नई दिल्ली – सात साल लंबे संघर्ष के बाद, सामाजिक न्याय और समावेशन की लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ता अब जीत का जश्न मना रहे हैं क्योंकि भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद (IIM-A) ने घोषणा की है कि वह अपने पीएचडी कार्यक्रमों में 2025 से आरक्षण लागू करेगा। यह घोषणा लगातार कानूनी और सामाजिक दबाव के बाद हुई है, जिसका श्रेय 2021 में दाखिल की गई एक जनहित याचिका (PIL) को जाता है।
IIM-A के पीएचडी एडमिशन 2025 के लिए ऑनलाइन घोषणा में अब साफ-साफ लिखा गया है, "भारत सरकार द्वारा आरक्षण के दिशा-निर्देशों का पालन प्रवेश प्रक्रिया के दौरान किया जाता है।" यह साधारण लेकिन महत्वपूर्ण स्टेटमेंट कार्यकर्ताओं को उम्मीद दे रहा है कि अब वंचित समुदायों के योग्य उम्मीदवार देश के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश पाने में सफल होंगे।
IIM-A के पीएचडी कार्यक्रमों में आरक्षण लागू करने की लड़ाई 2017 में शुरू हुई, जब कार्यकर्ता अनिल वागड़े, डॉ. सूरज येंगडे और अरुण खोब्रागड़े ने तत्कालीन IIM-A निदेशक प्रोफेसर डी’सूजा से मुलाकात की। उनका उद्देश्य न केवल पीएचडी प्रवेश में बल्कि फैकल्टी भर्ती में भी आरक्षण की मांग करना था। हालांकि, कार्यकर्ताओं ने आरक्षण के पक्ष में मजबूत तर्क पेश किए, लेकिन उन्हें प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। डी’सूजा ने उनके तर्कों को स्वीकार तो किया, लेकिन कहा कि फैकल्टी अभी "तैयार नहीं" है, जिससे यह आभास हुआ कि IIM की फैकल्टी भारतीय संविधान से परे काम करती है।
संस्थान की अनिच्छा से असंतुष्ट होकर, वागड़े और उनके साथियों ने मामले को अदालत में ले जाने का फैसला किया। 2021 में उन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि IIM-A द्वारा अपने पीएचडी कार्यक्रमों में आरक्षण लागू न करना संवैधानिक प्रावधानों, केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी बताया कि पीएचडी पाठ्यक्रमों में आरक्षण की अनुपस्थिति फैकल्टी में विविधता की कमी का एक बड़ा कारण है, क्योंकि इससे वंचित समुदायों के योग्य उम्मीदवारों की संख्या सीमित हो जाती है।
PIL सुनवाई ने गति पकड़ी और 2022 तक IIM-A ने एक हलफनामा दाखिल किया, जिसमें उसने "स्वेच्छा से" अपने पीएचडी कार्यक्रमों में आरक्षण लागू करने का फैसला करना बताया। हालांकि, इस हलफनामे में इसे लागू करने की समयसीमा का उल्लेख नहीं था, जिससे कार्यकर्ता निराश थे। संस्थान ने यह तर्क दिया कि आरक्षण प्रणाली को लागू करने के लिए एक पद्धति तैयार करना, जिससे "किसी के साथ भेदभाव" न हो, समय लेगा और इस प्रक्रिया को एक "चुनौतीपूर्ण कार्य" बताया।
हालांकि, कार्यकर्ताओं के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। फिर भी, 2022 में नए निदेशक भारत भास्कर की नियुक्ति ने नए संवाद का मौका दिया। वागड़े और उनके साथियों ने भास्कर से संपर्क किया, जिन्होंने इस मुद्दे की समीक्षा करने का वादा किया। IIM-A ने आरक्षण लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, लेकिन 2023 में ही संस्थान ने गुजरात उच्च न्यायालय में एक और हलफनामा दाखिल किया, जिसमें कहा गया कि आरक्षण संभवतः 2025 से लागू किया जाएगा।
IIM-A की ओर से अधिवक्ता ने गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध माई की खंडपीठ को सूचित किया कि संस्थान 2025 के शैक्षणिक सत्र से आरक्षण नियम लागू करेगा। यह बयान PIL के जवाब में चल रही सुनवाई का हिस्सा था।
हालांकि, न्यायालय ने IIM-A की इस मौखिक घोषणा का स्वागत किया, मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत किसी विशेष शैक्षणिक सत्र से कार्यक्रम शुरू करने के लिए आदेश नहीं दे सकती। लेकिन अब एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, इस वर्ष के पीएचडी एडमिशन विज्ञापन में आईआईएम अहमदाबाद की वेबसाईट पर यह उल्लेख किया गया कि प्रवेश प्रक्रिया के दौरान सरकारी आरक्षण नियमों का पालन किया जाएगा, जिससे इसे एक सकारात्मक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि, वागड़े अभी भी निश्चिन्त नहीं हुए हैं। द मूकनायक से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस साल के ऑनलाइन पीएचडी एडमिशन विज्ञापन में यह उल्लेख किया गया है कि सरकारी आरक्षण दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा, जिससे हमें उम्मीद तो है, लेकिन जब तक IIM-A पूरी तरह से सभी मानदंडों का पालन नहीं करता, तब तक PIL प्रभावी रहेगा।"
वागड़े ने कहा कि एक बार प्रवेश प्रक्रियाएं पूरी हो जाने के बाद, वे विभिन्न श्रेणियों में दाखिला लेने वाले छात्रों का पूरा विवरण RTI के माध्यम से प्राप्त करेंगे। यदि कोई चूक पाई जाती है, तो आगे की कार्रवाई निर्धारित की जाएगी।
वागड़े और उनके साथी कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह जीत सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इससे अकादमिक क्षेत्र में वंचित समुदायों की प्रतिनिधित्व की स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। वे कहते हैं, “अब SC/ST/OBC पृष्ठभूमि के योग्य उम्मीदवारों को IIM-A जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश पाने का अवसर मिलेगा। यह एक अधिक समावेशी और विविधतापूर्ण अकादमिक वातावरण बनाने की दिशा में एक कदम है” ।
वागड़े और अन्य कार्यकर्ताओं ने पूरे अभियान के दौरान एक और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है, जो केवल प्रवेश में ही नहीं, बल्कि फैकल्टी भर्ती में भी आरक्षण की आवश्यकता है।
वर्तमान में, IIM-A में SC, ST, या OBC पृष्ठभूमि का कोई भी फैकल्टी सदस्य नहीं है, और हाल ही में केवल एक मुस्लिम फैकल्टी सदस्य की भर्ती हुई है। वागड़े ने बताया, "पीएचडी पाठ्यक्रमों में आरक्षण की कमी के कारण एक बड़ी समस्या होती है – वंचित पृष्ठभूमि से पर्याप्त योग्य उम्मीदवार नहीं होते जो आगे चलकर फैकल्टी बन सकें।"
वे इस बात पर जोर देते हैं कि IIM-A जैसे संस्थान में फैकल्टी विविधता आवश्यक है क्योंकि ये भारत के सर्वोत्तम और प्रतिभाशाली अध्यापकों का प्रतिनिधित्व करता है। वागड़े कहते हैं, "भारत की विविधता को हमारे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में भी प्रतिबिंबित होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से, IIMs इस मामले में काफी विफल रहे हैं,"
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