मुकुन्दरा के दरा की जगह इस बार रावतभाटा रोड सेल्जर इलाके में छोड़ा गया टाइगर। द मूकनायक ने खबर प्रकाशित कर दरा में रेल व सड़क मार्ग के कारण जताई थी सुरक्षा को लेकर चिंता।
जयपुर। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिला स्थित रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से बाघ टी-113 के बाद एक और बाघ को कोटा के मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व में शिफ्ट कर दिया गया। रणथम्भौर का टी-110 अब मुकुन्दरा में एमटी-5 के नाम से जाना जाएगा। मुकन्दरा में वन्यजीव प्रेमियों ने नए मेहमान का स्वागत करते हुए यहां भी पर्यटन व्यवसाय बढ़ने की उम्मीद जताई है। इससे पूर्व रणथम्भौर की तालड़ा रेंज से टी-113 को अलवर जिले के सरिस्का भेजा गया था। रणथम्भौर में बाघों के दबाव को कम करने के लिए नियमानुसार इन बाघों को सरिस्का व मुकन्दरा भेजा गया है। इससे पूर्व बूंदी के विषधारी टाइगर रिजर्व भी एक टाइग्रेस भेजी जा चुकी है।
ट्रंकोलाइज से पहले बाघ ने छकाया
रणथम्भौर से बाघ टी-113 को सरिस्का भेजने के साथ ही टी-110 को मुकन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व में शिफ्टिंग की तैयारी थी। केंद्र व राज्य सरकार की अनुमति के बाद मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक सेडूराम यादव के नेतृत्व में विभाग की दो अलग टीमें टी-113 व टी-110 को पकड़ने के लिए लगातार पीछा कर रही थीं। इस बीच 16 अक्टूबर को टी-113 को तालड़ा रेंज के क्षेत्रीय वन अधिकारी रामखिलाड़ी मीना व सीसीएफ सेडूराम यादव के नेतृत्व में आसानी से ट्रंकोलाइज कर सरिस्का शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन टी-110 वन विभाग की टीम को छकाता रहा। लगातार नाकाम कोशिशों के बावजूद टी-110 पकड़ में नहीं आया तो विभागीय अधिकारियों ने टी-110 की जगह शिफ्टिंग के लिए टी-123 को भी चिन्हित कर लिया। दोनों को ट्रेप करने के लिए जानवर भी बांधे गए। खास बात यह रही कि दोनों टाइगरों ने अपने अपने इलाके में वन विभाग द्वारा ट्रेप के लिए बांधे गए जानवरो को मार कर खाया भी, लेकिन ट्रेप नहीं हो सके। इससे वन अधिकारियों की चिंता बढ़ गई।
बुधवार देर शाम तक विभाग की टीम के ट्रंकुलाइज विशेषज्ञ ने टी-123 पर दो बार ट्रंकुलाइज के लिए गन शॉट भी चलाए, लेकिन सफल नही हो सके। हालांकि इस पूरे घटना क्रम पर वन अधिकारी रात तक चुप्पी साधे रहे। अंधेरे के कारण कार्रवाई को रोक दिया गया था।
टी-110 से आबाद हुआ मुकन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व
रणथम्भौर फलोदी रेंज का बाघ-110 अब मुकन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व में अपनी बादशाहत कायम करेगा। पहले से मुकुन्दरा में टाइग्रेस के मौजूदगी से बाघों का कुनबा बढ़ने की उम्मीद है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कुछ दिन एनकोलजर में रखने के बाद इसे खुले जंगल मे छोड़ा जाना तय है। खुले जंगल में विचरण करते टाइगर पर निगरानी के लिए रेडियो कॉलर लगाया गया है। ताकि टाइगर के हर मूवमेंट पर नजर रखी जा सके। रेडिया कॉलर लगाने के बाद बाघ को सड़क मार्ग से कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के रावतभाटा रोड स्थित शेलजर नाके के एनक्लोजर में छोड़ दिया गया। इस दौरान रणथम्भौर बाघ परियोजना के सीसीएफ सेडूराम यादव, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के सीसीएफ शैलेन्द्र प्रताप सिंह, रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के उपवन संरक्षक संजीव शर्मा, पशु चिकित्सक डॉ. सीपी मीणा, फलौदी रेंज के क्षेत्रीय वनाधिकारी राजबहादुर मीणा आदि मौजूद थे।
द मूकनायक को राजबहादुर मीना ने बताया कि मुकन्दरा में एमटी-04 टाइग्रेस पहले से मौजूद है। ऐसे में दोनों को जंगल में खुला छोड़ने के बाद मिलन तो होना तय है। दोनों के मिलन से मुकन्दरा में बाघों के कुनबा बढ़ेगा।
सुरक्षा पर सवाल अभी भी कायम
