भोपाल। सन 1984 में भोपाल गैस त्रासदी की घटना को लोग भूल नहीं पाए हैं। उस रात यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली जहरीली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। 25 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड कारखाना परिसर में दफन जहरीले कचरे से क्षेत्र की 42 कॉलोनियों का भूजल (ग्राउंड वाटर) दूषित हो रहा है। इब्राहिमगंज, बाफना कॉलोनी, गौतम नगर, पीजीबीटी कॉलेज, आरिफ नगर और राधाकृष्ण नगर के भूजल में ऑर्गनोक्लोरीन मिले हैं। वहीं अब गौतम नगर में मिथाइल आइसोसायनाइड गैस मिलने की आशंका जताई जा रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने गौतम नगर का निरीक्षण कर भूजल के सैंपल लिए हैं।
प्रभावित 42 कॉलोनियों में से निशातपुरा स्थित बृज विहार कालोनी का सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित निगरानी समिति ने निरीक्षण किया है। द मूकनायक से बातचीत करते हुए भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एन्ड एक्शन की संचालक रचना ढिंगरा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 2012 और 2018 के स्पष्ट आदेशों के बाद भी यहाँ के रहवासियों को आज तक जहरीला भूजल पीने को मजबूर होना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नगर निगम को घर-घर मुफ्त शुद्ध पेयजल के कनेक्शन देने के आदेश के बावजूद भी इस मोहल्ले में साफ़ पानी मुहैया नहीं कराया गया है। उन्होंने बताया कि निरीक्षण करने पहुंची समिति को क्षेत्रवासियों की समस्याओं को बताया है।
मध्य प्रदेश जिला विधिक प्राधिकरण के संयुक्त सचिव मनोज सिंह ने भोपाल जिला विधिक प्रकरण के चेयरमैन को इस इलाके का निरीक्षण कर, भूजल के सैंपल लेने के लिए आदेशित किया था। समिति के सदस्यों के समक्ष मध्य प्रदेश प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, लोक यांत्रिकी विभाग द्वारा कॉलोनी के 5 स्थानों से सैंपल लिए गए। यह पूरी कार्रवाई, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चेयरमैन के समक्ष की गई।
कॉलोनी के लोगों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यहाँ के रहवासी जहरीला पानी पीने को मजबूर है, 15 परिवार जहरीले पानी की वजह से घर छोड़ कर जा चुके है, लगभग हर घर में लोग बीमार है। नगर निगम द्वारा यहां के लोगों को नल द्वारा साफ़ पानी मुहैया ना कराना सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना है।
निरीक्षण के लिए पहुचीं समिति ने यहाँ के रहवासियों के लिए नगर निगम को 2 टंकियों से साफ़ पानी मुहैया कराने का आदेश दिया है। इस निरीक्षण में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चेयरमैन, नगर निगम के वाटर वर्क्स के उदित गर्ग, गैस राहत विभाग के सह संचालक, लोक यांत्रिकी विभाग, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, और भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एन्ड एक्शन एवं भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चे के सदस्य मौजूद रहे।
यूनियन कार्बाइड के आस-पास जमीन में दफन कचरा लगातार भूजल को प्रदूषित कर रहा है। और यहाँ के रहवासी इसी पानी को पीने के लिए मजबूर है। पूर्व में की गई भूजल जांच में यह सामने आया था। यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरे के कारण पानी अधिक मात्रा में रसायन युक्त हो चुका है। इस मामले में एक्सपर्ट का कहना था कि इस पानी को पीने से कैंसर और गुर्दा रोग जैसी गंभीर बीमारी पनप सकती है। पिछले कुछ सालों के आंकड़ों में यहां कैंसर और गुर्दा सम्बंधित रोगियों की संख्या बढ़ी है।
इन इलाकों में पूर्व में पानी की, की गई जांच करने पर पता चला है कि इन कॉलोनियों के भू-जल में ऑर्गनोक्लोरीन नामक रसायन मिला है, इससे कैंसर, जन्मजात विकृति, मस्तिष्क और किडनी के साथ रोग प्रतिरोधक, प्रजनन एवं अन्य स्रोतों को नुकसान पहुंचता है। यूनियन कार्बाइड कारखाने में सालों से पड़े जहरीले कचरे को नष्ट नहीं करने के कारण ये स्थिति बन रही है। इसकी वजह से दूसरी कॉलोनियां भी इसकी जद में आ रही हैं। वहीं द मूकनायक से बातचीत करते हुए मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सदस्य आलोक सक्सेना ने बताया कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बनाई गई समिति को भूजल प्रदूषण की शिकायत मिली थी। हमने कॉलोनी के निरीक्षण के दौरान पांच जगहों से भूजल के सेंपल लिए है। सेंपल लैब में भेज दिए जांच रिपोर्ट आने के बाद ही बता पाएंगे।
वर्ष 1984 की 2 और 3 दिसंबर की रात को भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस हवा में फैल गई थी। इस हादसे में लगभग 45 टन खतरनाक मिथाइल आइसोसाइनेट गैस एक कीटनाशक संयंत्र से लीक हो गई थी, जिससे हजारों लोग मौत की नींद सो गए थे। यह औद्योगिक संयंत्र अमेरिकी फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी का था। लीक होते ही गैस आस-पास की घनी आबादी वाले इलाकों में फैल गई थी और इससे 16000 से अधिक लोग मारे जाने की बात सामने आई थी, हालांकि सरकारी आंकड़ों में केवल 3000 लोगों के मारे जाने की बात कही गई है।
गैस संयंत्र से लीक हुई गैस का असर इतना भयंकर था कि इसके संपर्क में आए करीब पांच लाख लोग जीवित तो बच गए लेकिन सांस की समस्या, आंखों में जलन और यहां तक की अंधापन तक की समस्या हो गई। इस जहरीली गैस के संपर्क में आने के चलते गर्भवती महिलाओं पर भी इसका असर पड़ा और बच्चों में जन्मजात बीमारियां होने लगी। यूनियन कार्बाइड भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल बाद भी इसके ज़हरीले कचरे का असर भूजल में घुल रहा है, लेकिन सरकार इसके लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं कर रही है।
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