देशभर के सैकड़ों जिलों के भूजल में आर्सेनिक-फ्लोराइड ने बढ़ाई चिंता, जानिए क्या हैं खतरे, कब सामने आया था पहला मामला!

भूजल में मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आर्सेनिक और फ्लोराइड की जानकारी होते ही दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बंगाल समेत विभिन्न राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को एनजीटी ने जारी किया नोटिस.
मध्य प्रदेश के आदमपुर में एक सरकरी हैण्डपम्प से निकलता दूषित पानी.
मध्य प्रदेश के आदमपुर में एक सरकरी हैण्डपम्प से निकलता दूषित पानी.फोटो- अंकित पचौरी, द मूकनायक
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नई दिल्ली: देशभर में राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के भूजल में अधिक मात्रा में आर्सेनिक और फ्लोराइड की मौजूदगी पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। एक रिपोर्ट का संज्ञान लेकर एनजीटी ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में राज्यों के भूजल में आर्सेनिक और फ्लोराइड मिलना बहुत गंभीर है और तत्काल रोकथाम व उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।

भूजल में मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आर्सेनिक और फ्लोराइड की जानकारी होते ही दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बंगाल समेत विभिन्न राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को एनजीटी ने नोटिस जारी कर एक महीने के अंदर मामले में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

एनजीटी ने नोट किया कि 25 राज्यों के 230 जिलों व केंद्र शासित प्रदेशों में आर्सेनिक और 27 राज्यों के 469 जिलों में भूजल में फ्लोराइड पाया गया है। यह भी नोट किया कि इस तरह की घोषणा केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री ने राज्यसभा में की है।

एनजीटी ने कहा कि अग्रिम सूचना पर सीजीडब्ल्यूए ने 18 दिसंबर को दाखिल अपनी रिपोर्ट में विभिन्न जिलों में 25 जिलों में आर्सेनिक 27 राज्यों में फ्लोराइड की मौजूदगी को स्वीकार किया गया है। यह भी स्वीकार किया है कि कि दोनों रसायनों/धातुओं में बहुत गंभीर विषाक्तता है और मानव शरीर और स्वास्थ्य पर इसका खतरनाक प्रभाव पड़ता है।

उत्तर प्रदेश के मामले में कुल 72 जिलों में से 43 जिलों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। इनमें कानपुर नगर के अलावा कानपुर देहात, उन्नाव व आसपास के 12 जिले भी शामिल हैं। केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) की ओर से यह रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार कानपुर नगर के पानी में आर्सेनिक की मात्रा भी अधिक पाई गई है।

बीते 18 दिसंबर को दी गई रिपोर्ट में सीजीडब्ल्यूए ने कहा है कि भूगर्भ जल में फ्लोराइड की सुरक्षित मात्रा एक मिलीग्राम प्रति लीटर होती है जबकि इन जिलों के पानी में 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक फ्लोराइड मिला है। इस संबंध में एनजीटी ने मुख्य सचिव के साथ सीजीडब्ल्यूए, केंद्र सरकार के सचिव वन और पर्यावरण को इसकी रोकथाम और बचाव के लिए उठाए गए कदमों पर रिपोर्ट देने को कहा है। अधिकरण इस मामले की सुनवाई अब 15 फरवरी को करेगा।

यूपी में फ्लोराइड की अधिकता वाले जिलों में कानपुर नगर, कानपुर देहात, उन्नाव, हरदोई, बांदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, जालौन, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज, फतेहपुर, आगरा, अलीगढ़, प्रयागराज, आजमगढ़, बुलंदशहर, एटा, फिरोजाबाद, गौतमबुद्धनगर, गाजीपुर, गोंडा, गाजियाबाद, हाथरस, जौनपुर, कांशीरामनगर, ललितपुर, मैनपुरी, मथुरा, मऊ, प्रतापगढ़, रायबरेली, शाहजहांपुर, सोनभद्र, सुल्तानपुर, वाराणसी, चंदौली, गोंडा, सीतापुर, अमरोहा व रामपुर शामिल है। जबकि कानपुर नगर, उन्नाव, कन्नौज, बांदा सहित प्रदेश के 45 जिलों में निर्धारित मानक 0.01 मिलीग्राम प्रतिलीटर से अधिक आर्सेनिक की मौजूदगी मिली है।

यह जानकारी सामने आने के बाद अशोक कुमार पूर्व अधिशासी अभियंता भूगर्भ जल विभाग ने कहा कि, कानपुर नगर, उन्नाव व इसके आसपास के जिलों के भूगर्भ जल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने की वजह भूगर्भ में पाई जाने वाली चट्टानों में फ्लोराइड की परत का पाया जाना है। यह पानी में धीरे-धीरे घुलती रहती है। घुनशीलता अधिक हो जाती है तो मात्रा सुरक्षित स्तर से अधिक हो जाती है.