वन्यजीव संरक्षण के लिए काम कर रही पथिक लोक सेवा समिति संस्थापक व सचिव मुकेश सीट ने रणथम्भौर बाघ परियोजना से प्रदेश के अन्य अभयारण्यों में टाइगरों की शिफ्टिंग को वन विभाग का सही कदम बताया है। उन्होंने कहा कि इससे रणथम्भौर में बाघों में टेरिटरी को लेकर होने वाले संघर्ष में कमी आएगी, लेकिन साथ ही मुकुन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व में एनक्लोजर से बाहर निकलने पर टाइगरों की सुरक्षा को लेकर सवाल अभी भी खड़े हैं। सीट बताते हैं कि यहां वन्यजीवों के लिए दरा घाटी से निकल रही दिल्ली-मुम्बई रेल लाइन व राष्ट्रीय राज मार्ग सबसे बड़ा खतरा है। इस बात से वन अधिकारी व केंद्र व राज्य सरकार भी बाखूबी वाकिफ है।
उन्होंने कहा कि वन्यजीवों की सुरक्षा में रोड़ा बने रेल व सड़क मार्ग को लेकर द मूकनायक पूर्व में खबर प्रकाशित कर चुका है। यही वजह से वन विभाग ने इस बार दरा की जगह शेलजर इलाके को चुना। यह इलाका दरा से काफी दूर है।
मुकेश बताते हैं, कि मुकुन्दरा में टाइगर के आने के बाद हाड़ोती क्षेत्र के वन्यजीव प्रेमियों में खुशी है। यहां बाघ बढ़ेंगे तो पर्यटन भी बढ़ेगा, लेकिन यहां टाइगरों के साथ ही अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा व संरक्षण को लेकर केंद्र व राज्य सरकारों को गम्भीरता दिखाना होगा। राष्ट्रीय राजमार्ग व दिल्ली-मुम्बई रेल मार्ग को दरा घाटी में पूरी तरह कवर्ड करना होगा। वन विभाग को भी नियमो में बदलाव करना पड़े तो टाइगरों के अलावा अन्य वन्यजीव सुरक्षा को ध्यान में रहते हुए बदलाव करना चाहिए।
करौली के कैलादेवी पहुंचे दो टाइगर मेहमान
मुकुन्दरा हिल्स में बाघों के पुनर्वास को लेकर जहां रणथम्भौर में वन विभाग के उच्च अधिकारियों की टीम विशेषज्ञो के साथ कड़ी मेहनत कर रही है। वही रणथम्भौर से स्वेच्छा से टेरिटरी की तलाश में ढाई महीने बाद टी-136 करौली जिले के कैलादेवी वन अभयारण्य में जा पहुंचा। टी-132 भी कैलादेवी अभयारण्य में डेरा डाले हुए है। बिन बुलाए मेहमान की तरह पहुंचे टी-136 को अब नया ठिकाना मिल गया है। इन दोनों टाइगरों के मूवमेंट को लेकर करौली वन विभाग में खुशी है। अधिकारियों का मानना है यहां टाइगरों का मूवमेंट रहने से पर्यटक बढ़ेंगे। कैलादेवी रेंज अधिकारी मोहनलाल सैनी ने बताया कि वर्तमान में टी-136 का मूवमेंट कैलादेवी वन क्षेत्र के खोरी नाका इलाके में है।
अगस्त माह में रणथम्भौर से निकले थे दो बाघ
द मूकनायक को वन्यजीव संरक्षण के लिए काम कर रही पथिक लोक सेवा समिति संस्थापक व सचिव मुकेश सीट ने बताया कि रणथम्भौर में क्षमता से अधिक बाघ-बाघिन है। युवा बाघ व पुराने बाघों के बीच इलाके को लेकर संघर्ष होता रहता है। इसी संघर्ष में कमजोर बाघ को जगह छोड़ना पड़ता है। सीट बताते है कि टी-136 रणथम्भौर की बाघिन-102 का शावक है। इसकी उम्र करीब डेढ़ साल है। पूर्व में 16 जुलाई को वन विभाग ने रणथम्भौर के आमाघाटी वन क्षेत्र से बाघिन टी-102 को बूंदी के रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में शिफ्ट कर दिया था। इसके कुछ दिनों बाद बाघ टी-136 भी इलाके की तलाश में रणथम्भौर से निकल गया था।
रणथम्भौर से दो युवा बाघ टी-132 व टी-136 एक साथ नए इलाके की खोज में बाहर निकले थे। टी-132 ने सीधे ही करौली के कैलादेवी अभयारण्य में पहुंच कर अपना नया ठिकाना बना लिया। जबकि बाघ टी-136 यहां से लालपुर उमरी वन क्षेत्र में पहुंच गया था। लम्बे समय तक इसी क्षेत्र में यह बाघ डटा रहा। यहां गाय व भैंस का किल किया। वन विभाग के फोटो ट्रेप कैमरे में कैद हुआ था। यहां से फिर भटकते हुए करौली जिले के कैलादेवी अभयारण्य में पहुंच गया। वन अधिकारी बताते है कि नए ठिकाना टी-136 को रास आ रहा है।
यह बोले करौली के वन अधिकारी
उपवन संरक्षक करौली रामानन्द भाकर ने द मूकनायक को बताया कि 136 करौली के कैलादेवी अभयारण्य के खोरी नाका वन क्षेत्र में लगे फोटो ट्रैप कैमरों में कैद हुआ था। तब से इसी इलाके में डेरा डाले हैं।
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