लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन ने शोध छात्राओं को मातृत्व अवकाश देने का महती फैसला लिया है। छात्राएं शोध कार्य की अवधि में विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार मातृत्व अवकाश के लिए पात्र होंगी। हालाँकि, ऐसी सभी छुट्टियों को पीएचडी जमा करने के लिए निर्धारित 36 महीने की न्यूनतम अवधि की गणना से अलग रखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि थीसिस जमा करने व अन्य शोध व पठन कार्य के लिए पूरे 36 महीने की आवश्यकता होती है।
विश्वविद्यालय के प्रवक्ता दुर्गेश श्रीवास्तव ने मीडियाकर्मियों को बताया, “पीएचडी के छात्रों को यूजीसी दिशानिर्देशों के अनुसार छुट्टी दी जाएगी, जबकि बीएड, एम, ईडी के लिए राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के नियमों को अपनाया जाएगा।”
2016 में, यूजीसी ने एमफिल व पीएचडी डिग्री प्रदान करने के लिए न्यूनतम मानक और प्रक्रिया नियम जारी किए थे, जिसमें कहा गया कि शोधार्थी छात्राओं के लिए अधिकतम 240 दिनों के लिए मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाएगा। 2021 में, आयोग ने इस आशय का एक परिपत्र जारी किया और सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से महिला छात्रों को मातृत्व अवकाश देने के लिए उचित नियम व मापदंड बनाने का अनुरोध किया, साथ ही उपस्थिति से संबंधित सभी छूट व थीसीस जमा करने की नियत तारीख का विस्तार प्रदान करने का अनुरोध किया। नवंबर 2023 में, नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) ने बी.एड और एम.ईडी के छात्रों को उनकी छुट्टी की अवधि के अनुसार उनके अध्ययन की अवधि बढ़ाने के प्रभाव से मातृत्व अवकाश का लाभ लेने की अनुमति दी।
इसीक्रम में 2013 में कालीकट विश्वविद्यालय अपनी महिला छात्रों को मातृत्व अवकाश देने वाला पहला विश्वविद्यालय बन गया। मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017 भारत में मातृत्व से संबंधित नियमों को नियंत्रित करता है। मातृत्व लाभ अधिनियम अधिकतम 26 सप्ताह के मातृत्व अवकाश का प्रावधान करता है। महिलाएं आमतौर पर प्रसव से पहले और बाद में यह छुट्टी लेने की हकदार हैं। मातृत्व अवकाश की अवधि के दौरान, पात्र कर्मचारी मातृत्व लाभ के रूप में अपने वेतन का एक निश्चित प्रतिशत प्राप्त करने की हकदार हैं। तीसरे और उसके बाद के बच्चे के लिए माताएं 12 सप्ताह के मातृत्व अवकाश की पात्र हैं। कारपोरेट या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में में एक महिला मातृत्व अवकाश लेने के लिए तभी पात्र है जब उसने अपनी अपेक्षित डिलीवरी तिथि से पहले 12 महीनों में नियोक्ता के साथ कम से कम 80 दिन काम किया हो।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट छात्राओं को भी मैटरनिटी लीव देने का निर्णय किया था। इस संबंध में यूजीसी ने दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए थे. हालांकि कई विश्वविद्यालयों में अभी तक यह लाभ छात्राओं को नहीं दिया जा रहा है। इससे पहले आयोग की तरफ से सिर्फ एमफिल और पीएडी की छात्राओं को ही यह सुविधा मिलती थी. इसके तहत एमफिल और पीएचडी की छात्राओं को 240 दिन तक मैटरनिटी लीव दी जाती है.
आयोग की तरफ से यह भी कहा गया है कि इन नियम को संस्थान अपने स्तर पर लागू कर सकते हैं. हालांकि, विश्वविद्यालय कितने दिन की लीव देंगे, यह उनका अपना फैसला होगा. इससे पहले मैटरनिटी लीव नहीं मिलने के कारण छात्राएं एमफिल और शोध में आगे नहीं आती थीं.
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