जबकि, आरएस सिन्हा, भूगर्भ जल विज्ञानी के अनुसार, पेयजल योजना के तहत भूगर्भ के पानी का परीक्षण होने से उसमें जरूरत के हिसाब से दवाएं डालकर मात्रा को लेवल पर लाया जाता है। लेकिन फसलों की सिंचाई के लिए की जानी वाली पंपिंग सेट की बोरिंग में पानी का परीक्षण नहीं किया जाता है। ऐसे में फ्लोराइड फसलों के जरिये लोगों के शरीर में पहुंच रहा है और नुकसान पहुंचा रहा है।

पानी में फ्लोराइड की वजह से होने वाली समस्याओं में, बच्चों और बड़ों के दांतों का खराब होना, हड्डियों का खोखला होना शामिल है। इसके असर से हडिडयां टेढ़ी होने लगती हैं। इससे रीढ़ पर भी बुरा असर आता है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि फ्लोराइड धीमे जहर की तरह असर करता है। रोगी रीढ़ टेढ़ी होने की शिकायत लेकर आ रहे हैं।

दूसरी ओर, पानी में आर्सेनिक से त्वचा खराब तो होती है साथ में रोगियों का नर्वस सिस्टम बिगड़ जाता है। इससे नसें खराब होने और लकवा होने का खतरा पैदा हो जाता है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. विशाल कुमार गुप्ता का कहना है कि फ्लोराइड की मात्रा पानी में अधिक होने से गुर्दे और लिवर भी असर आ सकता है। वहीं आर्सेनिक अगर पानी में है तो नर्वस सिस्टम और नसें खराब होती हैं जिससे हाथ-पैर का लकवा हो सकता है।

पानी में फ्लोराइ और आर्सेनिक से बचाव के रूप में विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि आरओ का पानी पिएं, पानी उबाल कर पिएं, और जल निगम की सप्लाई भी सुरक्षित है.

आपको बता दें कि, 15 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जल जीवन मिशन शुरू किया, जिसका लक्ष्य 2024 तक "ग्रामीण भारत के सभी घरों में व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से साफ और पर्याप्त पेयजल" उपलब्ध कराना था. इससे पहले, पेयजल और स्वच्छता विभाग ने 2017 में राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उप-मिशन शुरू किया था, जिसका लक्ष्य "देश में 27,544 आर्सेनिक/फ्लोराइड प्रभावित ग्रामीण बस्तियों को साफ पेयजल उपलब्ध कराना" था. इस उप-मिशन को जेजेएम के तहत शामिल किया गया था. लेकिन इन योजनाओं के बावजूद देश की अधिकांश आबादी अभी भी फ्लोराइ और आर्सेनिक युक्त पानी का सेवन करने के लिए मजबूर है.

देश में पहली बार भूजल में आर्सेनिक का मामला

भारत के भूजल में आर्सेनिक का जिक्र पहली बार 1983 में पश्चिम बंगाल में रिपोर्ट किया गया था. उत्तर प्रदेश में इसकी मौजूदगी दो दशक बाद ही सामने आनी शुरू हुई. आर्सेनिक का पता सबसे पहले 2003 में बलिया जिले में दीपांकर चक्रवर्ती द्वारा लगाया गया था, जो तब कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में पर्यावरण अध्ययन स्कूल के निदेशक थे. उनकी टीम ने पाया कि बलिया के 55 गांवों के भूजल में आर्सेनिक पचास से दो सौ भाग प्रति बिलियन के बीच है - जो डब्ल्यूएचओ के मानक से कहीं अधिक है. लेकिन बलिया में आर्सेनिक का मुद्दा 2004 में एक महत्वपूर्ण मामले के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर सामने आया था.

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