुधार देखा गया था। इस दौरान एयर क्‍वालिटी 468 से शनिवार सुबह 6 बजे 413 हो गई थी। लेकिन PM 2.5 की सांद्रता अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित स्वस्थ सीमा से करीब 80 गुना अधिक है।

पीएम2.5 वे सूक्ष्म कण होते हैं जो सांस लेने पर श्वसन प्रणाली में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। शहर में शनिवार को लगातार पांचवें दिन धुंध की एक घनी हानिकारक परत दिख रही है, जिसे लेकर डॉक्‍टरों ने गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि, वायु प्रदूषण से बच्चों और बुजुर्गों में श्वसन और आंख संबंधी दिक्कतें बढ़ रही हैं। दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में कई स्थानों पर पीएम2.5 की सांद्रता 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की सुरक्षित सीमा से सात से आठ गुना अधिक रही। गौरतलब है कि, ये विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित स्वस्थ सीमा (पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से 80 से 100 गुना अधिक है।

रिसर्च में सामने आई खतरनाक बात

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 'यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो' के 'एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट' की एक रिपोर्ट में अगस्त में कहा गया कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की उम्र करीब 12 साल तक कम हो रही है। प्रदूषण के अति गंभीर श्रेणी में पहुंचने के कारण अनेक लोग सुबह की सैर और खेल समेत खुले में की जाने वाली अपनी गतिविधियों को टालने के लिए मजबूर हुए हैं। माता-पिता काफी चिंतित हैं क्योंकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चे तेजी से सांस लेते हैं और अधिक प्रदूषक तत्व ग्रहण करते हैं। दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दियों के दौरान प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों, वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, पराली जलाने, पटाखे जलाने और अन्य स्थानीय प्रदूषक स्रोतों के कारण वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती है।

नवजात शिशु के जीवन पर असर

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यदि डॉक्टरों की माने तो इतने प्रदूषित हवा में सांस लेना 24 घंटे में 40 से 50 सिगरेट पीने के बराबर है। इससे आप पता लगा सकते हैं कि यदि किसी नवजात के शरीर में प्रतिदिन 50 सिगरेट के बराबर जहर पहुंच रहा हो तो उनके जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ेगा।

कई बीमारियां हो सकती हैं ट्रिगर

जिन लोगों को पहले से ही श्वसन समस्याएं, हृदय रोग और इंफ्लामेटरी बीमारियां रही हैं उनमें प्रदूषण के कारण इनके ट्रिगर होने का भी खतरा हो सकता है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर वायु प्रदूषण के गंभीर दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं। प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले लोगों में स्ट्रेस होने और गंभीर स्थितियों में अवसाद का जोखिम बढ़ने का भी खतरा हो सकता है।

वायु प्रदूषण से इन-इन बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है

आईआईएम के पूर्व मेडिकल अफसर रविन्द्र नाथ कौशल के मुताबिक खराब हवा के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इसके साथ ही ब्रॉन्काइटिसज़,दिल की बीमारी,त्वचा संबंधी बीमारियां,बालों का झड़ना,स्मॉग से होने वाले बड़े नुकसान,खांसी, सांस लेने में तकलीफ,आंखों में जलन, नाक, कान, गला, फेफड़े में इंफेक्शन, ब्लड प्रेशर के रोगियों को ब्रेन स्ट्रोक की समस्या,दमा के रोगियों को अटैक का खतरा बढ़ जाता है।

कोरोना की मार झेल चुके लोगों को अधिक खतरा

भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम लखनऊ) से रिटायर्ड मेडिकल अफसर डॉक्टर रवींद्र मोहन कौशल बताते हैं, "कोरोना की मार झेल चुके लोगों के लिए ऐसा AQI खतरनाक है। ऐसे लोगों का फेफड़े का एक्सरे देखने पर पता चलता है। उसमें अक्सर बाइलेटरल हाइलर्स प्रेजन्ट एंड प्रोमिनेंट इंफेक्शन नजर आता है। जोकि उनके लिये खतरनाक साबित हो सकता है।"

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