नई दिल्ली: जलवायु परिवर्तन के असर से शायद ही कोई अछूता है। बारिश के बदलते स्वरूप और समुद्र का बढ़ता तापमान इंसान के साथ पक्षियों पर भी बुरा असर डाल रहा है। बदलते तापमान से प्रवासी पक्षियों के आगमन न होने पर भी प्रभाव पड़ा है। इसमें सबसे अधिक परेशानी दुर्लभ प्रजातियों के पक्षियों के सामने आ रही है। बिग बर्ड डे पर दिल्ली बर्ड क्लब की ओर से किए गए बर्ड वॉचिंग कार्यक्रम में सामने आया है कि इस वर्ष केवल 234 प्रजाति के पक्षी देखे गए हैं। जबकि बीते वर्ष यह आंकड़ा 253 प्रजातियों का था। पर्यावरण व पक्षी प्रेमियों के लिए यह खबर चिंतित करने वाली है।
सर्दियों के दौरान, यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में यूरोप, साइबेरिया और मध्य एशिया और चीन से प्रवासी पक्षियों की लगभग 30 प्रजातियां आती हैं. इन प्रवासी पक्षियों में फेरुजिनस पोचार्ड, यूरेशियन विजन उल्लेखनीय हैं। इस बार यमुना में 87 प्रजाति के पक्षी आए हैं, जबकि वर्ष 2023 में यहां 102 प्रजाति के पक्षी आए थे।
वहीं, अरावली में 58, जबकि बीते वर्ष में 62 प्रजाति आई थी। कमला नेहरू रिज में 57 प्रजाति, नीला हौज में 33, तुगलकाबाद में 46 और कालिंदी बायोडायवर्सिटी में 70 प्रजाति के पक्षी देखने को मिले। इसमें जंगल बुश क्वैल, एशियन कोल, ओपनबिल, ब्लैक बिटरन, ब्लैक काइट समेत कई प्रजातियों के पक्षी शामिल हैं। वैज्ञानिक पक्षियों की प्रजाति की संख्या कम देखने की वजह बदलते तापमान को मान रहे हैं।
प्रवासी पक्षियों के आगमन न होने के मामले पर पक्षी वैज्ञानिक और भारतीय सेना में 35 वर्षों से कार्यरत मेजर जनरल अरविंद यादव ने द मूकनायक से बात की। वह पर्यावरण सुरक्षा एवं पक्षियों के सरंक्षण में गत 20 वर्षों से निरंतर सक्रिय हैं। वह बताते हैं कि, इस बार दिल्ली में पक्षियों के ना आने की दो वजह है। पहले यह है कि पहले समय में जो पानी स्रोत थे। वह अब छोटे हो गए हैं। क्योंकि दिल्ली में थोड़ी पानी की कमी हो रही है। यहां पर पानी के स्रोत पहले से ही कमजोर हो रहे हैं। पक्षियों को जब यहां पानी दाना नहीं मिलता है। तो वह आगे राजस्थान और गुजरात चले जाते हैं। दूसरा पक्षियों के ना आने का कारण है जलवायु का परिवर्तन। इससे दिल्ली में सर्दियाँ इस बार बहुत देरी से आई। जितनी सर्दियां, सर्दियों के महीने में होनी चाहिए। उतनी सर्दियां इन महीना में नहीं पड़ी। यह सभी पक्षी साइबेरिया आदि से आते हैं। क्योंकि जब वहां बर्फ आदि पड़ती है। तो यह दूसरी जगह पर दाना और पानी के लिए जाते हैं। लेकिन यहां पर भी उनके अनुरूप वातावरण नहीं बदला। जिस वजह से वह अपना स्थान बदल लेते हैं। इस वजह से पक्षियों की संख्या में कमी हो गई है।
आगे बताते हैं कि, "जो यहां की जमीन है, वह सभी प्राइवेट हैं। इसमें जो नीची जमीन है, जिसमें बारिश का पानी भर जाता है, पहले के समय में लोग इस पानी का कुछ नहीं करते थे। लेकिन अब के समय में लोग मशीन लगाकर इस पानी को भी नहीं छोड़ते हैं। इसलिए जो पक्षियों के लिए जगह थी। वह छोटी होती जा रही है."
"इन पक्षियों को वापस लाने के लिए सरकार को ही आगे आना पड़ेगा। तभी जाकर कुछ हो सकता है। सरकार को पक्षियों के लिए जो जगह है, उनको बड़ा करना है। सरकार के पास इंसानों के लिए समय नहीं है, तो पक्षियों के लिए कहां से समय निकलेगी। इन सारी चीजों के लिए बहुत बड़ी रणनीति बनानी पड़ेगी," अरविंद यादव ने कहा.
वरिष्ठ वैज्ञानिक और भारतीदासन विश्वविद्यालय, तमिलनाडु से प्राणीशास्त्र में मास्टर डिग्री धारक डॉ. एम. महेंदीरन प्रवासी पक्षियों के आगमन न होने पर द मूकनायक को बताते हैं कि, पर्यावरण में जो परिवर्तन हो रहे हैं सब इसके बारे में जानते ही हैं। प्रवासी पक्षी हो या यहां के पक्षी, सब में बदलाव आ रहा है। पक्षियों के ना आने का सबसे बड़ा कारण है- पानी की कमी और जलवायु परिवर्तन। जैसा कि कुछ ऐसे पक्षी हैं जो पहले भारत में दिखाई भी नहीं देते थे। परंतु परिवर्तन के कारण वह दूसरे देशों से उड़कर यहां पर आ रहे हैं, और भारत में देखे जा सकते हैं। यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है। कुछ लोग पक्षियों के लिए जगह-जगह दाना रखते हैं। यह भी एक कारण हो सकता है पक्षियों के ना आने का, क्योंकि वह प्राकृतिक तरीके से अपना खाना नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। वह इन पर निर्भर हैं। पक्षियों को दाना देना गलत है। उनको खुद ढूंढने दीजिए अपना खाना। तभी वह प्राकृतिक तरीके से रहेंगे।"
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